Rajiv Gandhi Assassination Case: राजीव गांधी हत्याकांड के सभी दोषियों को सुप्रीम कोर्ट ने क्यों किया रिहा? जानें
Supreme Court: राजीव गांधी की हत्या से लेकर अब तक इस मामले में क्या-क्या हुआ? आखिर कोर्ट ने क्यों इन दोषियों को रिहा कर दिया? राज्य सरकार ने किस नियम के तहत दोषियों की रिहाई की मांग की थी?
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Rajiv Gandhi Case: देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 6 दोषियों की रिहाई के आदेश दे दिए हैं. अब इस हत्याकांड से जुड़े सभी दोषी जेल से बाहर होंगे. मामले में कुल 7 दोषी थे, जिनमें से एक पेरारिवलन को इसी साल मई में रिहा कर दिया गया था. अब शीर्ष ने बाकी 6 दोषियों को भी रिहा करने के आदेश दे दिए हैं. इनकी रिहाई का आदेश शुक्रवार (11 नवंबर) को जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच दिया.
अदालत ने कहा है कि पेरारिवलन की रिहाई को लेकर जो आदेश जारी किया था, वही इन 6 दोषियों पर भी लागू होता है. बेंच ने कहा कि अगर इन दोषियों पर कोई दूसरा मामला न चल रहा हो, तो उन्हें रिहा कर दिया जाए. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 21 मई, 1991 की रात को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी रैली में धनु के रूप में पहचानी गई एक महिला आत्मघाती हमलावर ने हत्या कर दी थी. ये सभी आरोपी करीब 31 साल से जेल में बंद थे.
दोषियों की रिहाई का आधार क्या रहा?
टाडा या आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम की निचली अदालत ने शुरुआत में इस मामले में 26 लोगों को मौत की सजा सुनाई थी. साल 1999 में, टाडा अधिनियम को खत्म होने के कुछ सालों बाद, सर्वोच्च न्यायालय ने केवल सात लोगों की सजा को बरकरार रखा, अन्य सभी को रिहा कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के आदेश में पाया गया कि दोषी ठहराए गए लोगों में से कोई भी हत्या टीम का हिस्सा नहीं था.
इस मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे सात दोषियों में से चार को साल 1999 में, सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा और अन्य तीन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. साल 2000 में, नलिनी की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया था. साल 2014 में, सुप्रीम कोर्ट ने पेरारिवलन सहित तीन की मौत की सजा को कम कर दिया.
22 जनवरी, 2021 को केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि तमिलनाडु के राज्यपाल रिहाई पर फैसला लेने के लिए तैयार हैं. फिर 25 जनवरी को राज्यपाल के कार्यालय ने इन सभी दोषियों की क्षमा पर निर्णय लेने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद पर छोड़ दिया. केंद्र ने अदालत से कहा, "केंद्र सरकार द्वारा प्राप्त प्रस्ताव को कानून के अनुसार संसाधित किया जाएगा."
अनुच्छेद-142 के विशेषाधिकार का किया इस्तेमाल
पेरारिवलन के मामले में न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने अनुच्छेद-142 के तहत अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल किया था. पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश देते हुए कोर्ट ने कहा था, "राज्य मंत्रिमंडल ने प्रासंगिक विचार-विमर्श के आधार पर रिहाई का फैसला किया था. अनुच्छेद-142 का इस्तेमाल करते हुए, दोषी को रिहा किया जाना उचित होगा."
इसके पहले 10 मई को सुनवाई करते हुए भी कोर्ट ने राज्यपाल की ओर से दया याचिका का निस्तारण न करने पर टिप्पणी की थी. कोर्ट ने कहा था, "प्रथम दृष्टया राज्यपाल का यह फैसला गलत और संविधान के खिलाफ है क्योंकि वह राज्य मंत्रिमंडल की सिफारिश से बंधे हैं. उनका फैसला संविधान के संघीय ढांचे पर प्रहार करता है."
नलिनी, रविचंद्रन ने की थी अपील
दरअसल, नलिनी और रविचंद्रन ने अपनी रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. दोनों ने मद्रास हाई कोर्ट के 17 जून के फैसले को चुनौती दी थी. हाई कोर्ट ने दोनों की रिहाई की मांग की याचिका को खारिज कर दिया था.
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