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'मैं कानपुर की रहने वाली हूं और वो पंजाब का...', श्रद्धा केस के बाद क्या सोचते हैं लिव-इन में रहने वाले लोग

Live-in Relationships: लिव-इन रिलेशनशिप की कोई कानूनी परिभाषा अलग से कहीं नहीं लिखी गई है लेकिन ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिनमें सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे संबंधों की वैधता को बरकरार रखा है. 

दिल्ली के महरौली में श्रद्धा मर्डर केस का मामला पिछले कुछ दिनों से लगातार चर्चा का विषय बना हुआ है. आफताब अमीन पूनावाला नाम के शख्स के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली श्रद्धा का अपने ही बॉयफ्रेंड के हाथों किए गए कत्ल ने पूरे देश को सन्न कर दिया है. वर्तमान में इस केस की छानबीन जारी है और हर रोज नए नए खुलासे भी हो रहे हैं. लेकिन इस हत्याकांड के बाद जिस एक मुद्दे को लेकर लोग नाराज नजर आ रहे हैं, वह है लिव इन रिलेशनशिप. 

ट्विटर से लेकर फेसबुक तक हर सोशल साइट पर लोग लिव इन रिलेशनशिप के प्रति आक्रोश जाहिर कर रहे हैं. हाल ही में केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर ने भी इसे लेकर विवादित बयान दिया था. उन्होंने कहा, 'देश में लिव-इन रिलेशनशिप पर रोक लगा दिया जाना चाहिए.' 

हालांकि ये पहली बार नहीं है जब बिना शादी किए एक दूसरे के साथ एक ही घर में रहने पर सवाल उठा है. इस मामले पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं. किसी की नज़र में ये सामाजिक और नैतिक मूल्यों के खिलाफ है तो कोई इसे मूलभूत अधिकारों और निजी ज़िंदगी का मामला मानता है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर लिव इन रिलेशनशिप है क्या और इसे लेकर भारत में क्या कानून हैं और लिव इन में रहने वाले कपल इस पर क्या कहते हैं? 


मैं कानपुर की रहने वाली हूं और वो पंजाब का...', श्रद्धा केस के बाद क्या सोचते हैं लिव-इन में रहने वाले लोग

दिल्ली के मयूर विहार फेज-3 में पिछले तीन साल से लिव इन में रह रही रश्मि (बदला हुआ नाम) ने कहा, ' मैं कानपुर की रहने वाली हूं और मेरा पार्टनर पंजाब का, हम दोनों एक दूसरे से 4 साल पहले मिले थे. एक साल तक हम दोनों ने एक दूसरे को डेट किया फिर लिव इन में रहने का फैसले लिया. मेरे लिए किसी से भी शादी करने से पहले लिव-इन रिलेशनशिप में रहना इसलिए जरूरी है ताकि हम ये पता कर सकें कि मैं अपने पार्टनर के साथ कंपैटिबल हूं या नहीं. जब से श्रद्धा मर्डर केस का मामला सामने आया है सबने लिव इन रिलेशनशिप को शक की निगाहों से देखना शुरू कर दिया है. हालांकि बिना शादी के एक साथ रहना पहले भी आसान नहीं था. मुझे कई बार बिना शादी के अपने पार्टनर के साथ रहने पर जज किया जाता है.  हमारी पीढ़ी के लोग तो फिर भी इसे स्वीकार कर चुके हैं लेकिन आज भी समाज के बुजुर्ग वर्ग इसे अनैतिक मानते हैं'.

वहीं लगभग डेढ़ साल से साथ रह रहे विकास सिंह और प्रिया का भी कुछ ऐसा ही मानना है. विकास कहते हैं कि, 'बिना शादी के एक साथ रहने का फैसला हमने इसलिए लिया क्योंकि हम दोनों को ही पारंपरिक विवाह व्यवस्था कोई दिलचस्पी नहीं है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हमें साथ रहने का हक नहीं है. लिव इन में रहते हुए हम एक दूसरे का सम्मान करते हैं और एक दूसरे के जरूरतों का ख्याल भी रखते हैं. हालांकि शुरुआत में ये आसान नहीं था.'

प्रिया कहती हैं, 'साथ में घर लेने के कईं दिनों बाद तक भी मैं लोगों को ये बताने में असहज थी कि मैं अपने पार्टनर के साथ लिव इन में रह रही हूं. लोग तरह तरह की धारणाएं बनाते हैं. हाथ से निकल गए, अपने मन के मालिक हैं, संस्कार जैसी चीज है.. ये तो कुछ ऐसे शब्द हैं जो मैंने कई बार अपने आसपास के लोगों से सुने हैं.'


मैं कानपुर की रहने वाली हूं और वो पंजाब का...', श्रद्धा केस के बाद क्या सोचते हैं लिव-इन में रहने वाले लोग

क्या है लिव इन रिलेशनशिप 

पिछले कुछ सालों में नई पीढ़ी के युवाओं के बीच लिव इन रिलेशनशिप में रहने का चलन तेजी से बढ़ा है. दो व्यस्क जब अपनी मर्जी से बिना शादी किए एक छत के नीचे रहते हैं तो उसे लिव-इन रिलेशनशिप कहते हैं. इसकी कोई कानूनी परिभाषा अलग से कहीं नहीं लिखी गई है लेकिन ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिनमें सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे संबंधों की वैधता को बरकरार रखा है. 

लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के अनुसार सबसे पहले साल 1950 में, गोकुल चंद बनाम परवीन कुमारी मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पत्नी और पति के रूप में एक महिला और पुरुष का कई सालों तक एक साथ रहना शादी ही माना जाएगा.

इसके बाद साल 1978 में सुप्रीम कोर्ट ने बद्री प्रसाद बनाम डायरेक्टर ऑफ कंसोलिडेशन के मामले की सुनवाई के दौरान बिना शादी किए एक ही घर में रहने को मान्यता दी थी. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि दो व्यस्क लोगों का लिव-इन रिलेशनशिप में रहना किसी भी भारतीय कानून का उल्लंघन नहीं है. कोर्ट ने कहा कि कोई व्यस्क जोड़ा अगर काफी लंबे वक्त से एक साथ रह रहा है, तो उस रिश्ते को शादी ही माना जाएगा. इस तरह कोर्ट ने 50 साल के लिव-इन रिलेशनशिप को वैध ठहराया था. 

इसके अलावा साल 2006 में सुप्रीम ने एक केस की सुनवाई के दौरान कहा था कि कुछ लोगों की नज़र में लिव इन में रहना 'अनैतिक' माने जाने के बावजूद ऐसे रिश्ते में रहना कोई 'अपराध नहीं है'. 


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लिव-इन रिलेशनशिप कब आता है अपराध की श्रेणी में?

इस सवाल के जवाब में वकील दीपक शर्मा ने एबीपी से बातचीत करते हुए कहा कि लिव-इन-रिलेशनशिप में दो एडल्ट आपसी सहमति से एक साथ रहते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कई मामले की सुनवाई के दौरान लिव इन को मान्यता भी दी है. ऐसी स्थिति में अगर पुरुष पार्टनर महिला के साथ किसी तरह की मारपीट या घरेलू हिंसा करता है तो लिव इन रिलेशन में रहने वाली महिला घरेलू हिंसा एक्ट की धारा-12 के तहत केस दर्ज करा सकती है. इसके अलावा हिंसा की शिकार हुई महिला प्रोटेक्शन ऑर्डर की भी डिमांड रख सकती है. यह मांग वह  घरेलू हिंसा एक्ट की धारा-18 के तहत रख सकतीं हैं. 

घरेलू हिंसा के मामले में शिकायत सीधा मजिस्ट्रेट को की जा सकती है और अगर पुरुष पार्टनर मजिस्ट्रेट का फैसला मानने से इनकार करता है तो ऐसी स्थिति में उसे धारा-31 के अंतर्गत एक साल की जेल और जुर्माना हो सकता है. 

शादीशुदा होते हुए कोई लिव इन रिलेशनशिप रह सकता है? 

इस सवाल के जवाब में वकील दीपक ने कहा कि वर्तमान समय में भारत में इस पर कोई पार्लियामेंट का बनाया हुआ कानून नहीं है लेकिन कई केसों की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने अपने फैसले में विवाह के होते हुए लिव इन को परिभाषित किया है और समझाया है. 

साल 2021 के जून में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें एक कपल लिव इन में रहना चाहते थे. हालांकि इस कपल में से महिला की शादी पहले ही हो चुकी थी. ऐसे में कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया और साथ ही 5 हजार का जुर्माना भी लगा दिया था. 

वहीं लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2022 में एक सुनवाई के दौरान पंजाब  हाई कोर्ट ने कहा कि विवाह के होते हुए लिव इन में रहना किसी भी प्रकार का कोई अपराध नहीं है. उन्होंने कहा कि दो बालिग व्यक्ति एक दूसरे सहमति के साथ लिव इन में रह सकते हैं इसपर कोई केस नहीं बनेगा क्योंकि वर्तमान में हमारे देश में एडल्ट्री को अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया है. लेकिन अगर ये दोनों पक्षकार आपस में शादी कर लेते हैं तो फिर आपराधिक केस बन सकता है. 


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लिव इन रिलेशन के दौरान पैदा हुए बच्चे को पैतृक संपत्ति का अधिकार

अगर लिव इन में रहते हुए किसी कपल का बच्चा होता है तो वह संतान माता पिता की संपत्ति में उत्तराधिकार होगा.  लिव इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चे को पहली बार वैधता बालसुब्रमण्यम Vs सुरत्तयन मामले में मिली थी. उस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोई भी महिला या पुरुष काफी सालों तक बिना शादी के साथ रहते हैं, तो एविडेंस एक्ट की धारा-114 के तहत इसे शादी माना जाएगा. वहीं इस बीच जन्म लिया बच्चे को भी वैधता मिलेगी और उसका पैतृक संपत्ति में अधिकार भी होगा. 

 

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