मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी के निमंत्रण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 24-25 जून को मिस्र की दो दिवसीय राजकीय यात्रा के लिए निकल चुके हैं. यह यात्रा बहुत महत्वपूर्ण है, बता दें कि ये यात्रा 1997 के बाद से किसी भी भारतीय प्रधान मंत्री की पहली आधिकारिक मिस्र की द्विपक्षीय यात्रा है.
हाल ही में 74वें गणतंत्र दिवस के मौके पर मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतेह अल-सीसी को मुख्य अतिथि के रूप में भारत आमंत्रित किया गया था. यह पहली बार था जब मिस्र के किसी राष्ट्रपति को यह सम्मान दिया गया.
अब्देल फतेह अल-सीसी की भारत यात्रा ने दोनों देशों के बीच दोस्ती की नींव को और मजबूत किया है. यात्रा की शुरुआत में पीएम उच्च स्तरीय मंत्रियों की एक विशेष सभा से रणनीतिक बातचीत करेंगे. इस रणनीतिक बातचीत के बाद मिस्र में रहने वाले भारतीय समुदाय के साथ एक बैठक होगी.
इसके बाद पीएम मोदी राजधानी काहिरा में स्थित 1000 साल पुराने मशहूर अल हकीम मस्जिद में भी जाएंगे. जहां पीएम दाऊदी बोहरा समुदाय से मुलाकात करेंगे.
एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, अल हकीम मस्जिद दाऊदी बोहरा समुदाय के लिए एक बेहद ही अहम सांस्कृतिक स्थल है. देश की चौथी सबसे पुरानी ऐतिहासिक मस्जिद को हाल ही में मिस्र सरकार ने बोहरा समुदाय के सहयोग से पुनर्निर्मित किया था.
गौरतलब है कि मोदी के भारतीय दाऊदी बोहरा समुदाय के साथ सालों से गर्मजोशी भरे संबंध रहे हैं.
राष्ट्रपति कार्यालय में आधिकारिक कार्यक्रम पीएम मोदी की मिस्र यात्रा का अहम हिस्सा है. यहां पर पीएम मोदी राष्ट्रपति अल-सीसी के साथ द्विपक्षीय वार्ता में शामिल होंगे.
इस वार्ता के दौरान दोनों देशों के बीच कई समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद है, जो अलग-अलग डोमेन में सहयोग की नींव को मजबूत करेगा.
इस आर्टिकल में ये समझने की कोशिश करेंगे कि प्रधानमंत्री की यात्रा का प्रमुख एजेंडा क्या होगा, और इस यात्रा ने कैसे भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के तहत पिछले नौ सालों में मिस्र के साथ संबंधों को पुनर्जीवित किया है.
पीएम मोदी की मिस्र यात्रा से क्या उम्मीद की जाए
पीएम मोदी काहिरा में राष्ट्रपति सीसी के साथ द्विपक्षीय वार्ता करेंगे, मिस्र सरकार के वरिष्ठ नेताओं के साथ बातचीत और मिस्र की प्रमुख हस्तियों के साथ जुड़ने के अलावा प्रवासी भारतीयों से मुलाकात करेंगे.
प्रधानमंत्री की यात्रा की घोषणा मिस्र द्वारा ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) की सदस्यता के लिए औपचारिक रूप से आवेदन करने के तुरंत बाद की गई है. मिस्र ब्रिक्स देशों के साथ व्यापार में अमेरिकी डॉलर को छोड़ने की योजना में काफी दिलचस्पी ले रहा है.
ये एक ऐसा कदम माना जा रहा है जो देशों के बीच आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देगा.
जिस तरह से मिस्त्र अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के साथ अपनी मुद्रा सहित अंतरराष्ट्रीय व्यापार में वैकल्पिक मुद्राओं को बढ़ावा देने की इच्छा जता रहा है. साफ है कि मिस्त्र उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ मजबूत संबंध स्थापित करना चाहता है, ऐसे में पीएम मोदी की यात्रा महत्वपूर्ण है.
यात्रा के दौरान, रक्षा सहयोग, शिक्षा और ब्रिक्स में शामिल होने के लिए मिस्र के आवेदन पर बातचीत होगी. फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक मिस्त्र के तेजी से आर्थिक विकास करने की उम्मीद है. मिस्त्र के स्वेज नहर में प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधन और रणनीतिक नियंत्रण है.
