जानें, क्यों लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव करवाना एक बड़ी चुनौती है?
संविधान की धारा 172 (1) में इस बारे में स्पष्ट व्याख्या की गई है. इस धारा के मुताबिक किसी भी विधानसभा की अवधि 5 साल से ज़्यादा नहीं हो सकती. इस अवधि को तभी बढ़ाया जा सकता है अगर देश में आपातकाल लगा हो. आपातकाल की स्थिति में संसद किसी राज्य की विधानसभा की अवधि एक बार में 1 साल तक बढ़ाई जा सकती है.
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नई दिल्ली: एक देश एक चुनाव को लेकर पिछले काफी समय से चर्चा चल रही है और अब बीजेपी के सूत्रों से जानकारी सामने आ रही है कि बीजेपी 11 राज्य के विधानसभा चुनाव लोकसभा के साथ करवाने को लेकर विचार कर रही है. यह राज्य हैं मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम जिनके चुनाव थोड़ा आगे बढ़ाने की योजना है तो ओड़िशा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के चुनाव तय वक्त पर लोकसभा के साथ करवाने की और हरियाणा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और झारखंड के चुनाव अपने निर्धारित वक्त से पहले करवाने पर विचार चल रहा है.
हालांकि चुनाव आयोग के सूत्रों के मुताबिक अभी आयोग के सामने ऐसा कोई प्रपोज़ल सामने नहीं आया है. अगर ऐसा कोई सुझाव सामने आता है तो उस पर विचार किया जाएगा. हालांकि जानकारी के मुताबिक यह इतना आसान भी नहीं है क्योंकि मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ का टर्म जनवरी के पहले हफ्ते में समाप्त हो रहा है और मिज़ोरम का टर्म दिसंबर के आखिरी हफ्ते में.
ऐसे में संविधान के मुताबिक इन 4 राज्यों में टर्म खत्म होने से पहले चुनाव करवाना ज़रूरी है और अगर इन 4 राज्यों का चुनाव आगे बढ़ाना है तो उसके लिए संविधान में संशोधन करना पड़ सकता है. वहीं अगर बाकी राज्यों के कार्यकाल को पहले खत्म किया भी जाता है तो वो फैसला भी जल्द ही लेना होगा जिससे कि चुनाव आयोग तैयारी कर सके. इसके लिए बड़ी संख्या में ईवीएम, सुरक्षा बल और बाकी इंतजाम करने होंगे जो कि फिलहाल इतना आसान नहीं है.
ऐसे में फिलहाल यही कहा जा सकता है कि बीजेपी भले ही 11 राज्यों के चुनाव लोकसभा के साथ करवाने की योजना बना रही हो लेकिन संविधान और जमीनी हकीकत को देखते हुए यह सब इतना आसान भी नहीं है. हर एक गुजरते दिन के साथ लोकसभा के साथ एक विधानसभा चुनाव करवाने की योजना पर अमल करना और मुश्किल होता जाएगा.
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