Raaj Ki Baat: राहुल गांधी के साथ भगत सिंह की प्रतिमा पर पुष्पांजलि से लेकर कांग्रेस दफ्तर में प्रेस कॉन्फ्रेस की तस्वीरों तक कन्हैया कुमार की कांग्रेस में एंट्री को लेकर सियासी विश्लेषण का दौर जारी है. हर जहन में यही सवाल है कि लेफ्ट के लाल को कांग्रेस के कायाकल्प की चिंता अचानक कैसे सताने लगी. सवाल ये उठ रहा है कि कांग्रेस को कन्हैया में ऐसा क्या सियासी मुनाफा दिखा कि उन्हें सिर आंखों पर बिठा लिया गया.
तो चलिए राज की बात में हम आपको आज यही बताने जा रहे हैं कि कन्हैया के कांग्रेस में जाने के पीछे की सियासी रणनीति क्या है. इस राज की बात को समझने के लिए आपको दिल्ली से लगभग 1 हजार किलोमीटर दूर पक रही सियासी खिचड़ी को करीब से देखना होगा. बस यूं समझिए कि उसी सियासी खिचड़ी में कन्हैया कुमार की एंट्री एक तड़का है जो कांग्रेस को पोषण दे न दे, लेकिन बिहार के सियासी स्वाद में चटकारे जरूर भर देगी.
तो आते हैं अब सियासत और समीकरणों पर. ये बात तो जगजाहिर है कि कांग्रेस पार्टी और संगठन अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है. हालात ये हैं कि न तो अब दल के साथ बड़े नेता हैं और न ही परिवार के 3 लोगों के सिवा कोई नेतृत्व. जो बचे हैं वो संभल नहीं रहे, ऐसे हालात में भविष्य की सियासी लड़ाई के लिए नया कैडर बनाने की तो बात ही क्या. लेकिन राज की बात ये है कि वर्तमान कैसा भी चुनौतीपूर्ण हो, भविष्य को बुलंद करने की कवायद कांग्रेस में शुरु हो गई है और उसी कवायद का एक कदम हैं कन्हैया कुमाऱ. कन्हैया कुमार को लेकर क्या रणनीति रची गई है वो हम आपको बताएंगे लेकिन उससे पहले ये बता दें कि भविष्य के लिए भूमिका बनाने के लिए ही हार्दिक पटेल की एंट्री भी कांग्रेस में करवाई गई और जिग्नेश उसी फॉर्मूले के तहत पार्टी में लाए गए हैं. तो एक के बाद एक युवा चेहरों की एंट्री के बीच आखिर कनहैया कुमार क्या करेंगे आपको वो बताते हैं.
दरअसल पहली राज की बात ये है कि कन्हैया को कांग्रेस में लाने के पीछे का दिमाग प्रशांत किशोर का है और दूसरी राज की बात ये है कि कन्हैया के जरिए कांग्रेस बिहार में सियासी बहार लाने की कोशिश करेगी. दरअसल बिहार की सियासत मे इस समय युवा चेहरे भले ही सत्ता में नहीं हैं लेकिन सियासी पटल के केंद्र में बने हुए हैं. चाहे बात तेजस्वी यादव की हो या फिर चिराग पासवान की. लेकिन कांग्रेस के पास कोई अपना चेहरा अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी नहीं था. ऐसे में कन्हैया की एंट्री से युवाओं की राजनीति में कांग्रेस का बड़ा चेहरा कन्हैया कुमार बनेंगे. चूंकि कन्हैया मीडिया में छाए रहते हैं, मुखर हो कर बोलते हैं लिहाजा उनकी कांग्रेस सदस्य के तौर पर बिहार में मौजूदगी ...मृतप्राय दल में जान सौ फीसदी फूंकेगी.
इस मामले में दूसरा फैक्टर ये है कि ओबीसी और मुस्लिम वर्ग को साधने के लिए तो हर दल लगा हुआ है लेकिन अगड़ो को अपने पाले में लाने की सोच नेपथ्य में है. लिहाजा कन्हैया कुमार के आने से जहां बिहार में बड़ा चेहरा कांग्रेस के लिए तैयार हो गया वहीं उनके भूमिहार समाज से आने की वजह से कांग्रेस अगड़ी जातियो के बीच भी पैठ बनाने की कोशिश कर सकती है. अगर कांग्रेस का ये फार्मूला सफल रहा तो लगभग 7 फीसदी वोटर्स तक सीधी पहुंच पार्टी की बन पाएगी. चूंकि आरजेडी के साथ गठबंधन पहले से ही है लिहाजा ओबीसी और मुस्लिम समाज तक पहुचंने की कोशिश तो पहले से जारी है ही.
कन्हैया कुमार को कांग्रेस में नपी तुली गणित के साथ लाया गया है. चूंकि भले ही सत्ता में जेडीयू है लेकिन कोई युवा चेहरा उनके पास नहीं है जो भविष्य में दल का झंड़ा बुलंद करे, ऐसा ही हाल बीजेपी का भी है.
सियासत की इसी परिस्थिति के बीच वर्तमान भले ही साथ नहीं दे रहा लेकिन भविष्य के आंकलन के हिसाब से कन्हैया की कांग्रेस में एंट्री आने वाले वक्त में कुछ सकारात्मक परिणाम दिखा सकती है. हालाकिं दूसरा पक्ष ये भी है कि पार्टी को ज्वाइन करते ही कन्हैया ने कांग्रेस को डूबता हुआ जहाज बता दिया...अगर वो तारनहार की सोच के साथ आए हैं हैं तो आने वाले वक्त में वो सिद्धू न साबित हो जाएं इस बात का खतरा भी समानांतर तौर से कांग्रेस के सामने बना रहेगा.
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