अफजाल अंसारी, अब्दुल्ला आजम और विक्रम सैनी... ये वो नाम हैं, जिनकी सदस्यता एमपी-एमएलए की फास्ट ट्रैक कोर्ट की वजह से चली गई. एमपी-एमएलए की फास्ट ट्रैक कोर्ट आजम खान और राहुल गांधी के मामलों में भी काफी सुर्खियों में रहा है.


सुर्खियों में रहने वाला यह फास्ट ट्रैक कोर्ट केस निपटाने में काफी फिसड्डी रहा है. 5 साल में सिर्फ 6 प्रतिशत केसों का ही इस कोर्ट में निपटारा हो पाया है. 2017 में देशभर दर्ज सांसदों-विधायकों के आपराधिक केस को जल्द निपटाने के लिए 10 फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना की गई थी.


दिलचस्प बात है कि सबसे अधिक माननीयों को सुनाने वाली उत्तर प्रदेश की फास्ट ट्रैक कोर्ट में ही सबसे अधिक मामले लंबित हैं. मध्य प्रदेश, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में पिछले 5 सालों में एक भी केस का निपटारा नहीं हो पाया है. तमिलनाडु में एक मामले में फास्ट ट्रैक कोर्ट ने सजा सुनाई है.


इस स्टोरी में एमपी-एमएलए की फास्ट ट्रैक कोर्ट, उसकी धीमा रफ्तार और उसके अधीन बड़े नेताओं के मामले में विस्तार से जानते हैं...




क्यों बना था फास्ट ट्रैक कोर्ट?
2017 में अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की सलाह दी थी. उपाध्याय का कहना था कि दागी नेताओं के खिलाफ केस दर्ज रहता है और वे चुनाव लड़ते रहते हैं. ऐसे में जनप्रतिनिधित्व कानून का कोई महत्व नहीं रह जाता है.


सुप्रीम कोर्ट की सलाह के बाद विधि मंत्रालय ने 9 राज्यों में 10फास्ट ट्रैक कोर्ट गठन किया था. कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि नेताओं के मामले को भी फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुना जाना चाहिए. फास्ट ट्रैक कोर्ट के केसों की मॉनिटरिंग खुद सुप्रीम कोर्ट द्वारा की जाती है.


एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान देशभर में 1783 विधायक ऐसे है, जिनपर आपराधिक मामले हैं. इनमें से  1125 पर गंभीर आपराधिक मामले हैं. कुल विधायकों की संख्या का यह 44 प्रतिशत है. 


बात संसद की करे तो लोकसभा के 543 में से 233 सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. 159 सांसदों पर गंभीर मामले दर्ज हैं. इसी तरह राज्यसभा के 233 में से 71 सांसदों पर आपराधिक केस है. दागी नेताओं से कोई भी पार्टी अछूती नहीं है. 


केस निपटाने में पिछड़ा फास्ट ट्रैक कोर्ट
डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस की एक रिपोर्ट के मुताबिक नेताओं के खिलाफ फास्ट ट्रैक कोर्ट में अभी 2729 केस पेडिंग है. पिछले 5 सालों में सिर्फ 168 केसों का ही निपटारा हो पाया है. यानी औसत देखा जाए तो हर महीने करीब 3 केस निपटाए गए हैं.




उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 1255 केस पेडिंग है, जबकि महाराष्ट्र का स्थान दूसरा है. यहां 447 केस अब भी पेडिंग है. राजधानी दिल्ली में नेताओं के लिए 2 फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए गए हैं, लेकिन यहां पिछले 5 साल में सिर्फ 11 केसों का निपटारा हो पाया है. 


मध्य प्रदेश और तेलंगाना में इस साल के अंत में चुनाव भी होने हैं, लेकिन पिछले 5 साल में यहां एक भी केस में नेताओं के खिलाफ फैसला नहीं आया. मध्य प्रदेश में 307 और तेलंगाना में 353 केस पेडिंग है.


एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक तेलंगाना विधानसभा में 2019 में चुनकर आए 119 में से 73 (61 प्रतिशत) विधायकों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं. इनमें से 47 पर तो गंभीर आपराधिक धाराओं के तहत केस दर्ज है.


राज्यवार तुलना की जाए तो कर्नाटक में सबसे ज्यादा (10 प्रतिशत) केस निपटाए गए हैं. राज्य में अभी 211 केस लंबित है, जबकि फास्ट ट्रायल कोर्ट में 22 केस निपटाए जा चुके हैं. वहीं पश्चिम बंगाल में 3 केस निपटाए जा चुके हैं, जबकि 15 पेंडिंग है.


