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बीजेपी नेता के विरोध के बीच इतिहास की नजर से समझिए टीपू सुल्तान की 'विवादित विरासत'

18वीं सदी के शासक टीपू सुल्तान ने ऐसा क्या किया है कि आज के तमाम पार्टियों के राजनेता आए दिन उनका जिक्र कर देते हैं? यहां तक की उर्दू, हिंदी और इंग्लिश लिटरेचर में भी टीपू सुल्तान का जिक्र है.

कर्नाटक बीजेपी अध्यक्ष नलिन कुमार कटील ने बुधवार को एक बयान दिया. कोप्पल जिले के येलबर्गा में एक रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि टीपू सुल्तान समर्थकों को "जंगल में" खदेड़ा जाए क्योंकि "केवल राम के भजन करने वालों" को "इस भूमि" पर रहना चाहिए. एक हफ्ते में ये दूसरी बार है जब 18वीं सदी के इस मैसूर के शासक का जिक्र किया गया. इससे पहले, उन्होंने आगामी विधानसभा चुनावों को हिंदुत्व विचारक सावरकर और टीपू सुल्तान की विचारधाराओं के बीच की लड़ाई करार दिया था. 

ऐसा पहली बार नहीं है जब टीपू सुल्तान चर्चा का विषय बने हैं. साल 2014 में भी टीपू सुल्तान ट्विटर पर ट्रेंड कर रहे थे. इसकी शुरुआत कर्नाटक से गणतंत्र दिवस परेड की एक झांकी से हुई थी. परेड में टीपू सुल्तान की एक बड़ी मूर्ति थी.

नया नहीं है टीपू का जिक्र

कांग्रेस नेता और मुंबई उपनगर मंत्री असलम शेख शहर के मालवणी इलाके में एक खेल के मैदान का नाम टीपू सुल्तान के नाम पर रखने की घोषणा कर चुके हैं. कर्नाटक के उच्च शिक्षा मंत्री सीएन अश्वथ नारायण ने मांड्या में हो रही एक रैली के दौरान कांग्रेस नेता सिद्धारमैया को उसी तरह खत्म करने के लिए कहा था, जिस तरह वोक्कालिगा प्रमुखों उरी गौड़ा और नांजे गौड़ा ने टीपू सुल्तान को खत्म किया था. 

पूर्व भारतीय राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद भी एक बार टीपू सुल्तान का जिक्र कर चुके हैं. कोविंद ने कहा था कि टीपू सुल्तान की मृत्यु एक नायक के रूप में हुई थी. वहीं पाकिस्तान के पूर्व पीएम इमरान खान भी टीपू सुल्तान को हीरो बता चुके हैं. 

ऐसे में जरूरी सवाल ये है कि टीपू सुल्तान का जिक्र क्यों किया जाता है और मैसूर के राजा की ऐसी कौन सी सच्चाई है जिसे समझना जरूरी है? 

टीपू सुल्तान का उदय

टीपू सुल्तान का जन्म 10 नवंबर, 1750 को वर्तमान बैंगलोर के देवनहल्ली में हुआ था. उनके पिता हैदर अली थे, जिनका उदय मैसूर के हिंदू शासक वोडेयार की सेना के सहारे हुआ था. हैदर अली का उदय जिस शासक के सहारे हुआ, उसी की सत्ता पर हैदर अली ने1761 में कब्जा कर लिया और 20 साल तक शासन किया.  इतिहास में साल था 1761 जिसमें मैसूर राज्य ने अपनी सीमाओं से लगे विवादित क्षेत्रों पर कब्जा किया. इस दौरान टीपू को राज्यकला और युद्धकला दोनों मामलों में शिक्षित किया गया था, केवल 15 साल की उम्र में टीपू ने अपनी पहली लड़ाई में हिस्सा लिया था. 

पिता की मौत के बाद मशहूर हुए टीपू की कट्टरता के किस्से

1782 में हैदर अली की मृत्यु हो गई, पिता की मौत के बाद टीपू की प्राथमिकता पिता से मिली विरासत को मजबूत करना था. इन इलाकों में मालाबार, कोडागु सबसे अहम थे.  इन क्षेत्रों में टीपू का शासन अक्सर उसकी कट्टरता और तानाशाही के लिए याद किया जाता है. 

