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विपक्षी एकता में ममता बनर्जी और मायावती क्यों नहीं दिखा रही हैं दिलचस्पी? 

बिहार की राजधानी में शुक्रवार यानी 23 जून को हुई बैठक कई मायनों में ऐतिहासिक रही. इसमें बिहार के सीएम नीतीश कुमार बीजेपी विरोधी 15 राजनीतिक दलों को एक मंच पर लाने में सफल रहे.

23 जून को बिहार की राजधानी पटना में गैर-बीजेपी पार्टियों की बैठक हुई. इस बैठक में राहुल से लेकर केजरीवाल तक और ममता से लेकर अखिलेश तक, करीब 15 विपक्षी दलों के बड़े नेता  मौजूद रहे. इन सभी पार्टियों के साथ आने का एक ही मकसद था, साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार को हराने के लिए दमदार विपक्ष तैयार करने की कोशिश करना.

राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में विपक्ष भारतीय जनता पार्टी को ‘वन इज टु वन’ फार्मूले से चुनौती देगा. जिसका मतलब है कि 450 लोकसभा सीटों पर विपक्ष बीजेपी के उम्मीदवार के खिलाफ सिर्फ एक उम्मीदवार को मैदान में उतारेगी.

हालांकि इन सब के बीच फिलहाल विपक्षी पार्टियों की सबसे बड़ी चुनौती होगी, अपने आपसी मतभेद भुलाकर एक साथ मैदान में उतरना. पटना में हुई बैठक में भी इन पार्टियों के बीच एक दूसरे के प्रति नाराजगी साफ नजर आ रही थी. एक तरफ जहां ममता बनर्जी ने उनके राज्य में कांग्रेस के रवैये पर नाराजगी जताई है, तो वहीं दूसरी तरफ केजरीवाल ने ये साफ कर दिया कि जब तक दिल्ली में केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ विपक्षी पार्टियों का समर्थन नहीं मिलेगा, तब तक वह विपक्षी दलों के गठबंधन में शामिल नहीं होंगे.

इतना ही नहीं इस बैठक में बीएपी शामिल नहीं हुई. ऐसे में सवाल उठता है कि मायावती और ममता बनर्जी जैसे बड़े नेता विपक्षी एकता में दिलचस्पी क्यों नहीं दिखा रहे, क्या है बीजेपी के खिलाफ ममता बनर्जी का फॉर्मूला?


विपक्षी एकता में ममता बनर्जी और मायावती क्यों नहीं दिखा रही हैं दिलचस्पी? 

बसपा सुप्रीमो मायावती क्यों रही बैठक से नदारद 

मायावती पटना में हुए इस बैठक से पहले कई बार सार्वजनिक मंच पर यह कहती रही हैं कि वह साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में अकेले ही मैदान में उतरेगी. यही कारण है कि किसी भी नेता ने मायावती से औपचारिक और अनौपचारिक रूप में संपर्क नहीं किया.

हालांकि मायावती के हाल ही में दिए बयानों से ऐसा लगता है कि अब बसपा प्रमुख का मन बदलने लगा है. बुधवार को बसपा की तरह से प्रेस नोट जारी किया गया था, जिसमें साफ तौर पर कहा गया है कि बसपा की नजर विपक्षी एकता पर है.

वहीं हाल ही में मायावती ने अमेरिका में राहुल गांधी के बयानों पर उठे विवाद का भी न सिर्फ समर्थन किया था बल्कि सुर में सुर मिलाती भी नजर आई थी. 

लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ ममता बनर्जी का फॉर्मूला

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि जिन राज्यों में कांग्रेस की जड़ें मजबूत होगी हम उन राज्यों में पार्टी का समर्थन करेंगे. कांग्रेस को भी बदल में जिन राज्यों में क्षेत्रीय दलों का गढ़ मजबूत हो वहां उनका समर्थन करना होगा.

साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में फिलहाल एक साल का समय बचा हुआ है. ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में किसी भी हालत में बीजेपी को जीतने नहीं देना चाहती है, और बीजेपी को कमजोर करने के लिए बिना शर्त समर्थन हासिल करना चाहती हैं. इसके साथ ही उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी मजबूत है, इसे देखते हुए कांग्रेस और सभी अन्य पार्टियों को उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का समर्थन करना चाहिए. 

कांग्रेस को 200 लोकसभा सीटों पर सीमित कर देना चाहती है ममता

ममता बनर्जी के अनुसार कांग्रेस पार्टी राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और गुजरात सहित लगभग 200 लोकसभा सीटों पर मजबूत है. इन सीटों पर उन्हें अपने मजबूत कैंडिडेट को उतारना चाहिए ताकि बीजेपी को कड़ी चुनौती दी जा सके. जबकि कांग्रेस को पश्चिम बंगाल, UP और बिहार में किनारा कर लेना चाहिए और यहां की स्थानीय पार्टी को समर्थन देना चाहिए. 

