सूरत की एक निचली अदालत ने कुछ दिन पहले ही 'मोदी सरनेम' पर की गई टिप्पणी के मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को दोषी पाया है. सूरत कोर्ट के इस फैसले के चलते राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता भी खत्म हो गयी. इसका मतलब है कि अब राहुल गांधी आने वाले 6 सालों तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. हालांकि ये पूरा मामला अभी कोर्ट में विचाराधीन है.
इस फैसले के बाद विपक्ष के कई नेता उनके समर्थन में उतर गए है. वहीं पिछले कुछ सालों में कांग्रेस से दूरी बना कर रखने वाली तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी भी राहुल गांधी के समर्थन में आ गई है. उन्होंने सदस्यता रद्द किए जाने के फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि ''पीएम मोदी के न्यू इंडिया में बीजेपी के निशाने पर विपक्षी नेता हैं.''
ममता ने कहा कि, 'आपराधिक पृष्ठभूमि वाले बीजेपी नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाता है, विपक्षी नेताओं को उनके भाषणों के लिए अयोग्य ठहराया जाता है. आज, हमने अपने संवैधानिक लोकतंत्र के लिए एक नया निम्न स्तर देखा है.'' ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राहुल गांधी की सदस्यता जाने के बाद ममता बनर्जी का रुख कांग्रेस के लिए नरम हो गया है?
पिछले कुछ सालों से कांग्रेस से नाराज हैं ममता
राजनीति को लेकर एक कहावत बहुत मशहूर है कि यहां कोई किसी का स्थायी दुश्मन नहीं होता. यहां कब नेता एक दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं और कब एक दूसरे समर्थक इसे समझना सबसे ज्यादा मुश्किल है. अभी हाल ही की बात है जब मेघालय चुनाव के दौरान तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और कांग्रेस एक दूसरे पर जमकर पलटवार करने में लगे थे. वहीं पश्चिम बंगाल के सागरदिघी उपचुनाव में जब कांग्रेस की जीत हुई तब राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खुलेआम अपनी नाराजगी जाहिर की थी. उन्होंने कांग्रेस पर आरोप तक लगा दिया था कि वह बीजेपी के साथ मिल चुनाव लड़ रही है.
राहुल गांधी की सदस्यता जाने के बाद एकजुट हो सकता है विपक्ष
किसने सोचा था कि लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान कर चुकी टीएमसी अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राहुल गांधी के समर्थन में उतर आएंगी. लोकसभा से राहुल गांधी की अयोग्यता के बाद सभी पार्टी की टिप्पणी और बयानबाजी को देखें तो ये कहना गलत नहीं होगा कि राहुल गांधी की सदस्यता जाने के घटनाक्रम ने विपक्षी पार्टियों को एक दूसरे के नजदीक ला दिया है. यहां तक कि तृणमूल कांग्रेस, जिसने एनडीए सरकार के खिलाफ कांग्रेस के नेतृत्व वाले आंदोलन से दूर रहने की रणनीति अपनाई थी, अब भी साथ आने का संकेत दे रही है. टीएमसी का कांग्रेस के प्रति नरम रुख ऐसे भी देखा जा सकता है कि इस पार्टी ने कांग्रेस द्वारा आयोजित राजनीतिक कार्यक्रमों और विरोध प्रदर्शनों में पार्टी प्रतिनिधियों को भेजना भी शुरू कर दिया है.
बता दें कि कोर्ट के इस फैसले और राहुल गांधी की सदस्यता रद्द होने के पहले टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए 'गैर-कांग्रेसी, गैर-बीजेपी' तीसरा मोर्चा बनाने लक्ष्य पर काम कर रही थीं. यहां तक कि उन्होंने बंगाल में घोषणा तक कर दिया था उनकी पार्टी मई 2023 और 2024 में होने वाले पंचायत चुनावों में अकेले उतरेगी.
ममता बनर्जी कांग्रेस के प्रति गर्मजोशी क्यों दिखा रही हैं ?
अब सवाल उठता है कि कुछ दिनों पहले तक कांग्रेस पर जमकर वार करने वाली टीएमसी का कांग्रेस के प्रति गर्मजोशी का क्या कारण हो सकता है.
दरअसल साल 2019 के बाद से ही ईडी की सक्रियता पर विपक्षी पार्टियां गंभीर आरोप लगाती आई है. कई विपक्षी नेता ईडी के सक्रिय होने से बुरी तरह फंस भी चुके हैं. पिछले महीने ही यानी मार्च 2023 में देश की 14 विपक्षी पार्टियों ने केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई और ईडी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. विपक्षी दलों की ओर से कोर्ट में पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने बताया कि 95 फीसदी मामले विपक्षी नेताओं के खिलाफ हैं. हम गिरफ्तारी से पहले और गिरफ्तारी के बाद के दिशा-निर्देशों की मांग कर रहे हैं.
इस बीच राहुल गांधी की अयोग्यता से कांग्रेस के प्रति अन्य पार्टियों में सहानुभूति तो जागी ही है साथ ही साथ विपक्ष में भय भी पैदा हो रहा है. वहीं टीएमसी का कांग्रेस के प्रति गर्मजोशी दिखाने का एक कारण ये भी हो सकता है कि संकट की इस घड़ी में राहुल गांधी या कांग्रेस का साथ न देना आम जनता के बीच टीएमसी की छवि को खराब करेगा.
जब विपक्षी खेमे के अन्य नेता कांग्रेस के समर्थन में आवाज उठा रहे हैं और टीएमसी ऐसा नहीं करती है तो इसे न सिर्फ एक स्वार्थी कदम के रूप में देखा जाएगा. बल्कि यह बीजेपी और ममता के बीच कुछ मौन सहमति होने की अटकलों को भी बल देगा.
