नई दिल्ली: पंजाब और हरियाणा के किसान आज राजधानी दिल्ली में किसान कानूनों का व्यापक विरोध प्रदर्शन करने जा रहे हैं. 'दिल्ली चलो' के नारे के तहत किसान दिल्ली की ओर कूच करेंगे. किसान मजदूर संगठन के मुताबिक अखिल भारतीय स्तर पर यह आंदोलन सरकारी कार्यालयों के साथ-साथ केंद्र सरकार और बीजेपी समेत उसके सहयोगी दलों के खिलाफ भी किया जाएगा.
किसान आंदोलन के चलते पुलिस प्रशासन भी पूरी तरह सतर्क है. पुलिस प्रशासन ने दिल्ली से लगती सीमा पर पर चौकसी बढ़ा दी है. 12 कंपनी फोर्स बाहर से बुलाई गई है, जिनमे सीआरपीएफ और आरएएफ के जवान हैं. फरीदाबाद के जिलाधीश यशपाल यादव ने जिले में धारा-144 लागू कर दी है. वहीं दिल्ली मेट्रो की सभी लाइन पर कुछ चुनिंदा स्टेशनों के बीच की सर्विस नहीं मिलेगी.
किसानों को किस बात की है नाराजगी
किसानों के आंदोलन का सबसे बड़ा कारण नए किसान कानून की वजह से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के खत्म होने का डर है. अब तक किसान अपनी फसल को अपने आस-पास की मंडियों में सरकार की ओर से तय की गई MSP पर बेचते थे. वहीं इस नए किसान कानून के कारण सरकार ने कृषि उपज मंडी समिति से बाहर कृषि के कारोबार को मंजूरी दे दी है. इसके कारण किसानों को डर है की उन्हें अब उनकी फसलों का उचित मुल्य भी नहीं मिल पाएगा.
पंजाब और हरियाणा में किसान कानून का विरोध सबसे ज्यादा देखा जा रहा है. इन राज्यों में सरकार को मंडियों से काफी ज्यादा मात्रा में राजस्व की प्राप्ति होती है. वहीं नए किसानों कानून के कारण अब कारोबारी सीधे किसानों से अनाज खरीद पाएंगे, जिसके कारण वह मंडियों में दिए जाने वाले मंडि टैक्स से बच जाएंगे. इसका सीधा असर राज्य के राजस्व पर पड़ सकता है.
सरकार और बिल के बीच असमंजस
केंद्र सरकार अपने बयानों में कह रही है कि वह एमएसपी जारी रखेगी, इसके साथ ही देश में कहीं भी मंडियों को बंद नहीं होने दिया जाएगा, लेकिन सरकार ने इस बात को नए कानून में नहीं जोड़ा है. जिससे किसानों में भारी मात्रा में असंतोष और असमंजस की स्थिति बनी हुई है.
नए किसान कानून में सरकार ने जिस व्यवस्था को जोड़ा है. उसमें कारोबारी किसान से मंडी के बाहर अनाज खरीद सकता है. अभी तक मंडी में किसान से अनाज की खरीद पर व्यापारी को 6 से 7 प्रतिशत का टैक्स देना होता था. वहीं मंडी के बाहर अनाज की खरीद पर किसी भी तरह का कोई टैक्स नहीं देना होगा. इससे आने वाले समय में मंडियां पूरी तरह से खत्म हो जाएंगी और किसान सीधे तौर पर व्यापारियों के हवाले होगा. उसे उनकी फसल पर तय दाम से ज्यादा या कम भी मिल सकता है.
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