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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

RCEP समझौते पर भारत ने इन 5 वजहों से नहीं किए दस्तखत, जानें- क्या है पूरा मामला

मोदी सरकार ने ऐन मौके पर क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) समझौते पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया है. ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर भारत ने यह कदम क्यों उठाया और क्या है इसकी 5 बड़ी वजहें.

नई दिल्ली: भारत सरकार ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) समझौते में शामिल होने से इनकार कर दिया है. बता दें कि दुनिया के सबसे बड़े मुक्त व्यापार समझौते से बाहर रहने का फैसला भारत ने यूं ही नहीं लिया है. एशिया-प्रशांत क्षेत्र में बन रहे आरसीईपी में कारोबार का तराजू संतुलित करने में सात साल की कोशिशों में नाकामयाबी हाथ लगने के बाद भारत को यह फैसला लेना पड़ा है.

आरसीईपी से इनकार के भारतीय फैसले में अपने बाजार को चीनी ड्रेगन की गिरफ्त से बचाने की फिक्र साफ नजर आती है. बातचीत की मेज पर भारत की चिताएं भी दुनिया की उत्पादन महामशीन चीन से अपने घरेलू उद्योग को बचाने और आर्थिक स्वतंत्रता बनाए रखने वाली ही ज़्यादा थी.

सरकारी सूत्रों के मुताबिक आरसीईपी का मौजूदा स्वरूप अपने उन लक्ष्यों को पूरा नहीं करता जिनके साथ वार्ता की प्रक्रिया शुरू हुई थी. वर्तमान में आरसीईपी न तो संतुलित है और न ही समान न्याय करने वाला है. जिन चिंताओं और मुद्दों का समाधान न मिल पाने के कारण भारत ने आरसीईपी की मेज से वापस लौटना ही मुनासिब समझा वो कुछ इस तरह हैं-

आयात बढ़ोतरी के खिलाफ अपर्याप्त सुरक्षा प्रावधान

सूत्रों का कहना है कि भारत की कोशिश अचानक होने वाली आयात बढ़ोतरी के मुकाबले पर्याप्त सुरक्षा प्रावधान हासिल करने की थी. यानी यदि किसी उत्पाद के आयात में अचानक से बहुत बढ़ोतरी होती है तो अपने आप आयात शुल्क बढाने का अधिकार मिले. इस तरह के प्रावधान से भारत को अपनी एन्टी डंपिंग दीवार मजबूत करने में मदद मिलती. खासतौर पर चीन जैसे मुल्क के साथ करोबार में ऐसे प्रावधान बेहद ज़रूरी हैं जिसके पास न केवल सस्ते उत्पादन की क्षमता है बल्कि उत्पाद सरप्लस भी उपलब्ध हैं. लेकिन आरसीईपी समझौते के मौजूदा प्रावधान ऐसे सुरक्षा प्रावधान मुहैया नहीं कराते हैं.

शुल्क कटौती साल 2014 रखने का मुद्दा

किसी भी शुल्क कटौती व्यवस्था में बेस वर्ष का बड़ा महत्व है. इसके तहत यदि एक वस्तु पर आयात शुल्क 2014 में 20 फीसद था तो नए समझौते के बाद उसे घटाकर 15 या 10 फीसद करना होगा. वहीं, यदि 2019 में उसी उत्पाद पर आयात शुल्क 30% है तो कटौती को 25 या 20 प्रतिशत तक लाया जा सकता है. सरकारी सूत्रों के अनुसार भारत की कोशिश थी कि समझौते के लिए आयात शुल्क कटौती का आधार वर्ष 2014 की बजाए 2019 को रखा जाए.

ज़ाहिर है इसके पीछे बड़ी वजह थी कि भारत ने 2014 से 2019 के बीच करीब 3000 उत्पादों पर आयात शुल्क को बढ़ाया है. यह बढ़ोतरी अकारण नहीं की गई है बल्कि इस तरह के कदम कारोबारी घाटे का तराजू संतुलित करने की कोशिश में उठाए गए हैं. मौजूदा स्थिति में अकेले चीन के साथ भारत का कारोबारी घटा 50 अरब डॉलर से ज़्यादा है. वहीं आरसीईपी में शामिल 15 मुल्कों के साथ भारत के कारोबारी घाटे (अधिक आयात और कम निर्यात) का आंकड़ा 100 अरब डॉलर से ज़्यादा है. इस तरह के प्रावधान से भारत को अपने घरेलू बाजार को सस्ते आयात से बचाने और देशी उत्पादों की प्रतिस्पर्धी बढ़त बनाए रखने का मौका मिलता.

उद्गम स्थान प्रावधानों में सख्ती

सूत्रों के मुताबिक यह भारत की एक प्रमुख मांगों में से एक था कि रूल्स ऑफ ऑरिजिन के प्रावधान ऐसे हों जिनसे किसी भी देश को टैरिफ लाइन्स के दुरुपयोग से रोका जा सके. यहां खतरा चीन जैसे मुल्क से है. इसे कुछ इस तरह समझा का सकता है कि चीन में अगर किसी उत्पाद की कीमत 100 रुपये है और वो उस उत्पाद को वियतनाम भेजता है जहां बेहद मामूली वेल्यू एडिशन के बाद उसी उत्पाद को 102 रुपये के दाम पर भारत को बेच दिया जाता है. इस चतुराई के सहारे चीन जैसा मुल्क अपने उत्पादों के लिए भारतीय बाजार में दाखिल होने वाले दरवाज़ों को लांघने का रास्ता तलाश सकता है. लिहाज़ा भारत चाहता था कि आरसीईपी में रूल्स ऑफ ओरिजिन के प्रावधान इन गलियारों को बंद करने वाले हों ताकि वेल्यू एडिशन के बाद उत्पाद के मूल्य में कम से कम इतनी बढ़ोतरी हो जिससे तर्कसंगत करार किया जा सके.

चीन के साथ असंतुलित अंतर

भारत और चीन के बीच व्यापार घाटा वैसे ही दोनों देशों के रिश्तों में फांस बना हुआ है. ऐसे में भारत की कोशिश आरसीईपी में चीन के साथ अपने कारोबारी संतुलन घटाने के लिए टैरिफ लाइन डिफरेंस ज़्यादा रखने की थी. यानी भारत चाहता है कि चीन भारतीय उत्पादों के लिए अधिक दरवाजे खोले और बदले में भारत कम चीनी वस्तुओं को घटी शुल्क दरों पर आयात की इजाजत देगा.

गैर आयात शुल्क बाधाएं और बाजार में पैठ की इजाज़त

सरकारी सूत्रों के अनुसार गैर शुल्क बाधाएं और बाजार में पैठ को लेकर भी भारत को आरसीईपी वार्ताओं में कोई ठोस भरोसा हासिल नहीं हो पाया. गैर शुल्क बाधाएं भारत के सेवा क्षेत्र और पेशेवरों के लिहाज से खासा महत्वपूर्ण बिंदु है. भारत की कोशिश अपने पेशेवरों और सेवाओं के लिए अधिक सहूलियत हासिल करने की थी.

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