राहुल गांधी के सदस्यता रद्द किए जाने पर विपक्ष ने क्या कहा
अरविंद केजरीवाल: कांग्रेस नेता राहुल गांधी गांधी की सदस्यता रद्द किए जाने के बाद विपक्षी नेताओं की भी प्रतिक्रिया आई है. आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने राहुल गांधी और कांग्रेस के समर्थन में कहा, "देश में जो चल रहा है बहुत खतरनाक है. विपक्ष को ख़त्म करके ये लोग वन-नेशन वन-पार्टी का माहौल बनाना चाहते हैं, इसी को तो तानाशाही कहते हैं. मेरी देशवासियों से अपील है- हमें मिलकर आगे आना होगा, जनतंत्र बचाना है, देश बचाना है."
अरविंद केजरीवाल ने अपने सोशल मीडिया पर ट्वीट करते हुए कहा, "लोकसभा से राहुल गांधी गांधी जी का निष्कासन चौंकाने वाला है. देश बहुत कठिन दौर से गुज़र रहा है. पूरे देश को इन्होंने डरा कर रखा हुआ है. 130 करोड़ लोगों को इनकी अहंकारी सत्ता के खिलाफ एकत्र होना होगा."
अखिलेश यादव: समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा, "संसद की सदस्यता के अपहरण से राजनीतिक चुनौती ख़त्म नहीं हो जाती. सबसे बड़े आंदोलन संसद नहीं; सड़क पर लड़कर जीते गये हैं. जिन महोदय ने मानहानि का दावा किया है दरअसल ये उन्हें अपने उन लोगों पर करना चाहिए जो अपने देश को धोखा देकर विदेश भाग गये, जिससे उसके नाम-मान को हानि पहुंची है."
ममता बनर्जी: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ट्वीट करते हुए कहा, " पीएम मोदी के न्यू इंडिया में बीजेपी के निशाने पर विपक्षी नेता! "
बीजेपी ने क्या कहा
एक तरफ जहां राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द हो जाने पर विपक्ष एक सुर में भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साध रही है वहीं बीजेपी का कहना है कि ये कोई राजनीतिक निर्णय नहीं है और क़ानून की नज़र में सब बराबर हैं.
एसपीएस बघेल: केंद्रीय कानून और न्याय राज्य मंत्री एसपीएस बघेल ने सदस्यता रद्द किए जाने के इस फैसले को 'वैध' करार देते हुए भारतीय जनता पार्टी के एक एमएलए का ज़िक्र किया और बताया कि हाल ही में यूपी के एक पार्टी विधायक आपराधिक मामले में दोषी करार दिए गए थे जिसके बाद उन्हें विधानसभा की सदस्यता छोड़नी पड़ी.
प्रह्लाद जोशी: संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहते हैं, 'यह एक कानूनी फैसला है इस किसी राजनीतिक दल ने नहीं किया है. अगर इस फैसले का विरोध हो रहा है कि तो कोर्ट को ये स्पष्ट करना चाहिए कि वो किनका विरोध कर रहे हैं."
भूपेंद्र यादव: बीजेपी के वरिष्ठ नेता ने भूपेंद्र यादव ने कहा, "क्या एक पूरे समाज को चोर बोल सकते हैं? क्या कांग्रेस जैसी पार्टी के लिए छोटे समाज और ओबीसी समाज का अपमान करना और माफ़ी भी न मांगना ही अभिव्यक्ति की आज़ादी है. गाली देने में और आलोचना करने में अंतर है. वे (राहुल गांधी) ओबीसी समाज को गाली देने का काम कर रहे थे जिसकी वजह से उन्हें सजा हुई."
ममता राहुल गांधी से रही दूर लेकिन राजीव गांधी से अच्छे थे रिश्ते
आज भले ही पिछले कुछ सालों से ममता बनर्जी कई सार्वजनिक मंच पर राहुल गांधी पर निशाना साधती नजर आती रही हों लेकिन ममता बनर्जी का गांधी परिवार से रिश्तों पर नजर डालें तो दोनों के बीच अच्छे संबंध प्रधानमंत्री राजीव गांधी के जमाने से ही है. कुछ समय पहले तर भी गांधी परिवार से ममता बनर्जी की खूब बनती थी.
दरअसल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कभी कांग्रेस में हुआ करती थीं. उनके राजनीतिक सफर को इस मुकाम पर लाने में राजीव गांधी का बड़ा हाथ रहा है. साल 1994 में ममता बनर्जी को राजीव गांधी ने ही जादवपुर से लोकसभा कैंडिडेट बनाया था. इसके अलावा साल 1991 में लेफ्ट के कार्यकर्ताओं के साथ हुई भिड़ंत में जब ममता बनर्जी को चोट आई तो राजीव ने ही उनके इलाज का खर्च स्पॉन्सर किया था.
राहुल गांधी से क्यों दूर हुई ममता
ममता बनर्जी से कांग्रेस की दूरी बढ़ने की सबसे बड़ी और पहली वजह राहुल गांधी का वाम दलों की तरफ झुकाव है. दरअसल राहुल गांधी खुलकर सीताराम येचुरी को अपना मार्गदर्शक बताते हैं. बंगाल में पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने वाम दलों के गठबंधन में शामिल होकर ममता के खिलाफ चुनाव लड़ा था जिस पर ममता ने नाराजगी भी जताई थी.
ममता बनर्जी से कांग्रेस की दूरी का एक कारण अधीर रंजन चौधरी के साथ उनके अच्छे रिश्ते भी हैं. दरअसल अधीर रंजन शुरुआत से ही ममता के आलोचक रहे हैं. उन्होंने ही सबसे पहले बंगाल चुनाव में राहुल गांधी को लेफ्ट के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने की सलाह दी थी.