B.R Ambedkar Death Anniversary: जाति मुक्त भारत का ख्वाब हैं बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर. असमानता में समानता की तलाश हैं बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर. मंदिर में प्रवेश और सार्वजनिक तालाब से पानी पीने के हक वाले आंदोलन का नाम है बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर. भारत के राष्ट्र निर्माण के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में एक हैं बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर. छुआछुत और जातिय आधार पर अमानवीय व्यवहार के खिलाफ एक बुलंद आवाज है बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर. बाबासाहेब अंबेडकर को अपने जीवन काल में अनेक बार केवल इसलिए भेदभाव सहना पड़ा क्योंकि वह छोटी जाति के थे. समाज के इस दौहरे रवैये के खिलाफ बाबासाहेब ने आवाज़ उठाई.
अंबेडकर के पिता रामजी मालोजी सकपाल और माता भीमाबाई हिंदू महार जाति से संबंध रखते थे. यह जाति उस समय अछूत मानी जाती थी. कबीरपंथ से जुड़ाव होते हुए भी उन्होंने अपने बच्चों को हिंदू ग्रंथों को पढ़ने के लिए सदैव प्रोत्साहित किया. महाभारत और रामायण को पढ़ने के लिए उन्होंने विशेष जोर दिया. यही वजह थी कि अंबेडकर ने बचपन में ही बहुत से हिन्दू ग्रंथों का गहन अध्ययन कर लिया था. हिन्दू धर्म के आदर्शवादी और आध्यात्मिक विचारों से वो बहुत प्रभावित थे, परन्तु सरकारी स्कूल में जब पढ़ने जाते थे तो अपनी जाति के लिए सामाजिक प्रतिरोध और अस्पृश्य व्यवहार देख बहुत दुखी हो उठते थे.
उनको छोटी जाति के बच्चों के साथ कक्षा से बाहर बैठना पड़ता था. वहीं पानी पीने के लिए उनको उपर से ही बर्तन में पानी भरकर गिराया जाता था. इन सभी भेदभाव की वजह से बाबासाहेब के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा. वह छुआछूत के सख्त खिलाफ थे. यही कारण उनके धर्म परिवर्तन का भी बना. उनको लगा कि उच्च जाति के लोगों की मानसिकता को बदलने के लिए आवाज उठाना जरूरी है. बाबासाहेब जो बचपन में ही हिन्दू घर्म ग्रंथों का अध्यन कर चुके थे उन्होंने स्वीकार किया कि उन धर्म ग्रंथों का बहिष्कार करना जरूरी है जो जाति व्यवस्था के गुण गाते हैं.
14 अक्टूबर 1956 को बाबासाहेब ने बौद्ध धर्म अपनाया
यह वही तारीख है जब बाबासाहेब ने अपने समर्थकों के साथ मिलकर हिन्दी धर्म को त्याग बौद्ध धर्म अपनाया था. नागपुर में किया गया यह धर्म परिवर्तन इतिहास के सबसे बड़े धर्म परिवर्तनों में एक था. अंबेडकर सारी जिंदगी जाति प्रथा को खत्म करने का प्रयास करते रहे. इसके लिए उन्होंने पहले हिन्दुओं को एकजुट करने का प्रयास करते रहे लेकिन जब उन्हें उसमें सफलता नहीं मिली तो उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया. उन्होंने वहां खड़े लोगों को 22 शपथ दिलाई जो उन्होंने खुद तैयार की थी. इस सभा में उन्होंने कहा,'मैं हिन्दू जन्मा जरूर हूं इसमें मेरा कोई बस नही था लेकिन मैं हिन्दू रहकर मरूंगा नहीं.' उनके बौद्ध धर्म अपनाने के पीछे बौद्ध धर्म में छुआछूत और जाति प्रथा जैसी कुरीति का न होना था. हालांकि यह धर्म परिवर्तन था या मत परिवर्तन इसको लेकर बहस आज भी जारी है.
कई बार निचली जाति की वजह से हुआ अपमान
पूरी जिंदगी बाबासाहेब को उनकी जाति की वजह से अपमानित होना पड़ा. ऐसे कई मौके आए जब उनकी पहचान सिर्फ उनकी जाति की वजह से की गई. उन्हें ऐसे कई बार जातिगत दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा जिसका उन्हें शारीरिक और मानसिक तौर पर बड़ा कष्ट हुआ. एक बार खानदेश के दौरे पर स्टेशन पर दालितों ने उनका खूब स्वागत किया. वहीं उन्हें तांगे पर सवारी करके जाना था लेकिन तांगेवाले ने उनके साथ बैठकर जाने से मना कर दिया ये कहकर कि वो अछूत जाति के हैं. जिसके बाद अछूत जाति के तांगे वाला उन्हें लेकर चला जोकि नौसीखिया था जिस वजह से तांगा पलट गया और अम्बेडकर को गंभीर चोटों आईं. उन्हें लबें वक्त तक पैर की चोट परेशान करती रही.
इसके अलावा अपने उपनाम को लेकर होने वाले भेदभाव के कारण उन्होंने उसे बदल लिया था. दरअसल अंबेडकर का उपनाम सकपाल था जो कि एक निचली जाति का है और इसी कारण उन्होंने अपना उपनाम अंबेडकर रख लिया.
स्कूल में नहीं मिला था संस्कृत पढ़ने का मौका
अंबेडकर की संस्कृत भाषा में गहरी दिलचस्पी थी, वह अपने स्कूल में भी इस भाषा को पढ़ना चाहते थे. लेकिन उस समय संस्कृत को देववाणी यानि कि देवों के बोलने वाले भाषा माना जाता था. उस समय केवल ब्राह्मण जाति में पैदा होने वाले बच्चों को ही संस्कृत पढ़ने दी जाती थी. निचली जाति में जन्म लेने की वजह से अंबेडकर स्कूल में चाहकर भी संस्कृत नहीं पढ़ पाए. हालांकि बाद में विदेश में पढ़ते हुए उन्होंने 7 भाषाओं में महारत हासिल की.
हिन्दू कोड बिल लागू करने की मांग की
अंबेडकर मानते थे कि कानूनी मदद से से भी छूआछूत प्रथा को खत्म किया जा सकता है. आजादी के बाद नेहरू के मंत्रिमंडल में अंबेडकर कानून मंत्री बने जहां उन्होंने हिन्दू कोड बिल लागू करने की मांग की जिसका जबरदस्त विरोध हुआ. विरोध इतना था कि अम्बेडकर ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. लेकिन बाद में हिंदू कोड बिल लागू हुआ.