रफ्तार धीमी क्यों, 3 वजहें...
माननीयों पर धीमी रफ्तार से चल रही मुकदमों की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट ने न्याय मित्र का गठन किया था. न्याय मित्र ने इसी साल मई में सुप्रीम कोर्ट में एक रिपोर्ट सौंपी थी और रफ्तार बढ़ाने के लिए कुछ सुझाव दिए थे. रिपोर्ट में इसकी वजह का भी जिक्र किया गया था. 


1. जजों की कमी- रिपोर्ट में कहा गया था कि जल्द से जल्द केस निपटाने में सबसे बड़ी बाधा जजों की कमी है. न्याय मित्र ने सुप्रीम कोर्ट को सुझाव दिया कि सभी हाईकोर्ट से एमपी-एमएलए कोर्ट के जजों की समीक्षा कराई जाए.  इसके बाद इन अदालतों में तुरंत जजों की नियुक्ति प्रक्रिया पूरी की जाए.


2. बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं- फास्ट ट्रैक कोर्ट कनेक्टिविटी, लैपटॉप, बिजली गुल होने पर वैकल्पिक व्यवस्था, सुरक्षा सुविधाएं आदि के अभाव से जुड़े मुद्दों का सामना कर रहा है. कोलकाता हाईकोर्ट ने दाखिल हलफनामे में कहा कि इन वजहों से सुनवाई में परेशानी होती है, इसलिए फैसला तय समय पर नहीं आता है.


3. जजों का तबादला- न्याय मित्र ने अपनी रिपोर्ट में फास्ट ट्रैक कोर्ट की रफ्तार धीमी की बड़ी वजह जजों का तबादला को भी बताया. न्याय मित्र ने कहा कि जजों का तबादला बीच में ही कर दिया जाता है, जिससे केस प्रभावित होता है. इसलिए इस पर रोक लगाई जाए.


फास्ट ट्रैक कोर्ट की वजह से इन नेताओं की खत्म हुई सदस्यता
कई बड़े नेताओं पर फास्ट ट्रैक कोर्ट का फैसला सुर्खियों में रहा है. हाल ही में बाहुबली मुख्तार अंसारी और उनके भाई सांसद अफजाल अंसारी पर गैंगस्टर मामले में एमपी-एमएलए कोर्ट ने फैसला सुनाया है. अफजाल को कोर्ट ने 4 साल की सजा सुनाई.


अफजाल गाजीपुर से बीएसपी के सांसद थे, जिसके बाद उनकी लोकसभा सदस्यता रद्द हो गई. इसी तरह अब्दुल्ला आजम के खिलाफ भी एक मामले में एमपी-एमएलए कोर्ट ने 2 साल की सजा सुनाई. अब्दुल्ला स्वार सीट से विधायक थे, जिसकी बाद उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई.




(*केरल हाईकोर्ट से फैसले पर स्टे लगने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैजल की सदस्यता बहाल कर दी)


मोहम्मद फैजल लक्ष्यद्वीप से एनसीपी के सांसद हैं और उनके खिलाफ भी एक मामले में एमपी-एमएलए कोर्ट ने 10 साल की सजा सुनाई, जिसके बाद उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई. फैजल ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सदस्यता बहाल का फैसला सुनाया.


सुप्रीम कोर्ट ने इसी दौरान सभी एमपी-एमएलए कोर्ट को हिदायत दी कि ऐसे मामलों में बारीकी से अध्यन के बाद ही फैसला सुनाया जाए. दरअसल, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत 2 साल या उससे अधिक सजा पाने वाले सांसदों और विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी जाती है.


भारतीय संविधान के अनुच्छेद 102 (1) और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत 2 साल या उससे अधिक की सजा पाने वाले नेता सजा पूरी करने के बाद 6 साल तक चुनाव भी नहीं लड़ सकते हैं. 


एमपी-एमएलए कोर्ट में इन बड़े नेताओं के केस
एमपी-एमएल फास्ट ट्रैक कोर्ट में 2700 से अधिक केस लंबित हैं. इनमें कई बड़े नेताओं के केस भी शामिल हैं. राहुल गांधी के खिलाफ बिहार और झारखंड की एमपी-एमएलए कोर्ट में मानहानि का मुकदमा चल रहा है. आजम खान को हाल ही में एमपी-एमएलए कोर्ट से राहत मिली है.




तृणमूल नेता अभिषेक बनर्जी के खिलाफ मध्य प्रदेश की एमपी-एमएलए कोर्ट में केस दायर है. यह केस बीजेपी विधायक आकाश विजयवर्गीय ने की थी. मारपीट व हमला से संबंधित एक केस बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव हरीश द्विवेदी के खिलाफ भी एमपी-एमएलए कोर्ट में चल रहा है.


कर्नाटक के नए उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का केस दिल्ली की एमपी-एमएलए कोर्ट में दाखिल है. उत्तर प्रदेश के मऊ से विधायक अब्बास अंसारी के खिलाफ भी एमपी-एमएलए की फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई चल रही है.