हाइब्रिड सरसों का तेल का विरोध क्यों, क्या इसको खाने से है कोई नुकसान
जेनेटिकली मॉडिफाइड सरसों का निर्माण भारतीय किस्म वरुणा और पूर्वी यूरोप की किस्म अर्ली हीरा–2 के मिलाकर की जाती है.
जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी) ने जेनेटिकली मॉडिफाइड सरसों प्लांट की व्यवसायिक खेती को मंजूरी दे दी है. हालांकि उनकी इस मंजूरी से किसान समूह नाखुश हैं और उन्होंने कमेटी के फैसले का विरोध करना शुरू कर दिया है. किसानों का मानना है कि जीएम यानी हाइब्रिड सरसों तेल का इस्तेमाल स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है.
इसके अलावा अगर इसकी खेती होती है तो शहद उत्पादन का व्यवसाय पूरी तरह से ठप हो जाएगा और मधुमक्खी पालने वाले किसानों को काफी नुकसान होगा. मधुमक्खी पालन से जुड़े किसान बड़ी संख्या में बेरोजगार होंगे. दावा ये भी किया जा रहा है कि शहद के निर्यात में बहुत बड़ी गिरावट आ सकती है. दरअसल, चिकित्सकीय गुणों की वजह जीएम मुक्त सरसों के शहद की मांग विदेशों में ज्यादा है.
क्या है जीएम तकनीक?
जीएम तकनीक का इस्तेमाल कर किसी जीव या पौधों के जीन को दूसरे पौधों में डाल कर फसल की एक नई प्रजाति विकसित की जाती है. पौधों के जीन में बदलाव बायोटेक्नॉलजी और बायो इंजीनियरिंग की मदद से की जाती है. सबसे पहले इस तरीके की तकनीक का इस्तेमाल 1982 में किया गया था.
हाइब्रिड सरसों का तेल क्या है?
हाइब्रिड सरसों के तेल को डीएमएच-11 के नाम से भी जाना जाता है. इस तेल को दिल्ली विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स (सीजीएमसीपी) द्वारा पूर्व वाइस चांसलर दीपक पेंटल के नेतृत्व में तैयार किया गया था. इस तेल को हाइब्रिड सरसों का तेल इसलिए कहते हैं क्योंकि इसे बनाने की तकनीक में दो अलग-अलग किस्मों के पौधे का इस्तेमाल किया जाता है. इन दो पौधों को मिलाकर हाइब्रिड वैरायटी तैयार करते हैं.
कैसे बनता है हाइब्रिड सरसों तेल?
जेनेटिकली मॉडिफाइड सरसों का निर्माण भारतीय किस्म वरुणा और पूर्वी यूरोप की किस्म अर्ली हीरा – 2 के मिलाकर की जाती है. ऐसा दावा किया गया है कि डीएमएच-11 की उपज वरुणा से 28 प्रतिशत ज्यादा पाई गई. वहीं सरकार का मानना है कि इसकी खेती से तेलों का निर्यात में भी तेजी से बढ़त होगा.
आम सरसों तेल से कैसे है अलग?
आम सरसों तेल की खेती के लिए किसानों को दो किस्मों को हाइब्रिड प्रोसेस से नहीं गुजरना पड़ता है. आपने सरसों की जिन किस्मों की बुवाई की है, उसी के दाने को बुवाई के लिए बीज के तौर पर उपयोग कर सकते हैं.
जीएम सरसों के तेल की खेती का विरोध करने का एक कारण ये भी है कि इस तेल की खेती को लेकर अब तक इस तरफ का कोई रिसर्च नहीं किया गया है. किसानों के पास इस खेती को लेकर ज्यादा जानकारी नहीं है कि आखिर इसे लगाने का सही तरीका और सही मौसम कौन सा है. ऐसे में अगर क्रॉप फेल्योर होगा तो इसे संभालना मुश्किल हो जाएगा.
क्या सरसों की हाइब्रिड तेल आम बेहतर हैं?
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ICAR द्वारा तीन सालों तक किए गए रिसर्च के अनुसार DMH-11 की उपज वरुणा से 28 प्रतिशत ज्यादा पाई गई है. इसके अलावा क्षेत्रीय जांच या स्थानीय किस्मों की तुलना में 37 प्रतिशत बेहतर है. जो विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं. रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों का मानना है कि हाइब्रिड सरसों तेलों की खेती से तेलों का निर्यात में भी तेजी से इजाफा होगा.
क्यों विवादों में है ये तेल
हाइब्रिड सरसों के बहस का विषय होने के दो मुख्य कारण हैं. पहला तो इसे बनाने में दो तरह के प्लांट का इस्तेमाल किया जाना. दूसरा किसानों का मानना है कि अभी इसकी खेती के लिए वैलिडेशन ट्रायल की जरूरत है.
डीएमएच-11 की खेती के बारे में कोई रिसर्च नहीं हुआ है इसलिए लोगों को नहीं पता है कि इससे इंसानों से लेकर जानवरों तक पर इसका क्या असर होने वाला है. साथ ही इस खेती का असर पर्यावरण के संतुलन पर भी पड़ सकता है.
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