नई दिल्ली: पेट्रोल और डीजल के दामों में आग लगी हुई है. देशभर में आज तेल उस कीमत पर बिक रहा है जितना आज तक कभी नहीं बिका था. सवाल ये भी उठने लगा है कि क्या तेल 100 का आंकड़ा भी छू लेगा? ये एक ऐसा मुद्दा है जिसका सीधा असर देश की जनता के ऊपर पड़ता है. लिहाजा ये कहना गलत नहीं होगा कि तेल की कीमतों में लगी इस आग की तपिश भी सबसे ज्यादा देश की जनता को ही झेलनी पड़ेगी.


क्यों लगी है पेट्रोल और डीजल की कीमतों में आग?


अर्थशास्त्रियों की मानें तो तेल की कीमत बढ़ने की सबसे बड़़ी वजह डॉलर के मुकाबले रुपया की कमजोरी को माना जा सकता है. ऐसे में अब सवाल ये है कि आखिर डॉलर की तुलना में रुपये की कीमत अचानक इतनी गिर कैसे गई? जो रुपया मार्च महीने के आखिरी हफ्ते में करीब 65 प्रति डॉलर की दर पर था वो अचानक मई मध्य आते आते 68 रु प्रति डॉलर कैसे जा पहुंचा? सबसे पहले इन आंकड़ों के जरिए समझें कि आखिर पिछले दो महीनों में किस तरह से डॉलर की तुलना रुपये की कीमत गिरी है, वहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत चढ़ी है.




  • 3 मार्च को डॉलर की तुलना में रुपये की कीमत लगभग 67 रुपये थी. उस दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत लगभग 54 डॉलर प्रति बैरल थी.

  • जबकि 26 मार्च को को डॉलर की तुलना में रुपये की कीमत सुधरी थी और लगभग 65 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच गई. लेकिन उस दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढ़ रही थी और वह लगभग 65 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच चुकी थी.

  • मई आते-आते हालात ये हैं कि डॉलर की तुलना में रुपये की कीमत लगभग 68 रुपये तक जा पहुंची है. अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत लगभग 78.50 डॉलर प्रति बैरल जा पहुंची है.

  • यानि की डॉलर की तुलना में रुपये की कीमत में गिरावट आई है तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत में जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई है.


मोदी सरकार बनने के बाद का सबसे कठिन दौर


मोदी सरकार आने के बाद देश में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 75 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंची हो. क्योंकि इससे पहले नवंबर 2014 में कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत 78 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंची थी. लेकिन उस दौरान भी डीजल पेट्रोल की कीमतों में आज के वक्त जैसी आग इस वजह से नहीं लगी थी, क्योंकि तब डॉलर की तुलना में रुपया थोड़ा मजबूत था और कीमत करीब 62 रुपये प्रति डॉलर थी.


क्यों गिर रही है रुपये की कीमत?




  • जानकारों की मानें तो रुपये की गिरती कीमत की एक बड़ी वजह भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमत को ही माना जा सकता है. क्योंकि भारत में 75 से 80 फीसदी कच्चे तेल का आयात होता है और इस कच्चे तेल को खरीदने के लिए डॉलर में ही पैसा दिया जाता है.  इसका मतलब ये हुआ कि पहले की तुलना में देश से ज्यादा डॉलर बाहर जा रहा है.

  • इसके अलावा यूएस का बाजार इस वक्त निवेशकों को ज्यादा लुभा रहा है.  इसके चलते जो विदेशी निवेशक अभी तक भारतीय बाजार में पैसा लगाते थे उन्होंने अपना पैसा निकाल लिया है. वह पैसा भी डॉलर में ही बाहर गया.

  • इसके साथ ही देश में आयात बढ़ रहा है और निर्यात कम हुआ है. इससे ट्रेड डेफिसिट बढ़ा है, जिसका सीधा प्रभाव बाजार पर पड़ा है. इसके चलते भी विदेशी निवेशकों ने अपना पैसा बाजार से निकाल लिया.


पहले नहीं तो अब क्यों?


ऐसे में अब सवाल ये उठता है कि जब जुलाई 2008 में 132 डॉलर प्रति बैरल यानि की अब तक की सबसे उच्चतम अंतरराष्ट्रीय दर पर पहुंचा या फिर मार्च 2012 में 123 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंचा तब कीमत उस तरह से नहीं बढ़ी तो आखिर अब क्यों? तो उसकी वजह थी कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत.


जुलाई 2008 में जहां रुपया लगभग 42 रुपये प्रति डॉलर था तो मार्च 2012 में करीब 50 रुपये. जानकारों की मानें तो उस दौरान वाहनों की संख्या सड़क पर अभी के मुकाबले कम थी. मतलब इंधन की खपत कम थी. वहीं यूएस की अर्थव्यवस्था डंवाडोल थी जिसके चलते डीज़ल और पेट्रोल की कीमत थोड़े नियंत्रण में थीं.


100 के पार पहुंचेगा तेल?


यानी कि जो आंकड़े हमारे सामने हैं वह साफ बयां कर रहे हैं कि अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत यूं ही बढ़ती रही और रुपया डॉलर के मुकाबले यूं ही कमजोर होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब पेट्रोल और डीजल की कीमत 100 रुपए के पार भी पहुंच जाए.