भारत ने शुक्रवार यानी 10  सितंबर को संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व वाले इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) के व्यापार समूह से खुद को अलग कर लिया है. लेकिन उसने बाकी तीन क्षेत्रों- आपूर्ति शृंखला, हरित अर्थव्यवस्था और निष्पक्ष अर्थव्यवस्था से जुड़ने का फैसला किया है.


उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने अमेरिका यात्रा के दौरान संवाददाताओं से बात करते हुए कहा कि भारत इस संगठन के व्यापार खंड का हिस्सा बनने को लेकर बातचीत जारी रखेगा. क्योंकि यह स्पष्ट नहीं है कि भारत सहित सदस्य देशों को इस स्तर पर वार्ता के माध्यम से क्या लाभ होगा. उन्होंने कहा कि व्यापार खंड का औपचारिक रूप से हिस्सा बनने के पहले भारत इसकी रूपरेखा के बारे में स्पष्टता आने का इंतजार करेगा.


पीयूष गोयल ने कहा कि भारत पहले अपने राष्ट्रीय हितों के सभी पहलुओं को देखेगा और फिर कोई फैसला लेगा. इस दौरान गोयल ने कहा कि भारत इस मुद्दे पर 14-सदस्यीय मंच के साथ जुड़ना जारी रखेगा.  गोयल ने कहा कि व्यापार से संबंधित स्तंभ में सभी देशों के बीच खासकर पर्यावरण, श्रम, डिजिटल व्यापार, सार्वजनिक खरीद से संबंधित रूपरेखा के बारे में व्यापक सहमति बननी अभी बाकी है. हमें यह देखना है कि सदस्य देशों को व्यापार से संबंधित किस तरह के लाभ होंगे.


इसके साथ ही उन्होंने इस बारे में भी अनिश्चितता जताई कि इस प्रारूप के तहत एक उभरती अर्थव्यवस्था की जरूरतों को पूरा करने के लिए किफायती एवं कम लागत वाली ऊर्जा को लेकर किसी तरह का भेदभाव तो नहीं किया जाएगा.


वहीं भारत के इस कदम पर विशेषज्ञों का कहना है कि अभी के लिए IPEF के तहत व्यापार स्तंभ से बाहर निकलना सही दिशा में एक कदम है. ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत श्रम (labour), पर्यावरण मानकों (Environment Standards) और डिजिटल व्यापार ( Digital Trade) जैसे मुद्दों से निपटने के लिए पर्याप्त रूप से तैयार नहीं है. उन्होंने यह भी बताया कि भारत के इस फैसले को IPEF से अलग हो जाने के फैसले की तरह नहीं देखना चाहिए. 


आइये जानते हैं कि आखिर इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) क्या है, इसमें कौन कौन से देश शामिल हैं और यह आइडिया कहां से सामने आया और भारत के सामने इससे जुड़ी कौन सी चिंता है. 


क्या है IPEF


दुनिया को दो सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्तियों अमेरिका और चीन के बीच लंबे समय से शह मात का खेल चल रहा है. इस बीच अमेरिका ने चीन के बढ़ते दबदबे पर लगाम लगाने के लिए एशिया में एक नया इकनॉमिक फोरम, इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) को लॉन्च किया.  ये क्वॉड प्लस की एक दिलचस्प पहल है. सामरिक नज़रिए से देखें तो एक और क्षेत्रीय आर्थिक समूह उभरा है, जिसके सदस्य अन्य समूहों के भी सदस्य हैं. 


आईपीईएफ का गठन अमेरिका और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के अन्य साझेदार देशों ने 23 मई को टोक्यो में किया था, इसके 14 सदस्य देशों का वैश्विक जीडीपी में कुल 40 प्रतिशत का योगदान है.


पहली बार इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क का जिक्र पिछले साल के अक्टूबर महीने में अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने ईस्ट एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान किया था.  बाइडेन ने आसियान के नेताओं से IPEF के बारे में उस वक़्त संक्षेप में बात की थी, जब उनमें से आठ नेता, मई 2022 में अमेरिका-आसियान विशेष सम्मेलन के लिए जुटे थे. 


इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क को भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन के तेजी से बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए एक सामूहिक प्रयास कहा जा सकता है. IPEF का उद्देश्य इसमें शामिल देशों में सप्लाई चेन बनाकर चीनी सरकार को अलग करना और चीन से इन देशों की निर्भरता कम करना है. 


आसान भाषा में बोले तो IPEF एक ऐसा मंच मुहैया कराने की कोशिश कर रहा है जिसकी मदद से इसमें शामिल देश अपने व्यक्तिगत मांगों और जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बातचीत के लिए साथ आ सके. इस इनिशिएटिव के जरिए अमेरिका क्लीन एनर्जी, डिकार्बनाइजेशन, इन्फ्रास्ट्रक्चर और सप्लाई चेन में सुधार जैसे साझा हित के मुद्दों पर एशिया के देशों के साथ पार्टनरशिप करेगा.


भारत ने IPEF में शामिल होने का फ़ैसला क्यों किया? 


भारत के IPEF में शामिल होने का सबसे बड़ा कारण माना जाता है कि इस पहल को हिंद प्रशांत क्षेत्र में व्यापक समर्थन मिल रहा है. ऐसे में भारत का शामिल ना होना उसे अलग-थलग कर देता और हाशिए पर पड़े रहना देश के लिए फ़ायदेमंद नहीं होता, क्योंकि सरकार ने व्यापार और जलवायु संबंधी मसलों पर अपना रुख़ बहुत बदला है, जिससे वो एक सकारात्मक साझीदार के तौर पर उभर सके. बता दें कि यह पहली बार है, जब भारत, हिंद प्रशांत क्षेत्र की किसी बहुपक्षीय आर्थिक व्यवस्था का हिस्सा बना है. 


IPEF में कौन कौन से देश शामिल हैं 


इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) को अमेरिका आगे लेकर आया है और जापान ने भी इसमें शामिल होने में बहुत रुचि दिखाई है. फिलहाल इकनॉमिक फोरम 14 देश शामिल है. जिसके नाम हैं ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई, फिजी, भारत, इंडोनेशिया, जापान, कोरिया, मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम और अमेरिका.  भारत को छोड़कर हिंद-प्रशांत आर्थिक प्रारूप के बाकी सभी 13 सदस्यों ने सहयोग के सभी चारों बिंदुओं का हिस्सा बनने पर सहमति जताई है. इनमें व्यापार के अलावा आपूर्ति शृंखला, स्वच्छ अर्थव्यवस्था और निष्पक्ष अर्थव्यवस्था के सहयोग बिंदु शामिल हैं. 




भारत के कदम पर क्या बोला अमेरिका

भारतीय रुख के बारे में पूछे जाने पर अमेरिका की व्यापार प्रतिनिधि कैथरीन तेई ने कहा,'मैं इसे भारत के अलग रहने के रूप में नहीं देखूंगी, फिलहाल भारत इसका हिस्सा भर नहीं है.'


IPEF पर चीन ने क्या कहा 


इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क के बारे में चीन के विदेश मंत्री का कहना है कि चीन एशिया-प्रशांत इलाके में स्थायित्व और विकास को बढ़ावा देने का काम करता रहेगा. इस जवाब से ये संकेत मिलता है कि चीन की नजर इस बात पर है कि अमेरिका, जापान, भारत और दूसरे देश उसके सामने किस तरह की आर्थिक चुनौतियां पेश कर सकते हैं.