कोरोना पर सर्वदलीय बैठक बुलाने से घबरा क्यों रही है सरकार ?
इस चर्चा से ही विपक्षी दलों को सरकार की कमियों का पता चलता है और उसी आधार पर वे अपने सुझाव देते हैं कि इन खामियों को दूर करने के लिए सरकार को और क्या-क्या करने की तत्काल जरुरत है.सरकार उन सुझावों पर अगर अमल करती है,तो विपक्षी दलों को सरकार की बेवजह आलोचना करने का कोई मौका नहीं मिलता.
नयी दिल्लीः कोरोना के लगातार बढ़ते कहर को देख कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री से सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग उठाकर जिम्मेदार विपक्ष होने का उदाहरण दिया है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि ऐसी भयानक महामारी के मौजूदा माहौल में खुद सरकार ने अब तक ऐसी बैठक बुलाने की पहल आखिर क्यों नहीं की? देश में किसी बड़ी आपदा के आने पर या किसी मुल्क से युद्ध की स्थिति में सर्वदलीय बैठक बुलाने की परंपरा पहले भी रही है. इसके दोतरफा फायदे होते हैं.एक तो यह कि तमाम विपक्षी दलों को सरकार तफसील से यह बताती है कि वह इस आपदा या महामारी से कैसे निपट रही है और आगे की तैयारी क्या है.
इस चर्चा से ही विपक्षी दलों को सरकार की कमियों का पता चलता है और उसी आधार पर वे अपने सुझाव देते हैं कि इन खामियों को दूर करने के लिए सरकार को और क्या-क्या करने की तत्काल जरुरत है. सरकार उन सुझावों पर अगर अमल करती है,तो विपक्षी दलों को सरकार की बेवजह आलोचना करने का कोई मौका नहीं मिलता. एक स्वस्थ व मजबूत लोकतंत्र की सबसे बड़ी निशानी यही है कि सरकार संसद के प्रति जवाबदेह होती है और संसद में चूंकि विपक्षी दलों का भी प्रतिनिधित्व है,लिहाज़ा वह विपक्ष के प्रति भी उतनी ही जवाबदेह है.
सोनिया गांधी की इस मांग को सियासी चश्मे से देखने के बजाय सरकार को यह देखना होगा कि कोरोना से लड़ने में सरकार आखिर कहां चूक रही है और इसमें हमारा सिस्टम किस हद तक जिम्मेदार है. जाहिर है कि ऐसी बैठक के जरिये दस साल तक देश को चलाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह या अन्य दलों के नेता अपने अनुभव के आधार पर अगर कुछ सुझाव देते हैं और सरकार उन पर अमल करती है,तो इससे देशवासियों को ही फायदा मिलेगा. सोनिया ने आज यह मांग करते हुए एक बुनियादी मुद्दा उठाया है.उन्होंने
कहा कि ''कोविड का संकट 'सरकार बनाम हम' की लड़ाई नहीं है, 'बल्कि हम बनाम कोरोना' है. हमें एक राष्ट्र के तौर पर इस लड़ाई को लड़ना होगा. मेरा मानना है कि मोदी सरकार को कोविड के हालात को लेकर तत्काल सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए.''
वैसे महामारी के इस दौर में विपक्ष जिस तरह के आरोप सरकार पर लगा रहा है,हो सकता है कि उसमें सौ फीसदी सच्चाई न हो लेकिन देश की जनता अस्पतालों के भीतर व बाहर जो संकट झेल रही है,उसे ये हक़ीक़त ही नजर आता है. शायद इसीलिए सोनिया को यह सवाल उठाना पड़ा कि, ''मोदी सरकार क्या कर रही है? लोगों की पीड़ा और दर्द को कम करने की बजाय उसने जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों से पल्ला झाड़ लिया है. ''लिहाजा वक़्त का तकाजा है कि ऐसे तमाम आरोपों का जवाब देने के साथ ही देशवासियों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताने के लिए मोदी सरकार सर्वदलीय बैठक बुलाने से पीछे न हटे.
ग़ौरतलब है कि पिछले साल कोरोना संक्रमण की वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों से चर्चा करने के बाद पीएम मोदी ने इसकी जानकारी सबसे पहले सर्वदलीय बैठक के जरिये ही देश को दी थी.उन्होंने 4 दिसंबर को हुई इस बैठक में कहा था, "भारत में वैक्सीन वितरण को लेकर विशेषज्ञता और क्षमता अन्य देशों की तुलना में बेहतर है. टीकाकरण के क्षेत्र में हमारे पास एक बहुत बड़ा और अनुभवी नेटवर्क है. हम इसका पूरा फायदा उठाएंगे.तब उन्होंने यह भी कहा था कि, मैं सभी राजनीतिक दलों के नेताओं से अपने सुझाव लिखित रूप में भेजने की अपील करता हूं. मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि उनपर गंभीरता से विचार किया जाएगा." तभी कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने यह सवाल उठाया था कि प्रधानमंत्री यह स्पष्ट करें कि सभी भारतीयों को मुफ्त कोरोना वैक्सीन कब तक मिलेगी.