क्यों सिकुड़ रहा खादी का बाजार, सोनिया गांधी ने बताया सरकार के किस कदम से खतरे में आया ‘भारत की आज़ादी का लिबास’?
Khadi Udyog: भारत में पिछले कुछ साल में खादी की खरीद में लगातार गिरावट आई है. इसके पीछे सरकार की उदासीनता भी दिख रही है, जो राष्ट्रीय ध्वज कभी खादी से बनता था उसकी जगह अब पॉलिएस्टर ने ले ली है.
Khadi Under Threat: भारत में तेजी से ठप हो रहे खादी उद्योग को लेकर कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला बोला है. सोनिया गांधी ने इसके लिए केंद्र सरकार की खराब नीतियों और खादी के प्रति उदासीनता को जिम्मेदार ठहराया है. द हिंदू अखबार में लिखे एक लेख में सोनिया गांधी ने बताया है कि कैसे एक तरफ सरकार हर घर तिरंगा जैसे अभियान से देशभक्ति को बढ़ावा देने की बात कहती है, लेकिन इसी झंडे को बनाने के लिए खादी की जगह पॉलिएस्टर का विकल्प देकर स्वदेशी खादी को खत्म कर रही है.
सोनिया गांधी ने आगे लिखा है, "स्वतंत्रता दिवस से पहले के सप्ताह (9-15 अगस्त) में प्रधानमंत्री की ओर से ‘हर घर तिरंगा’ अभियान के आह्वान ने देश के लोगों में सामूहिक रूप से अपने राष्ट्रीय ध्वज और देश के लिए इसके महत्व पर विचार करने का अवसर दिया. भले ही हमने झंडा खरीदकर उसे अपने घरों पर लगाया, झंडा यात्रा निकाली, लेकिन इससे एक बात कहीं खोकर रह गई. दरअसल, हमने इस दौरान मशीन से निर्मित पॉलिएस्टर झंडों को बड़े पैमाने पर खरीदा, जिसमें अक्सर चीन और अन्य जगहों से कच्चा माल आयात किया जाता है."
खादी उद्योग पर हमला
आर्टिकल में आगे लिखा है, "भारतीय ध्वज संहिता के अनुसार, ऐतिहासिक रूप से राष्ट्रीय ध्वज हाथ से काते और हाथ से बुने ऊनी/कपास/रेशमी खादी से बना होना चाहिए. खादी भले ही मोटा और मजबूत होता है महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय आंदोलन के नेतृत्व में खादी को खुद बुना था. खादी एक साथ हमारे गौरवशाली अतीत के साथ ही भारतीय आधुनिकता और आर्थिक जीवन शक्ति का प्रतीक है. हालांकि 2022 में हमारी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ पर, सरकार ने कोड में संशोधन (“30.12.2021 के अपने आदेश के अनुसार”) किया. इसके तहत मशीन से बने...पॉलिएस्टर...बंटिंग को भी शामिल किया गया और साथ ही पॉलिएस्टर झंडों को माल और सेवा कर (जीएसटी) से छूट दी गई. हालांकि खादी को बढ़ावा देने वाले लोगों ने इस फैसले को गलत बताया. उनका कहना है कि ऐसे समय में जब अपने देश के राष्ट्रीय प्रतीकों की सेवा के लिए खुद को नए सिरे से बांधना उचित होता, सरकार ने उन्हें अलग रखने और बड़े पैमाने पर बाजार में मशीन से बने पॉलिएस्टर कपड़े को आगे बढ़ाने का फैसला किया."
हड़ताल तक का लेना पड़ा सहारा
सोनिया गांधी ने आर्टिकल में बताया है कि कैसे कर्नाटक के हुबली जिले में कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ (केकेजीएसएस), जो भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) की ओर से मान्यता प्राप्त देश की एकमात्र राष्ट्रीय ध्वज निर्माण इकाई है, को भारत के खादी उद्योग की राज्य प्रायोजित हत्या की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए अनिश्चितकालीन हड़ताल का सहारा लेना पड़ा. अब देश में मुख्य रूप से चीन से आए पॉलिएस्टर और उसी कपड़ों से राष्ट्रीय ध्वज बन रहा है.
जीएसटी का भी पड़ा बोझ
उन्होंने आगे लिखा है, "...इसके अलावा हथकरघा और हस्तशिल्प परंपराओं - खादी या अन्य को विकसित करने में सरकार की उदासीनता, नोटबंदी, दंडात्मक जीएसटी और कोविड-19 लॉकडाउन ने हमारे हजारों हथकरघा श्रमिकों को अपने इस काम को छोड़ने को मजबूर कर दिया. हमारी हथकरघा परंपराएं लगभग खत्म होती जा रहीं हैं. जीएसटी हमारे हथकरघा श्रमिकों पर बोझ बना हुआ है, जिसमें अंतिम उत्पाद के साथ-साथ कच्चे माल (धागे, रंग और रसायन) पर भी कर लगाया गया है. हमारे कामगारों की हथकरघों को जीएसटी से छूट देने की लगातार मांग पर किसी ने ध्यान नहीं दिया है, जबकि बिजली और कपास के रेशे की बढ़ती लागत उन्हें दबा रही है."
लगातार आ रही है खादी की खरीद में गिरावट
इन सबके बीच खादी की सरकारी खरीद में गिरावट आई है. इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि सरकार भारतीय हथकरघों के लिए वैश्विक दर्शक बनाने में विफल रही है. ऐसे समय में जब दुनिया भर के उपभोक्ता संधारणीय सोर्सिंग और निष्पक्ष व्यापार को महत्व देने लगे हैं, जिस कपड़े पर गांधीजी का सत्याग्रह आधारित था, उसे वैश्विक स्तर पर संजोया जाना चाहिए था. इसके बजाय, उनके अपने देश में भी बापू की खादी को उसकी पहचान से वंचित किया जा रहा है. सरकार बाजार को विनियमित करने में विफल रही है, और अर्ध-मशीनीकृत चरखों से काती गई खादी को पारंपरिक हाथ से काती गई खादी के समान ही धड़ल्ले से बेचा जा रहा है. यह हमारे खादी कातने वालों के लिए नुकसानदेह है, जिनकी मजदूरी उनके कठोर शारीरिक श्रम के बावजूद प्रतिदिन 200-250 रुपये से अधिक नहीं है.
खादी के आगे का रास्ता लंबा है, और इसके लिए हमारे समाज और अर्थव्यवस्था में भारत की हथकरघा परंपराओं के स्थान की फिर से कल्पना करने की आवश्यकता है... लेकिन पहला कदम भी स्पष्ट है: इसकी शुरुआत खादी को हमारे राष्ट्रीय ध्वज को धारण करने वाले एकमात्र कपड़े के रूप में बहाल करने से होनी चाहिए... जिस कपड़े को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इतने भावपूर्ण ढंग से “भारत की स्वतंत्रता की पोशाक” के रूप में वर्णित किया था, उसे हमारे राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक के रूप में अपना सही स्थान मिलना चाहिए.
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