इन सीटों पर कांग्रेस का बीजेपी से सीधा मुकाबला


विपक्षी एकता में ममता बनर्जी और मायावती क्यों नहीं दिखा रही हैं दिलचस्पी? 

ऊपर दिखाए गए 162 लोकसभा सीटें ऐसी है जहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही मुकाबला होने वाला है. इसके अलावा 38 लोकसभा सीटें उन राज्यों की शामिल है, जहां क्षेत्रीय दल तो मजबूत स्थिति में हैं, लेकिन इन सीटों पर मुकाबला कांग्रेस से होता है. 

जिसमें पंजाब की कुल 13 सीटों में से 4 सीटें हैं, महाराष्ट्र की 48 में से 14 सीटें, यूपी की 80 में 5, बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 4, तेलंगाना की 17 लोकसभा सीटों में 6 और 5 सीटें आंध्र प्रदेश और केरल की हैं. 

पिछले  लोकसभा चुनाव में क्या रहे इन 200 सीटों के नतीजे 

साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में जिन 200 सीटों का उपर जिक्र क्या गया है उनमें से बीजेपी 168 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी और कांग्रेस सिर्फ 25 सीटें अपने नाम कर पाई थीं. वहीं 7 सीटें दूसरी पार्टियों ने जीती थीं. 

साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में इन 200 सीटों में बीजेपी 178 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. जबकि  कांग्रेस को सिर्फ 16 सीटें मिली थीं और 6 सीटें अन्य पार्टियों के खाते में चली गई थी.

विपक्षी एकता के लिए कांग्रेस को इन सीटों पर देनी होगी कुर्बानी 

अगर विपक्ष ममता बनर्जी के फॉर्मूले से आगे बढ़ती है तो कांग्रेस को पश्चिम बंगाल, जहां कुल 42 लोकसभा सीटें हैं, उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटें और बिहार में की 40 लोकसभी सीटों से खुद का दूर रखना होगा. 

क्या कांग्रेस पार्टी ममता बनर्जी के फॉर्मूले पर राजी होगी?

इस सवाल का फिलहाल कोई आधिकारिक जवाब तो पार्टी की तरफ से नहीं आया है लेकिन साल 2019 में कांग्रेस का वोट शेयर घटकर 19.4 प्रतिशत हो गया था. ऐसे में अगर पार्टी इस बार भी राष्ट्रीय स्तर पर अपने वोट शेयर को गिरने से रोकना चाहती है तो उन्हें उन सीटों पर ज्यादा ध्यान देना होगा जहां उनके जीतने के आसार है.  अगर पार्टी ऐसा करती है तो इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को अपना वोट शेयर बढ़ाने में मदद मिलेगी. 

दूसरी तरफ अगर कांग्रेस ममता बनर्जी के इस फ़ॉर्मूले को मानते हुए कम सीटों पर चुनाव लड़ती है और क्षेत्रीय पार्टियां ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब हो जाती है तो क्षेत्रीय पार्टियों का पलड़ा भारी हो सकता है यह क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस को पीएम पद की रेस से बाहर रखने के लिए एकजुट हो सकती हैं.


विपक्षी एकता में ममता बनर्जी और मायावती क्यों नहीं दिखा रही हैं दिलचस्पी? 

इस राज्य पर है सबकी नजर

साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में एनडीए को बिहार की 40 में से 39 सीटें मिली थीं. इसमें बीजेपी को 24 फीसदी वोट मिले थे, जबकि उसकी प्रमुख सहयोगी जेडीयू को करीब 22 फीसदी और एलजेपी को 8 फीसदी वोट मिले थे. लेकिन कुछ साल पहले ही जेडीयू और बीजेपी अलग हो गए. दोनों के अलग होने के बाद राज्य में राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल गया है.

पटना में हुए बैठक के दौरान विपक्ष का केंद्र पर वार

राहुल गांधी: शुक्रवार को पटना में हुए बैठक में शामिल हुए राहुल गांधी ने आरोप लगाया के मौजूदा माहौल में देश की नींव पर हमला हो रहा है.

पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती: जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी मौजूदा सरकार पर हमला करते हुए कहा कि जो कश्मीर से शुरू हुआ, वो अब पूरे देश में हो रहा है.

उमर अब्दुल्ला: कश्मीर के ही पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने भी बैठक के दौरान नरेंद्र मोदी नेतृत्व की सरकार पर कई आरोप लगाए. उन्होंने कहा, “मैं और महबूबा मुफ्ती ऐसे बदनसीब इलाके से ताल्लुक रखते हैं, जहां गणतंत्र का गला दबाया जा रहा है. कश्मीर में 5 साल से राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है.”

 

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