दूसरी तरफ मिस्र और ब्रिक्स देशों के बीच व्यापार और निवेश में वृद्धि आर्थिक विकास में योगदान कर सकती है. फाइनेंशियल एक्सप्रेस के मुताबिक ब्रिक्स में शामिल होने के लिए मिस्र का आवेदन ब्रिक्स समूह के प्रति अन्य मध्य पूर्वी और अफ्रीकी देशों की धारणाओं पर भी असर डालेगा.
पीएम मोदी के कार्यकाल के दौरान कितनी गहरी हुई भारत और मिस्त्र की दोस्ती
पीएम मोदी ने मिस्र के साथ मजबूत संबंध बनाने की दिशा में काम किया है. भारत की अध्यक्षता के दौरान जी 20 शिखर सम्मेलन में विशेष अतिथि के रूप में मिस्त्र को आमंत्रित किया गया है.
इससे पहले 74वें गणतंत्र दिवस के मौके पर मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतेह अल-सीसी को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था.
भारत के विदेश सचिव विनय क्वात्रा के मुताबिक ' दोनों देशों के बीच साझेदारी के मोटे तौर पर चार तत्व हैं: राजनीतिक- रक्षा और सुरक्षा; आर्थिक जुड़ाव; वैज्ञानिक और शैक्षणिक सहयोग; और सांस्कृतिक तौर पर दोनों देशों के लोगों का आपसी जुड़ाव.
पिछली मुलाकात में दोनों देश इस बात पर भी सहमत हुए कि सीमा पार आतंकवाद को समाप्त करने के लिए ठोस कार्रवाई जरूरी है. इसके लिए दोनों देशों ने साथ अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सतर्क करने पर सहमति जताई थी.
व्यापार के नजरिए से कितनी अहम है दोनों देशों की दोस्ती
जून 2014 में कार्यभार संभालने के बाद से मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतेह अल-सीसी अब तक तीन बार भारत का दौरा कर चुके हैं. उनके जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए सितंबर में एक बार फिर भारत आने की संभावना है.
अल सीसी की जनवरी की यात्रा से पहले भारत के पूर्व राजदूत नवदीप सूरी ने डीडी इंडिया को बताया था 'दोनों देशों के बीच संबंध हाल के दिनों में अपनी क्षमता पर खरे नहीं उतरे हैं. दोनों देशों के बीच संबध सुधराने की कमान भारत ने संभाल ली है. भारत मिस्त्र के साथ संबंधों को 'नई गति' देने की कोशिश कर रहा है. मिस्त्र भू-राजनीतिक लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एशिया और अफ्रीका में फैला हुआ है".
2023 के गणतंत्र दिवस के मौके पर जब मिस्र के राष्ट्रपति अल-सीसी भारत आए थे ये तय किया गया था कि आने वाले पांच सालों में दोनों देश मौजूदा 7 अरब डॉलर के व्यापार को बढ़ा कर 12 अरब डॉलर तक करेंगे.
दोनों देशों की सेनाओं ने इस साल जनवरी में पहली बार साझा सैन्य अभ्यास भी किया था. मिस्र ने भारत से तेजस लड़ाकू विमान, रडार, सैन्य हेलिकॉप्टर और आकाश मिसाइल सिस्टम खरीदने में दिलचस्पी दिखाई थी.
भारत दशकों से एक ऐसा देश रहा है जो दूसरे देशों से हथियार खरीदता रहा है. अब जब भारत रक्षा क्षेत्र से जुड़े उपकरण और हथियार बना रहा और 42 देशों को हथियार बेच रहा है, भारत इन खरीदारों में मिस्र को भी देखना चाहता है.
रक्षा से लेकर शिक्षा तक मिस्त्र भारत से क्या चाहता है
पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत और मिस्र के बीच संबंध मजबूत हुए हैं. पिछले साल विदेश मंत्री एस जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने काहिरा का दौरा किया था.
दोनों देश नवीकरणीय ऊर्जा, व्यापार और निवेश, शिक्षा, पर्यटन और कनेक्टिविटी में अवसरों की तलाश कर रहे हैं और ध्रुवीकृत दुनिया में स्वतंत्र सोच को बढ़ावा देने के लिए सहमत हुए हैं. मिस्र अपने यहां आईआईटी की तरह का एक भारतीय उच्च शिक्षा संस्थान भी खोलना चाहता है.
