उद्धव ठाकरे ने क्यों मांगा मशाल चुनाव चिह्न और EC ने इसे क्यों दे दी मंजूरी, जानें
उद्धव ठाकरे गुट को मशाल चुनाव चिह्न के रूप में मिल गया है. इस मशाल चिह्न के पीछे भी एक रोचक कहानी है. इस आर्टिकल में जानिए मशाल के साथ शिवसेना का क्या नाता है.
Uddhav Thackeray Faction New Symbol: शिवसेना के दो प्रतिद्वंद्वी गुटों को सोमवार को चुनाव आयोग (Election Commission) से नए नाम मिल गए हैं. शिंदे खेमे को कल तक संभावित प्रतीकों की नई सूची सौंपने के लिए कहा गया है, जबकि उद्धव धड़े को एक प्रतीक - 'ज्वलंत मशाल' (मशाल) आवंटित किया गया है. दोनों गुटों ने त्रिशूल और गदा की मांग की थी, जिसे धार्मिक अर्थों का हवाला देते हुए खारिज कर दिया गया. दोनों गुट 'उगते सूरज' को भी चाहते थे, जिसे चुनाव आयोग ने द्रमुक का चुनाव चिन्ह बताया था.
बता दें कि चुनाव आयोग ने 8 अक्टूबर को शिवसेना (Shiv Sena) के नाम और चिह्न का इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी थी. वहीं 10 अक्टूबर को ठाकरे के नेतृत्व वाले गुट ने आदेश को रद्द करने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. इसी बीच अब चुनाव आयोग ने उद्धव ठाकरे गुट को नया नाम और चिह्न दे दिया है. चलिए अब इसके मायने समझते हैं.
'मशाल' ही क्यों?
चुनाव आयोग ने कहा कि 'ज्वलंत मशाल' का चिन्ह पहले समता पार्टी को आवंटित किया गया था, जिसकी 2004 में मान्यता रद्द कर दी गई थी. आयोग ने कहा कि उसने ठाकरे गुट के अनुरोध के बाद 'ज्वलंत मशाल' को 'मुक्त प्रतीक' के रूप में सूचीबद्ध करने का निर्णय लिया था. हालांकि, शिवसेना का ज्वलंत मशाल चिन्ह से पुराना नाता है.
1985 में इसी चुनाव चिह्न पर जीता था इलेक्शन
पार्टी ने 1985 में एक ज्वलंत मशाल चिह्न पर चुनाव जीता था. उस समय शिवसेना के पास एक समर्पित चुनाव चिह्न नहीं था. सातवीं महाराष्ट्र विधानसभा में शिवसेना के एकमात्र विधायक छगन भुजबल ने मझगांव निर्वाचन क्षेत्र से ज्वलंत मशाल चिह्न पर जीत हासिल की थी. भुजबल और पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर जोशी सहित शिवसेना के अन्य उम्मीदवारों ने पार्टी के लिए एक समर्पित प्रतीक के अभाव में चुनाव लड़ने के लिए विभिन्न चिह्नों का चयन किया था. अन्य प्रतीक उगते सूरज, बल्ले और गेंद थे.
'मैंने ज्वलंत मशाल को चुना था'
भुजबल ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "मैंने ज्वलंत मशाल को चुना था, क्योंकि यह क्रांति का प्रतीक था और इसने महाराष्ट्र के लोगों को एक नया रास्ता दिखाया." 1985 के चुनाव को याद करते हुए भुजबल ने कहा कि तब चुनाव प्रचार काफी हद तक दीवार पेंटिंग पर आधारित था और मशाल बनाना काफी आसान भी था.
उन्होंने कहा, "तब हमारे पास चुनाव लड़ने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए मैं भी वॉल पेंटिंग करता था. जलती हुई मशाल बनाना सबसे आसान था. मैंने अपने अभियान के दौरान इसे आकर्षित किया और यह मतदाताओं के लिए आकर्षक था. इसने मुझे ऐतिहासिक जीत दिलाई. मैं तब विधानसभा में शिवसेना का अकेला विधायक था."
अब राकांपा में हैं छगन भुजबल
भुजबल, जो अब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के एक वरिष्ठ नेता हैं, ने कहा कि विधानसभा में उनकी जीत के बाद ज्वलंत मशाल के प्रतीक पर शिवसेना की जीत की यात्रा हर जगह शुरू हुई. उन्होंने कहा, "मुझे यकीन है कि उद्धव ठाकरे के लिए यह दोहराया जाएगा और ज्वलंत मशाल प्रतीक शिवसेना को महाराष्ट्र की राजनीति में नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा." गौरतलब है कि 1989 में शिवसेना को स्थायी रूप से एक राज्य पार्टी का दर्जा मिला और चुनाव आयोग ने शिवसेना को चुनाव चिह्न के रूप में धनुष और तीर सौंपा था.
ये भी पढ़ें-
CM नीतीश और लालू पर अमित शाह ने साधा निशाना, बोले- सत्ता के लिए चढ़ाई जेपी के विचारों की बलि