क्यों नोबेल पुरस्कृत नायपॉल ने नहीं लिखी अपनी आत्मकथा
नई दिल्ली: कम से कम तीस किताबें लिख कर अपार ख्याति हासिल करने वाले नोबेल पुरस्कार और बुकर पुरस्कार से सम्मानित लेखक वी एस नायपॉल ने कभी आत्मकथा नहीं लिखी क्योंकि उनका मानना था कि इसमें तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है. नायपॉल के मुताबिक, उपन्यास कभी झूठ नहीं बोलते और लेखक को पूरी तरह से प्रकट कर देते हैं लेकिन उनका मानना था कि आत्मकथा तोड़ी मरोड़ी जा सकती है और तथ्यों को भी गढ़ा जा सकता है.
'ए हाउस फॉर मिस्टर बिस्वास' और 'इंडिया: ए मिलियन म्यूटिनीज' जैसी कृतियों के रचनाकार नायपॉल का 85 वर्ष की आयु में निधन हो गया. यह जानकारी उनके परिवार ने दी. पैट्रिक फ्रेंच ने साल 2008 में "द वर्ल्ड इज व्हाट इट इज: द ऑथराइज्ड बायोग्राफी ऑफ वीएस नायपॉल" नामक पुस्तक लिखी थी जिसमें अनेक बातों के साथ ही विस्थापित समूह के भीतर उनकी जिंदगी और स्कूल में उनकी अति महत्वाकांक्षा की पड़ताल की गई है.
किताब में बताया गया है कि किस प्रकार से छात्रवृत्ति पर ऑक्सफोर्ड जाने पर उन्हें होमसिकनेस हो गई थी और उनके अंदर अवसाद घर कर गया था. इसके अलावा यह किताब उनकी पहली पत्नी के सहयोग, उनके असफल वैवाहिक जीवन और इंग्लैंड में उनके अनिश्चितिता भरे दिनों पर प्रकाश डालती है.
विद्याधर सूरजप्रसाद नायपॉल का जन्म 17 अगस्त 1932 को त्रिनिदाद में एक भारतीय हिंदू परिवार में हुआ था और 18 साल में वह छात्रवृत्ति हासिल कर यूनिवर्सिटी कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में पढ़ने के लिए इंग्लैड चले गए. इसके बाद वह इंग्लैंड में ही बस गए थे.
नोबेल पुरस्कार विजेता भारतीय मूल के लेखक वीएस नायपॉल का निधन
उनका नाम विद्याधर एक चंदेल राजा के नाम पर रखा गया था. इसी वंश के राजा ने खजुराहो के मंदिरों का निर्माण कराया था. 11वीं सदी की शुरूआत में राजा विद्याधर ने मुस्लिम आक्रमणकारी महमूद गजनी के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी.
नायपॉल अनेक बार भारत आए और उनकी अंतिम यात्रा साल जनवरी 2015 में जयपुर लिट्रेचर फेस्टिवल के लिए थी. इस समारोह में उन्होंने बताया था, "मेरी मां भारत से जो इकलौता हिंदी शब्द ले गईं थी वह था बेटा और वह कहती थीं बेटा कृपया भारत को भारतीयों के लिए रहने दो." भारत पर उनकी पुस्तकों में 'एन एरिया ऑफ डार्कनेस' और 'ए वुंडेड सिविलाइजेशन' जैसी पुस्तके शामिल थीं.