कब चुनउआ हो जाए, कुछ ठीक है? तय समय से पहले भी लोकसभा का चुनाव हो सकता है... तेजस्वी यादव के मौजूदगी में अधिकारियों से नीतीश कुमार की बातचीत का यह वीडियो खूब वायरल हो रहा है. नीतीश अधिकारियों को जल्दी-जल्दी काम करने की हिदायत दे रहे हैं.
नीतीश का यह बयान उस वक्त सामने आया है, जब वे बीजेपी सरकार के खिलाफ विपक्षी एका बनाने में जुटे हैं. मई 2019 बीजेपी गठबंधन ने 350 से अधिक सीटें जीतकर लगातार दूसरी बार केंद्र की सत्ता में वापसी की थी.
देश में 1971 और 1984 में समय से पहले लोकसभा के चुनाव हुए थे. दोनों चुनाव में सत्ताधारी दल को बंपर जीत मिली थी. ऐसे में दिल्ली से पटना तक के सियासी गलियारों में एक ही सवाल पूछा जा रहा है कि क्या 2024 का लोकसभा चुनाव समय से पहले हो सकता है?
पहले 2 राजनीतिक बयान...
1. बीजेपी कर्नाटक में हार के चलते लोकसभा चुनाव की घोषणा पहले कर सकती है. देश भर में बीजेपी का प्रभाव कम हो रहा है.
(एमके स्टालिन, मुख्यमंत्री तमिलनाडु)
2. समय से पूर्व चुनाव कराने की कोई योजना नहीं है. वैसे यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि नीतीश कुमार भविष्यवक्ता बन गए हैं.
(गिरिराज सिंह, केंद्रीय मंत्री)
वक्त से पहले चुनाव होने की अटकलें क्यों, 3 फैक्टर
1. 4 राज्यों में असेंबली इलेक्शन, इसे साधने की कोशिश- समय से पहले लोकसभा चुनाव कराए जाने के पीछे सबसे अहम फैक्टर विधानसभा के चुनाव को माना जा रहा है. लोकसभा से पहले छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना में विधानसभा के चुनाव होने हैं.
4 में से 3 राज्यों में बीजेपी सरकार में आने की तैयारी कर रही है, जबकि एमपी में सत्ता बचाने की चुनौती है. चारों ही राज्यों में बीजेपी की लोकल लीडरशिप काफी कमजोर स्थिति है. हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मुखपत्र ऑर्गेनेजाइर ने लोकल लीडरशिप को लेकर हिदायत भी दी है.
बात मध्य प्रदेश की करे तो यहां 2018 में बीजेपी हार गई थी, लेकिन कांग्रेस से ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद फिर सरकार में आ गई. 230 सदस्यों वाली मध्य प्रदेश विधानसभा में बीजेपी के पास 130 विधायक हैं, लेकिन पार्टी के लिए इस बार सत्ता वापसी आसान नहीं है.
बीजेपी के भीतर की गुटबाजी हाल ही में सुर्खियां बटोर रही थी. सरकार के 2 मंत्री गोपाल भार्गव और गोविंद राजपूत ने एक मंत्री भूपेंद्र सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के मुताबिक बीजेपी में अभी 3 गुट सक्रिय है. 1. शिवराज गुट 2. महाराज (सिंधिया) गुट और 3. नाराज गुट.
दूसरी ओर कांग्रेस इस बार एकजुट है और 150 सीट जीतने का दावा कर रही है. नेताओं की घरवापसी और गठबंधन की रणनीति भी कांग्रेस अपना रही है. आदिवासी संगठन जयस और गंगोपा को भी साधने का प्रयास कर रही है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस मजबूत स्थिति में है.
राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है और यहां रिवाज के सहारे सत्ता वापसी को लेकर उत्साहित है, लेकिन राज्य बीजेपी के एकमात्र क्षत्रप वसुंधरा राजे साइडलाइन हैं. राजे को बीजेपी ने राज्य में अब तक कोई भी बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी है. इसके पीछे बीजेपी हाईकमान से तानातनी को वजह माना जा रहा है.
राजस्थान कांग्रेस में भी भारी गुटबाजी है, लेकिन पार्टी लगातार जीतकर आने का दावा कर रही है. पिछले चुनाव में कांग्रेस को 101 सीटों पर जीत मिली थी. वर्तमान में पार्टी के पास 108 विधायक हैं, जबकि 10 से ज्यादा निर्दलीय ने समर्थन दे रखा है.
छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी कई खेमों में बंटी हुई है. पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह पूरे परिवार समेत साइडलाइन हैं. बीजेपी ने साल के शुरुआत में गुटबाजी रोकने के लिए कई फेरबदल किए थे, लेकिन सब ढाक के तीन पात साबित हुए हैं.
हाल में बड़े आदिवासी नेता नंदकुमार साय ने पार्टी छोड़ दी है. साय छत्तीसगढ़ में बीजेपी की स्थापना काल से ही जुड़े हुए थे. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक बीजेपी की तुलना में कांग्रेस की छत्तीसगढ़ में अभी मजबूत स्थिति है.
हाल में सी-वोटर ने बीजेपी के भीतर चेहरे को लेकर सर्वे किया था. राजस्थान में 51 प्रतिशत लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ने की बात कही थी. 26 प्रतिशत लोग वसुंधरा के पक्ष में थे.
इसी तरह मध्य प्रदेश में 37 प्रतिशत लोगों का कहना था कि मोदी के चेहरे को अगर आगे कर चुनाव लड़ा जाता है, तो बीजेपी को फायदा मिल सकता है. 24 प्रतिशत लोग शिवराज सिंह चौहान और 20 प्रतिशत लोग ज्योतिरादित्य सिंधिया के पक्ष में थे.
2. वन नेशन-वन इलेक्शन की तर्ज पर एक साल में एक चुनाव- सियासी गलियारों में समय से पहले चुनाव कराए जाने के पीछे इसे भी वजह माना जा रहा है. बीजेपी और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वन नेशन-वन इलेक्शन की पैरवी कर चुके हैं.
2023 के अंतिम में और 2024 में कुल 9 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं. ऐसे में चर्चा है कि वन नेशन-वन इलेक्शन की तर्ज पर एक साल में एक चुनाव कराया जा सकता है, जिससे सभी राज्यों के चुनाव एक साथ निपट सके.
2024 में आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, ओडिशा और अरुणाचल प्रदेश में चुनाव होने हैं. अरुणाचल, हरियाणा और महाराष्ट्र में बीजेपी गठबंधन की सरकार है. महाराष्ट्र में तो मुख्यमंत्री समेत 16 विधायकों की कुर्सी भी खतरे में है.
ऐसे में समय से पहले चुनाव कराकर यहां इन संकटों से भी निपटा जा सकता है. हरियाणा में भी बीजेपी और गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है और इसकी वजह बीजेपी की कम सीटें हैं.
3. विपक्षी एकता अभी मजबूत स्थिति में नहीं- बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस, डीएमके, सीपीएम समेत 15 पार्टियां विपक्षी एकता बनाने की कवायद में जुटी है. इसी महीने विपक्षी पार्टियों की पटना में पहली मीटिंग है. अभी सीट बंटवारे समेत कई मुद्दों पर पेंच फंसा हुआ है.
समय से पहले चुनाव कराए जाने के पीछे इस फैक्टर को भी अहम माना जा रहा है. विपक्ष 2 मुद्दों पर सरकार को घेरने की संभावित रणनीति पर काम कर रही है, जिसमें पहला मुद्दा जातीय जनगणना का है. यह मुद्दा अभी पूरे देश में अंडर करंट पैदा नहीं कर पाया है.
बीजेपी जानती है कि कमंडल के वर्सेज में अगर मंडल की लड़ाई छिड़ती है तो इसका नुकसान हो सकता है. नीतीश कुमार ने भी चुनाव कराने के पीछे इसे ही बड़ी वजह बताया है. नीतीश के मुताबिक विपक्षी एकता के मूवमेंट से डरकर बीजेपी पहले चुनाव करा सकती है.
क्या समय से पहले चुनाव संभव है, कानूनी एंगल?
हां, देश में 3 बार समय से पहले चुनाव कराए गए हैं. पहली बार 1971 में, दूसरी बार 1984 में और तीसरी बार 2004 में. समय से पहले चुनाव कराने के लिए लोकसभा या विधानसभा को भंग करना होता है. लोकसभा भंग का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 85(2)(b) में है.
राष्ट्रपति के पास लोकसभा भंग करने का अधिकार है. इसी तरह से आर्टिकल 174(2)(b) में गवर्नर के पास विधानसभा भंग करने का अधिकार है. दोनों जगहों पर सरकार को भंग करने की सिफारिश राष्ट्रपति/राज्यपाल के पास भेजनी होता है.
सदन भंग की सूचना चुनाव आयोग को दी जाती है. इसके बाद आयोग चुनाव का नोटिफिकेशन जारी करता है.