चुनावी 'घड़ी' में शरद पवार का साथ क्यों छोड़ रहे हैं उनके खासमखास?
कुछ लोग तो ये भी कयास लगा रहे हैं कि कहीं एनसीपी सिर्फ पवार खानदान तक ही सीमित होकर न रह जाए. वहीं एनसीपी प्रवक्ता नवाब मलिक का कहना है कि जो लोग सत्ता के भूखे थे वो पार्टी छोड़ रहे हैं.
![चुनावी 'घड़ी' में शरद पवार का साथ क्यों छोड़ रहे हैं उनके खासमखास? Why Leaders are leaving Sharad Pawar NCP before maharashtra assembly election चुनावी 'घड़ी' में शरद पवार का साथ क्यों छोड़ रहे हैं उनके खासमखास?](https://static.abplive.com/wp-content/uploads/sites/2/2019/09/16223500/Sharad-Pawar.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
मुंबई: अपने जिन करीबियों को लेकर शरद पवार ने 1999 में एनसीपी बनाई थी उनमें से करीब दर्जनभर नेता बीजेपी में शामिल हो गये हैं. कई विधायक, सांसद और पूर्व मंत्रियों ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से एन वक्त पहले उनका साथ छोड़ दिया. सातारा के सांसद और छत्रपति शिवाजी के वंशज उदयनराजे भोसले का बीजेपी से जुड़ना शरद पवार की पार्टी एनसीपी के लिये सबसे ताजा झटका है. भोसले से पहले एनसीपी के करीब दर्जनभर दिग्गज नेता जिनमें पूर्व विधायक, पूर्व मंत्री और सांसद शामिल हैं. ये सब शरद पवार का साथ छोड कर बीजेपी में चले गये.
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले एनसीपी छोड़ने वालों में राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री विजयसिंह मोहिते पाटिल और पूर्व मंत्री पदमसिंह पाटिल और मधुकर पिचड भी हैं, जिन्हें साथ लेकर शरद पवार ने 1999 में एनसीपी की स्थापना की थी. मुंबई में भी एनसीपी का एक बड़ा चेहरा सचिन अहिर और नवी मुंबई के दिग्गज नेता गणेश नाईक ने भी एनसीपी से खुद को अलग कर लिया.
सियासी हलकों में यही कहा जा रहा है कि शरद पवार आज खुद आयाराम-गयाराम की उसी रणनीति का स्वाद चख रहे हैं जिसपर अपने सियासी करियर में वे खुद अमल करते आये हैं. जिस तह से लोग एनसीपी छोड़कर जा रहे हैं उसपर चुटकी लेते हुए कई लोग अंदेशा जता रहे हैं कि कहीं एनसीपी सिर्फ पवार खानदान तक की ही सीमित न हो जाए.
आखिर पार्टी क्यों छोड़ रहे हैं नेता?
सवाल है कि आखिर इतने बड़े पैमाने पर लोग शरद पवार को क्यों छोड रहे हैं. सियासी जानकारों के मुताबिक इसके पीछे कई कारण हैं. एक कारण ये है कि कई दिग्गज नेता ऐसे हैं जो अपने दमखम पर सीट जीतने की ताकत रखते हैं फिर चाहे पार्टी चाहे जो भी हो. ऐसे नेताओं की कॉपरेटिव चीनी कारखानों और सहकारी बैंकों की शक्ल में खुद की जागीरें हैं, जिन्हें बरकरार रखने के लिये सरकारी आशीर्वाद जरूरी है.
पार्टी छोड़ने वाले कई नेता ऐसे भी हैं जिन्हें डर है की कहीं उनके खिलाफ भ्रष्टाचार और दूसरे आपराधिक मामलों की सरकार जांच न शुरू कर दे. उनके पुराने मामलों की फाइलें न खोल दी जायें. ऐसे लोगों के लिये बीजेपी से जुड़ना एक मजबूरी भी है. लोकसभा चुनाव नतीजों को देखकर कुछ नेताओं को लगता है कि अब एनसीपी का कोई भविष्य नहीं है और राजनीति में रहने के लिये अब बीजेपी और शिवसेना जैसी पार्टियों से जुड़ना जरूरी है.
बड़े पैमाने पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के पलायन से एनसीपी के बाकी नेताओं और कार्यकर्ताओं के मनोबल पर भी असर पड़ा है. एनसीपी से जुड़े कई लोग अब ये तय नहीं कर पा रहे कि अपने सियासी करियर को बरकरार रखने के लिये उन्हें आगे क्या करना चाहिये. जो नेता एनसीपी छोड़ कर गये हैं, उनके बारे में एनसीपी प्रवक्ता नवाब मलिक का कहना है कि वे सभी सत्ता के भूखे थे. इससे पार्टी के विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन पर कोई असर नहीं पड़ेगा. पुराने नेताओं के जाने से नए नेताओं को मौका मिलेगा. शरद पवार फिलहाल खुद इस मुद्दे पर कुछ कहने से बच रहे हैं.
उधर कांग्रेस और एनसीपी से अब इतने लोग बीजेपी में आ चुके हैं कि अब बीजेपी के लिये ये सवाल खड़ा हो गया है कि इनके लिये संगठन में कैसे जगह बनाई जाए. इस हफ्तेभर में विपक्षी पार्टियों के चंद और भी नेताओं के बीजेपी से जुड़ने की खबर है.
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