भारत से अब आखिर क्यों दोस्ती करना चाहता है पाकिस्तान ?
जनरल बाजवा ने गुरुवार को कहा था कि "कुछ राजनेताओं की तरफ से यह कहा जाता है कि सेना बातचीत के पक्ष में नहीं है. जबकि सेना तो चाहती है कि द्विपक्षीय व्यापार हो, सीमा खुले, लोगों का लोगों से संपर्क हो, लेकिन असल समस्या कश्मीर को न भूलें."
नई दिल्लीः क्या पाकिस्तान को समझ आने लगा है कि भारत से दोस्ती किये बगैर उसका आगे बढ़ पाना बेहद मुश्किल है? पहले प्रधानमंत्री इमरान खान और अब पाक सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा की भारत से दोस्ताना रिश्ते बनाने की अपील बताती है कि पाकिस्तान की माली हालत बहुत खराब हो चुकी है. सरकार और सेना की तरफ से एक ही सुर में शांति वार्ता का राग अलापने की बुनियादी वजह आर्थिक कारण है क्योंकि दोनों को यह लगता है कि मुल्क में अगर ऐसी ही तंगहाली रही तो वहां के अवाम को बगावत का परचम थामे सड़कों पर उतरने से रोक पाना नामुमकिन हो जायेगा.
गौरतलब है कि भारत ने पिछले महीने कहा था कि वह पाकिस्तान के साथ आतंक, बैर और हिंसा मुक्त माहौल के साथ सामान्य पड़ोसी संबंध की आकांक्षा करता है. भारत ने यह भी दोहराया था कि इसकी जिम्मेदारी पाकिस्तान पर है कि वह आतंकवाद और शत्रुता मुक्त माहौल तैयार करे. लिहाजा इमरान और बाजवा की अपील पर भारत सकारात्मक प्रतिक्रिया ही देगा लेकिन वह अपने इस रुख से जरा भी पीछे नहीं हटेगा कि पाकिस्तान पहले अपनी जमीन से आतंकवाद का खात्मा करे,उसके बाद ही वार्ता संभव है.
पाकिस्तान के पत्रकारों व रक्षा विश्लेषकों की बातों पर गौर करें तो यही पता चलता है कि नरम तेवर अपनाने की बड़ी वजह है कि मुल्क का खजाना लगभग खाली हो चुका है. चीन ने भी अपनी इमदाद में कटौती कर दी है और उधर,अमेरिका में बनी नई सरकार अभी यह तौल रही है कि पाकिस्तान को कितनी तवज़्ज़ो देनी है जिसके आधार पर ही उसे मिलने वाली मदद का पैमाना तय होगा.
पाकिस्तान की रक्षा विश्लेषक डॉक्टर आयशा सिद्दीक़ा का कहना है कि सेना प्रमुख की पेशकश के पीछे आर्थिक कारण अहम है. अगर शांति बहाली की प्रक्रिया शुरू नहीं होती है और स्थिरता बहाल नहीं हुई, तो हम सड़क पर आ जाएंगे. उनके मुताबिक पाकिस्तान ने इंडो पैसिफिक रणनीति को गंभीरता से नहीं लिया.
अमेरिका का पेपर प्रकाशित भी हो गया, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. इस योजना में नेपाल, श्रीलंका, भूटान और भारत शामिल हैं, हमारा कोई उल्लेख नहीं है. जबकि पाकिस्तान चीन के पक्ष में है, जिससे हमें पहले भी फायदा नहीं हुआ है.
पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार व विश्लेषक ज़ाहिद हुसैन कहते हैं, ''सेना प्रमुख ने सकारात्मक रुख़ अपनाया है और कहा है कि आर्थिक विकास महत्वपूर्ण है. इस क्षेत्र में शांति होनी चाहिए. जिससे पता चलता है कि एक दिशा निर्धारित की जा रही है, तनाव बढ़ाने के बजाये, इसे कम किया जाये और क्षेत्र मे आर्थिक विकास हो, यह एक सकारात्मक दृष्टिकोण है.''
उनके मुताबिक "इससे पहले, हमने संघर्ष विराम देखा, जिससे उम्मीद जगी कि क्षेत्र में तनाव कम हो रहा है. उससे पहले स्थिति अलग थी. लेकिन सोच में बदलाव आया है. सेना प्रमुख ने भी इसी बात का इज़हार किया है. पाकिस्तानी अवाम उम्मीद करता है कि हिंदुस्तान अपने छोटे भाई की इस पेशकश को नहीं ठुकरायेगा."
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