भारतीय सेना ने 10 सैन्य छावनियों को नागरिक प्राधिकारियों को सौंपने की योजना बनाई है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस संबंध में कागजी कार्रवाई की प्रक्रिया जारी है. जिन छावनियों का शहरी स्थानीय निकायों में विलय होने जा रहा है उसमें देहरादून, देवलाली, नसीराबाद, बबीना, अजमेर, रामगढ़, मथुरा, शाहजहांपुर, क्लेमेंट टाउन और फतेहगढ़ शामिल हैं. 



डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय सेना की मध्य कमान, दक्षिण पश्चिमी कमान और दक्षिणी कमान उत्तराखंड, महाराष्ट्र, राजस्थान, झारखंड और उत्तर प्रदेश सरकारों के साथ समन्वय में हैंडओवर अभ्यास पूरा करने की प्रक्रिया को जल्द ही अंतिम रूप दिया जाएगा. 


क्या है भारतीय सेना की योजना?


सेना के सूत्रों ने जानकारी दी कि छावनी क्षेत्रों को हटाने की प्रक्रिया से संबंधित ड्राफ्ट नोटिफिकेशन रक्षा मंत्रालय ने मार्च में ही जारी किया था. बताया गया कि नोटिफिकेशन पर प्रतिक्रिया देने के लिए आठ सप्ताह का समय नियुक्त किया गया था. दरअसल, रक्षा मंत्रालय की 62 छावनियों को पुरानी औपनिवेशिक विरासत बताते हुए खत्म करने की योजना है. छावनी के भीतर मौजूद सैन्य क्षेत्र  सैन्य स्टेशनों में तब्दील किए जाएंगे और नागरिक क्षेत्रों को स्थानीय नगरपालिका अधिकारियों को सौंपा जाएगा. 


इससे पहले हिमाचल प्रदेश में योल छावनी- 9 कोर का मुख्यालय भी नागरिक अधिकारियों को सौंपा गया था और उसी की तर्ज पर एक साल बाद 10 अन्य छावनियों को लेकर फैसला किया गया. खबर है कि सिकंदराबाद पर फिलहाल कोई निर्णय नहीं हुआ. 


तैयार किए दिशा-निर्देश


मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नागरिक क्षेत्रों के अधिग्रहण और राज्य नगरपालिकाओं के साथ उनके विलय को लेकर सरकार की तरफ से दिशा-निर्देशों को तैयार कर लिया गया है. दिशा-निर्देशों के मुताबिक, अधिग्रहण किए क्षेत्र में नागरिक सुविधाओं और नगरपालिका सेवाओं को प्रदान करने कि लिए बनी परिसंपत्तियों पर राज्य सरकार या नगरपालिकाओं को मालिकाना अधिकार निःशुल्क हस्तांतरित होंगे. कैंटोनमेंट बोर्ड की परिसंपत्तियां और देनदारियां भी नगरपालिका को ही सौंपी जाएंगी. 


क्यों लिया ये फैसला? 


ब्रिटिश काल के दौरान बनी इन छावनियों में सैन्यकर्मी और उनके परिवार रहा करते थे. कहा गया कि बीते कई सालों में शहरों का विस्तार हुआ, बड़ी संख्या में नागरिक इन छावनियों के नजदीक रहा करते हैं और कई बार सड़क पहुंच जैसे मुद्दों पर टकराव की स्थिति देखने को मिली है. देश की आजादी के समय छावनियों की संख्या 56 थी और बाद में छह और छावनियों को जोड़ा गया. 


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