भारत नई विदेश व्यापार नीति लाने में क्यों कर रहा है देरी?
सरकार ने बीते दो साल से व्यापार नीति नहीं जारी की है. पहले भी कोविड संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए मौजूदा पॉलिसी को ही बढ़ा दिया गया था.
केंद्र सरकार ने सोमवार यानी 26 सितंबर को इस समय लागू विदेश व्यापार नीति (2015-20) को छह महीनों के लिए आगे बढ़ाने का फैसला किया है. जिसका मतलब है कि नई विदेश व्यापार नीति (FTP) लाने में अभी 6 महीने का और समय लगेगा.
दरअसल वर्तमान में लागू विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) 2015-20, 30 सितंबर तक थी. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि इस समय सीमा के खत्म होते ही केंद्र सरकार नई विदेश व्यापार नीति लागू करेगी. लेकिन सरकार ने पुरानी नीति को ही छह महीने और बढ़ा दिया है. यह 1 अक्टूबर से प्रभावी होगा.
बता दें कि सरकार ने बीते दो साल से व्यापार नीति नहीं जारी की है. पहले भी कोविड संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए मौजूदा पॉलिसी को ही बढ़ा दिया गया था और अब एक बार फिर नई व्यापार नीति को लाने की समयसीमा 6 महीने आगे बढ़ा दी गई है. इस बीच सवाल उठता है कि आखिर भारत नई विदेश व्यापार नीति लाने में देरी क्यों कर रहा है?
दरअसल विदेश व्यापार से जुड़े तमाम संगठनों का ऐसा मनना है कि विश्व की चुनौतियों और रुपये की स्थिति में आ रहे भारी उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखते हुए फिलहाल मौजूदा नीति को ही जारी रखना सही होगा. संगठनों का कहना है कि दुनियाभर के कई देश फिलहाल मंदी के हालात से गुजर रहा है और मुद्राओं में भी बड़ी गिरावट दर्ज की जा रही है. यह एक नई व्यापार नीति लाने का वक्त नहीं है.'
विदेश व्यापार से जुड़े तमाम संगठनों के अनुसार नई विदेश व्यापार नीति को नए वित्त वर्ष की शुरुआत से लागू करना वाजिब होगा. मौजूदा नीति को अगले छह महीनों के लिए बढ़ाए जाने के बारे में विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) एक अधिसूचना जारी करेगा.
इस फैसले को लेने के बाद वाणिज्य विभाग ने एक बयान जारी करते हुए संवाददाताओं को बताया कि, निर्यात संवर्धन परिषदों और निर्यातकों से बार-बार अनुरोध प्राप्त करने के बाद, सरकार से ऐसा करने का आग्रह करने के बाद विस्तार दिया गया.
वाणिज्य मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव अमित यादव कहा कि वर्तमान में चल रहे विदेश व्यापार नीति को मार्च 2023 तक के लिए बढ़ा दिया गया है. इसकी अवधि 30 सितंबर को ही समाप्त होने वाली थी. यादव ने कहा कि उद्योग संगठनों और निर्यात संवर्धन परिषदों जैसे विभिन्न क्षेत्रों से मौजूदा व्यापार नीति को ही फिलहाल बनाए रखने का अनुरोध किया गया था. उन्होंने कहा कि विदेश व्यापार से जुड़े सभी संबंधित पक्षों के साथ चर्चा के बाद यह फैसला किया गया है.
क्या होती है विदेश व्यापार नीति
विदेश व्यापार नीति सरकार द्वारा जारी किया गया एक कानूनी दस्तावेज है, यह दास्तावेज विदेश व्यापार (विकास और विनियमन) अधिनियम 1992 के तहत प्रवर्तनीय है. आसान शब्दों में समझे तो विदेश व्यापार (विकास और विनियमन) अधिनियम 1992 के तहत इस नीति में बदलाव किया जा सकता है.
विदेश व्यापार नीति को बनाने का मुख्य उद्देश्य भारत में लागत, लेन-देन, समय को कम करके व्यापार को सुविधाजनक बनाना है. इस नीति में व्यापार करने के नियम होते हैं और प्रौद्योगिकी प्रवाह, अप्रत्यक्ष संपत्ति जैसे कई नियम को लेकर सरकार की स्थिति को दर्शाती है.
निर्यातक संगठनों के महासंघ फियो के महानिदेशक अजय सहाय ने पीटीआई से बातचीत में कहा कि केंद्र के इस फैसले पर बात करते हुए कहा कि नई विदेश व्यापार नीति को लागू करने से टालने का यह फैसला समझदारी भरा है. उन्होंने कहा, “फिलहाल रूस यूक्रेन युद्ध, आर्थिक स्थिति खराब होने जैसे तमाम कारणों के बाद कई देशों में मंदी के हालात बन रहे हैं और मुद्राओं में भी बड़ी गिरावट देखी जा रही है. यह एक नई व्यापार नीति लाने का वक्त नहीं है.”
बता दें कि भारत का निर्यात चालू वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों में 17.68 प्रतिशत बढ़कर 193.51 अरब डॉलर रहा है. इसी दौरान आयात कहीं ज्यादा 45.74 प्रतिशत बढ़कर 318 अरब डॉलर हो गया. इस तरह अप्रैल-अगस्त की अवधि में देश का व्यापार घाटा बढ़कर 124.52 अरब डॉलर हो गया है.
उद्योग को बढ़ावा देने पर फोकस
नई विदेश व्यापार नीति के तहत केंद्र सरकार छोटे और घरेलू उद्योग को बढ़ावा देने पर काम कर सकती है. इसमें मुक्त व्यापार समझौता पर जोर रहेगा. फिलहाल सरकार FTA को लेकर कई देशों के साथ बात कर रही है. इस बीच ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों के साथ भी मुक्त व्यापार समझौते पर बात चल रही है. ऐसे में छोटे और मध्यम उद्योगों को मदद मिलेगी.
हर जिले में बनेगा एक्सपोर्ट हब
मिली जानकारी के अनुसार नई व्यापार विदेश नीति के तहत हर जिले में एक्सपोर्ट हब बनाने की कोशिश होगी. वाणिज्य मंत्रालय ने हर जिले के लिए एक्सपोर्ट प्रमोशन कमेटी बना दी है अब उसके लिए जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर पर काम चल रहा है. इसमें लगभग 2500 करोड़ तक का खर्च आने की संभावना है.
ये भी पढ़ें:
Photos: जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे के अंतिम संस्कार में शामिल हुए पीएम नरेंद्र मोदी, दी श्रद्धांजलि