महाराष्ट्र: राज्य के गृहमंत्रालय ने बुधवार को एक सर्कुलर जारी करके दिल्ली पुलिस विशेष आस्थापना अधिनियम के तहत सीबीआई को महाराष्ट्र में दी गई जांच की सामान्य अनुमति वापस ले ली है. अब सीबीआई को अगर राज्य में किसी मामले की जांच करनी है तो उसे राज्य सरकार से विशेष इजाजत लेनी होगी.


महाराष्ट्र सरकार की ओर से लिया गया ये फैसला केंद्र और राज्य सरकारों के बीच लड़ाई की उस कड़ी का हिस्सा है जो बीते कई सालों से चली आ रही है. महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार ने सीबीआई के पर इसलिये कतरें हैं क्योंकि उसे डर था कि केंद्र सरकार महाराष्ट्र की तीन पार्टियों वाली सरकार के नेताओं को परेशान करने के लिये सीबीआई का इस्तेमाल कर सकती है.


सुशांत मामला, टीआरपी जांच सीबीआई को सौंपी गई


सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले को सीबीआई को सौंपे जाने का ठाकरे सरकार ने विरोध किया था. इसके बाद जब मुंबई पुलिस ने टीआरपी घोटाले की जांच शुरू की तो वहां भी सीबीआई घुस गई. उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक विज्ञापन एजेंसी चलाने वाले शख्स की शिकायत पर टीआरपी घोटाले से जुड़ी एक और एफआईआर दर्ज कर ली. एफआईआर दर्ज करने के तुरंत बाद उस मामले को उत्तर प्रदेश सरकार ने सीबीआई को सौंप दिया.


ये बात ठाकरे सरकार को अखर गई. सवाल उठाया गया कि जब मुंबई पुलिस टीआरपी घोटाले की जांच कर रही थी तो ऐसे में उत्तर प्रदेश पुलिस को मामला दर्ज कर सीबीआई को सौंपने की क्या जरूरत थी? दरअसल महाराष्ट्र में सीबीआई से जांच की मंजूरी छीनना एक राजनीतिक फैसला है. पहले सुशांत सिंह राजपूत के मामले और फिर टीआरपी घोटाले के मामले से जुड़ी एफआईआर जिस तरह से पहले बीजेपी शासित राज्यों में दर्ज की गई. फिर उन्हें सीबीआई को सौंप दिया गया उसने महाराष्ट्र की महाविकास गठबंधन सरकार के कान खड़े कर दिये. सरकार के तीनों घटक दलों के बीच ये चिंता जताई गई कि इस तरह का फार्मूला अपना कर बीजेपी शासित राज्यों में इन पार्टी के नेताओं के खिलाफ मामले दर्ज करवा कर उन्हें सीबीआई को सौंपा जा सकता है.


केंद्रीय एजेंसी अगर अपनी मर्यादा में रहती तो महाराष्ट्र सरकार को ये फैसला नहीं लेना पड़ता- संजय राउत


बीजेपी वैसे भी बीते सालभर से ठाकरे सरकार को अस्थिर करने का मौका ढूंढ रही है लेकिन अब तक कामियाब नहीं हो पाई है. बीजेपी की ओर ऐसी किसी भी चाल को रोकने के लिये ठाकरे सरकार ने सीबीआई के पर कतरने का फैसला किया. शिव सेना के सांसद संजय राउत ने एबीपी न्यूज से बातचीत में साफ कहा – “जिन राज्यों में बीजेपी की सरकार नहीं है वहां इस केंद्रीय एजेंसी का गलत इस्तेमाल हो रहा है. केंद्रीय एजेंसी अगर अपनी मर्यादा में रहती तो महाराष्ट्र सरकार को ये फैसला नहीं लेना पड़ता. कई और राज्य भी पहले इस तरह का फैसला ले चुके हैं”.


महाराष्ट्र से पहले साल 2018 में आंध्र प्रदेश की चंद्रबाबू नायडू सरकार और पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार भी सीबीआई से अपने अपने राज्यों में जांच की अनुमति वापस ले चुके हैं. अमूमन सीबीआई की भूमिका को लेकर विवाद तब खड़ा होता है जब सीबीआई उस राज्य में किसी मामले की जांच कर रही हो जहां केंद्र की सत्ता में मौजूद पार्टी का विरोधी दल सरकार में हो. सीबीआई के सियासी इस्तेमाल पर सुप्रीम कोर्ट भी कड़ी टिप्पणी कर चुका है. एक मामले की सुनावई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की तुलना पिंजरे में कैद तोते से की थी.


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