यही वजह है कि साल 2017 में हुए विवाद के बाद ज्यादातर लोगों ने ये ट्वीट किया कि टीपू एक बर्बर राजा और हत्यारा था. इस मामले में किताब हिस्ट्री ऑफ टीपू सुल्तान: द टायरेंट ऑफ मैसूर के लेखक संदीप बालकृष्ण ने बीबीसी से बातचीत में तर्क दिया था कि टीपू सुल्तान एक मुस्लिम शासक था. अपने शासन के दौरान टीपू कई गांवों को ध्वस्त कर दिया. उसने हिंदू मंदिरों और ईसाई चर्चों को नष्ट कर दिया, और हजारों लोगों को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया.

टीपू के समय में खतरनाक युद्ध हुआ करते थे और विद्रोह करने वालों से सख्ती से निपटा जाता था. टीपू ने विद्रोहियों या षड्यंत्रकारियों को जो दंड दिया, उनमें जबरन धर्मांतरण और लोगों को उनके गृह क्षेत्रों से मैसूर में स्थानांतरित करना शामिल था. जिसमें कुछ आबादी को बेल्लारी जिले या दूसरे इलाकों में भी जबरन भेज दिया जाता था. कोडागू और मालाबार से लोगों को जबरदस्ती दूसरे शहरों और जिलों में भेजा गया. 

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट की मुताबिक इतिहासकार और 'टाइगर: द लाइफ ऑफ टीपू सुल्तान' के लेखक केट ब्रिटलबैंक कहते हैं कि टीपू 18 वीं शताब्दी में सभी धर्मों के शासकों के बीच मशहूर थे. वह एक अत्याचारी जरूर था, लेकिन ऐसा कहना गलत होगा कि उन्होंने जो काम किया वो किसी धर्म से प्रेरित होकर या किसी धर्म के लिए किया. उसने उस समय शासन और युद्ध करने के तौर तरीकों को अपनाया था.

ब्रिटलबैंक का कहना है कि टीपू ने यकीनन ही उन क्षेत्रों में जबरन धर्मांतरण का आदेश दिया था जहां कई बड़े मंदिर और मठ  हैं. इनमें श्रीरंगपटना में श्री रंगनाथ मंदिर और श्रृंगेरी में मठ शामिल हैं. यही वजह है कि बीजेपी नेता टीपू को हिंदू धर्म विरोधी के नजर से देखते हैं. लेकिन इतिहास से जुड़ी कई और किताबों को खंगालने तो उसमें टीपू की सच्चाई को लेकर कई और भी दावे किए गए हैं.

तो क्या टीपू का इतिहास सिर्फ मारकाट है?
2005 में छपी किताब 'हिस्ट्री ऑफ टीपू सुल्तान' में इस बात का जिक्र है कि टीपू के कोषाध्यक्ष में कई हिंदू मंत्री भी थे इनमें से एक कृष्ण राव नाम के भी मंत्री थे. ये किताब मोहिब्बुल हसन ने लिखी थी. 

सुब्बाराय चेट्टी ने अपनी किताब 'कन्फ्रंटिंग कॉलोनिज्म' में जिक्र किया है कि टीपू ने प्रसिद्ध रंगनाथस्वामी मंदिर सहित 156 हिंदू मंदिरों में दान भी दिया था. वहीं सीता राम गोयल की किताब टीपू सुल्तान: विलेन या हीरो में धार्मिक नरसंहार, पवित्र स्थानों को नष्ट करने और हिंदुओं, ईसाइयों का जबरन धर्मांतरण यहां तक की केरल के मोप्पिला जैसे मुसलमानों पर अत्याचार का जिक्र है. 

भारत के मशहूर इतिहासकार इरफान हबीब और ऑस्ट्रेलिया के केट ब्रिटलबैंक जैसे इतिहासकार भी हैं, जो मानते हैं कि टीपू सुल्तान पर धार्मिक असहिष्णुता के ये आरोप पक्षपाती ब्रिटिश इतिहासकारों ने लगाना शुरू किया था. 

रॉकेट युद्ध में 'सुल्तान' था टीपू

टीपू सुल्तान के शासनकाल अंग्रेज हुक्मरानों से लड़ाई का दौर था. इन लड़ाइयों के दौरान टीपू का आकर्षण यूरोपीय हथियारों की तरफ खूब गया.  इसी के मद्देनजर टीपू ने प्रौद्योगिकी में निवेश किया. युद्ध में लोहे के केश वाले रॉकेटों की शुरुआत का श्रेय टीपू सुल्तान को ही जाता है.

ऐसा नहीं है कि रॉकेट जैसे हथियारों का इस्तेमाल पहले युद्ध में नहीं किया गया था. टीपू और उसकी सेना ने एंग्लो-मैसूर युद्धों में पहले से ज्यादा आधुनिक युद्ध रॉकेट का इस्तेमाल करना शुरू किया.

