Lal Bahadur Shastri: भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री 9 जून, 1964 से 11 जनवरी, 1966 तक इस पद पर रहे. एक महान नेता लाल बहादुर शास्त्री के जीवन को सादगी की मिसाल कहा जाता है. लाल बहादुर शास्त्री ने ही "जय जवान, जय किसान" का नारा दिया था. 


पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर के बर्थडे स्पेशल में हम उनके प्रधानमंत्री काल के दौरान घटी अहम घटनाओं को याद कर रहे हैं. प्रधानमंत्री बनने के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने जब पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस की तो कुछ पत्रकारों ने उनसे बहुत ही गैर जिम्मेदाराना तरीके से सवाल पूछे. प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पत्रकारों ने इस तरह सवाल पूछे जैसे वो किसी छोटे अधिकारी से बात कर रहे हों. पत्रकारों के इस रवैये से लाल बहादुर शास्त्री इतना आहत हुए कि उन्होंने औपचारिक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलानी ही छोड़ दी. मंत्रिमंडल के कुछ सदस्यों का रुख भी लाल बहादुर शास्त्री को नीचा दिखाने वाला था. दरअसल, ये कहानी तीन मूर्ति भवन को लेकर शुरू हुई. 


तीन मूर्ति भवन प्रधानमंत्री का सरकारी निवास था. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का निधन वहीं हुआ और उनका निधन होते ही तीन मूर्ति भवन को नेहरू मेमोरियल में तब्दील करने की मांग उठने लगी. इससे पहले कि शास्त्री इस पर कोई फैसला कर पाएं, उनको इंदिरा गांधी ने चिट्ठी लिख दी. 


इंदिरा गांधी ने क्या लिखा?


इंदिरा गांदी ने शास्त्री को जो चिट्ठी लिखी, उसमें लिखा था, 'आदरणीय प्रधानमंत्री जी, तीन मूर्ति भवन को आप मेरे पिता पंडित नेहरू का स्मारक बनाना चाहते हैं या खुद वहां रहना चाहते हैं? इस बात पर अगर आप जल्दी फैसला करते हैं तो बेहतर होगा, वैसे ये मैं हमेशा मानती रही हूं कि तीन मूर्ति भवन रिहाइश के लिहाज से बहुत बड़ा है लेकिन पंडित नेहरू की बात अलग थी, उनसे मिलने वालों की तादाद अधिक थी. अब मुलाकात करने वालों की तादाद उतनी न रहे.'


लाल बहादुर शास्त्री को चुभी ये बात


इंदिरा गांधी की ये बात लाल बहादुर शास्त्री को बहुत चुभी कि पंडित नेहरू से मिलने बहुत लोग आते थे लेकिन दूसरे प्रधानमंत्रियों से मिलने वालों की तादाद उतनी न हो. इंदिरा गांधी को शास्त्री ने अपनी कैबिनेट में जगह भी दी. इंदिरा गांधी की चिट्ठी के बाद ही जवाहरलाल नेहरू की छोटी बहन कृष्णहति सिंह की चिट्ठी भी शास्त्री के पास पहुंची.


नेहरू की बहन ने क्या लिखा?


नेहरू की छोटी बहन ने चिट्ठी में लिखा, 'तीन मूर्ति भवन को स्मारक बनाने पर फैसला न लेने से इंदिरा गांधी को काफी परेशानी हो रही है. वो कभी-कभी तो बेहोश भी हो जाती है. तीन मूर्ति भवन पंडित नेहरू के स्मारक ना बनाने का फैसला अत्याचार है.' इसे पढ़ने के बाद प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री इतना गुस्सा हुए कि उन्होंने चिट्ठी को फाड़ दिया और कहा कि अब मुझे तीन मूर्ति भवन के पास भी नहीं जाना. 


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