बीबीसी की एक रिपोर्ट में नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार प्रोफेसर पुष्प अधिकारी ने बताया ' मिस्र में शिक्षा की स्थिति बहुत बदहाल है. वो भारत से मदद चाहता है. उत्तरी अफ्रीका और पश्चिम एशिया में मिस्र मज़बूत सैन्य ताकत जरूर है, लेकिन जिस तरह का विकास इसराइल में हो रहा है, मिस्र उसके बराबर कहीं नहीं है. इसलिए मिस्र को सैन्य मदद भी चाहिए. मिस्र रक्षा सेक्टर में भारत से काफी कुछ चाहता है
समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक खबर के मुताबिक मिस्र के आपूर्ति मंत्री अली मोसेली ने कहा है कि भारत और मिस्र के बीच डॉलर के अलावा दूसरी मुद्रा में व्यापार करने को लेकर अभी बातचीत चल रही है.
भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक भारत की लगभग 50 कंपनियों ने मिस्र में निवेश किया है. केमिकल, ऊर्जा, कपड़ा उद्योग के साथ-साथ एग्री बिज़नेस के क्षेत्र में ये निवेश लगभग 3.15 अरब डॉलर तक का है.
कितनी पुराना है मिस्त्र और भारत की दोस्ती
- विश्व की दो सबसे पुरानी सभ्यता भारत और मिस्र के बीच संपर्क का इतिहास काफी पुराना है . अशोक के अभिलेखों में टॉलेमी-द्वितीय के तहत मिस्र के साथ उसके संबंधों का जिक्र है.
- 18 अगस्त, 1947 को भारत और मिस्त्र के बीच रजदूत स्तर पर राजनयिक संबंधों की स्थापना की संयुक्त रूप से घोषणा की गई थी.
- साल 1955 में भारत और मिस्र ने एक मित्रता संधि पर हस्ताक्षर किये. साल 1961 में भारत और मिस्र ने यूगोस्लाविया, इंडोनेशिया और घाना के साथ गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना की.
एक नजर भारत के प्रधानमंत्रियों की मिस्त्र यात्रा पर
1980 के दशक से भारत से मिस्र में प्रधानमंत्री की चार यात्राएं हुई हैं. राजीव गांधी में 1985 में मिस्त्र गए थे. पी वी नरसिम्हा राव 1955 में, आईके गुजराल 1997 में और 2009 में डॉ मनमोहन सिंह गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन में मिस्र गए थे.
बता दें कि 50 और 60 के दशक में प्रधानमंत्री नेहरू और राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासिर के बीच संबंध बहुत गहरे थे.
भारत में मिस्र के राजदूत वाएल मोहम्मद अवाद हमीद ने इस का उदाहरण देते हुए कहा ' प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रपति अल सीसी के साथ व्यक्तिगत संबंध, समझ और साझा एजेंडा साझा करते हैं. मुझे लगता है कि दोनों की दोस्ती (पीएम मोदी और अल सीसी) आने वाले समय में 1950 और 1960 के दशक से भी आगे जाएगी.
पाकिस्तान से मिस्त्र का रिश्ता
मिस्त्र एक इस्लामिक देश है, भारत का पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से मिस्त्र के रिश्ते अच्छे नहीं है. साल 2022 के अंत में इस्लामिक देशों का सम्मेलन हुआ था. उसमें भारत के खिलाफ पाकिस्तान एक प्रस्ताव लेकर आया था. मिस्र की कड़ी आपत्ति की वजह से वो पास नहीं हो पाया. इस तरह मिस्र भारत की तरफ बेहतर रिश्ते बना रहा है.
2022 में पैगबर मोहम्मद के बारे में बीजेपी की प्रवक्ता रहीं नुपुर शर्मा की टिप्पणी के बाद सभी इस्लामिक ने भारत के खिलाफ नाराजगी जताई थी , लेकिन मिस्र ने इस दौरान कोई भी टिप्पणी नहीं की.
इस मुद्दे को लेकर पाकिस्तान ओआईसी में एक प्रस्ताव भी आया था लेकिन अल-सीसी ने इसका समर्थन नहीं किया. ये प्रस्ताव पास नहीं हो सका.