कई रिसर्च ये भी दावा करते हैं कि टीपू के पिता हैदर अली ने रॉकेट का इस्तेमाल करना शुरू किया था टीपू ने बस इसे मॉडर्न रूप दिया. टीपू के रॉकेट मॉडल से अग्रेंज बुरी तरह घबरा गए और बाद में अंग्रेजों ने भी लड़ाई में टीपू के रॉकेट मॉडल का ही इस्तेमाल करना शुरू किया.

टीपू सुल्तान ने प्रशासनिक और आर्थिक सुधारों का भी बीड़ा उठाया. उन्होंने नए सिक्के पेश किए. मैसूर में एक नई भूमि राजस्व प्रणाली शुरू की. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक टीपू ने रेशम कीट पालन या रेशम कीट की खेती शुरू की. रेशम कीट पालन आज भी कर्नाटक में रोजगार का जरिया है. इसके अलावा, मैसूर में पहले गरीब महिलाओं को ब्लाउज पहने की इजाजत नहीं थी , टीपू ने व्यक्तिगत रूप से ऐसी महिलाओं को ब्लाउज और कपड़े पहुंचाए थे. 

टीपू की विरासत: अतीत को वर्तमान के चश्मे से देखना

टीपू पर किताब लिखने वाले केट ब्रिटलबैंक का तर्क है कि राजनीतिक गलियारे के दोनों किनारों पर टीपू को उस समय की राजनीतिक अनिवार्यताओं के अनुरूप एक मिथक बना दिया गया. भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान टीपू सुल्तान ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक बन गया था. 

उर्दू और अंग्रेजी साहित्य में टीपू सुल्तान

टीपू की छवि और शख्सियत ने साहित्य को भी खूब आकर्षित किया है, जिसमें न केवल भारतीय, पाकिस्तानी कलाकार बल्कि पश्चिमी लेखक जूल्स वर्ने भी शामिल हैं. 

पश्चिमी लेखकों के लिए टीपू सुल्तान मूंछों वाला, तलवारों और लोहे की जंजीरों के प्रति पागलपन की हद तक जूनून रखने वाला एक योद्धा था. मशहूर लेखक जूल्स वर्ने ने अपनी किताब 'अराउंड द वर्ल्ड इन 80 डेज, जर्नी टू द सेंटर ऑफ अर्थ' में टीपू सुल्तान और उसके भतीजे का जिक्र किया है. टीपू सुल्तान लिटरेचर की दुनिया में  "द टाइगर ऑफ मैसूर" के नाम से जाना जाता है. ये सरनेम एक ब्रिटिश उपन्यासकार जीए हेंटी ने ही दिया. जिन्होंने 1896 में "द टाइगर ऑफ मैसूर" नाम का एक उपन्यास लिखा था . पाकिस्तान के सरकारी चैनल पीटीवी ने 1997 में टीपू सुल्तान पर एक शो का प्रीमियर किया था. 20 एपिसोड के इस शो का नाम टीपू सुल्तान: द टाइगर लॉर्ड था.  

भारतीय टीवी और थिएटर का टीपू सुल्तान पर नजरिया

1990 के दशक की दूरदर्शन पीढ़ी को 'द स्वॉर्ड ऑफ टीपू सुल्तान' जरूर याद होगी.  संजय खान के निर्देशन में बने इस शो ने अपने भव्य सेट के लिए लोकप्रियता हासिल की थी. इसकी शूटिंग के दौरान मैसूर में मिड-प्रोडक्शन में आग भी लग गई थी. इसे लेकर भी टीपू सुल्तान सीरियल की खूब चर्चा हुई. इस अग्निकांड में 60 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी. संजय खान इस शो का चर्चित चेहरा बने.  60 एपिसोड लंबा शो 1990 से 1991 तक चला. इसके डीवीडी बॉक्स सेट अभी भी दुकानों और ऑनलाइन बेचे जा रहे हैं. 

टीपू सुल्तान और उनके शासनकाल पर कई उपन्यास कन्नड़ और कोंकणी भाषा में भी लिखे गए. 'द ड्रीम्स ऑफ टीपू सुल्तान' नामक एक कन्नड़ नाटक लिखा था. दूसरी भाषाओं में लिखे गए उपन्यासों के मुकाबले कन्नड़ी भाषा में लिखे गए उपन्यासों में टीपू के प्रति विनम्र नजरिया पेश किया गया है, क्योंकि इन सभी नाटकों और उपन्यासों में टीपू के जीवन के अंतिम दिनों को शामिल किया गया है. 

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