पीएम मोदी- शी जिनपिंग मुलाकात के लिए महाबलीपुरम को ही क्यों चुना गया?
चीन की मौजूदा कम्यूनिस्ट सरकार के पहली प्रधानमंत्री झाऊ एन लाई भी महाबलीपुरम या मामल्लापुरम आए थे. मामल्लपुरम 1984 से ही एक विश्व धरोहर स्थल है. स्थान चयन में निर्णायक कारक-दक्षिणी भारत और चीन के बीच का ऐतिहासिक संबंध है.
महाबलीपुरम: चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग आज भारत आ रहे हैं. शी जिनपिंग तमिलनाडु के महाबलीपुरम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलेंगे. ये एक अनौपचारिक बैठक है. मोदी-जिनपिंग मुलाकात के लिए स्थान चयन का फैसला चीन के साथ संयोजन से किया गया है. स्पष्ट मार्गदर्शन था कि राष्ट्रीय राजधानी के बाहर की कोई जगह तलाशी जाए. राष्ट्रपति जिनपिंग को इतिहास और संस्कृति में रुचि है. इसलिए भारत ने एक ऐसे स्थान की तलाश की जिसमें अन्य सभी आधारभूत संरचनाएं हों.
1984 से ही एक विश्व धरोहर स्थल है महाबलीपुरम
मामल्लपुरम यानी महाबलीपुरम 1984 से ही एक विश्व धरोहर स्थल है. स्थान चयन में निर्णायक कारक-दक्षिणी भारत और चीन के बीच का ऐतिहासिक संबंध है. सातवीं सदी में भारत आए ह्वेन त्सांग ने अपने यात्रा वृत्तांत में कांचीपुरम का उल्लेख किया है. पल्लव और चोल राजाओं के काल में इज जगह एक प्रमुख बंदरगाह था, जहां चीन के कारोबारी आया करते थे.
मान्यता है कि दक्षिण में पोर्ट से शुरू हुआ और गुआंगज़ौ में चला गया. फुकिनन में चीन में पाए गए शिलालेखों में भी भारतीय मंदिरों के बारे में उल्लेख मिलता है. मान्यता है कि कांचीपुरम में सिल्क के कारोबार का इतिहास और सम्बंध भी चीन से होने वाले रेशम व्यापार से ही था.
महाबलीपुरम आए थे कम्यूनिस्ट सरकार के पहली प्रधानमंत्री
इसके अलावा कहा यह भी जाता है कि चीन जिस किंगफू और शाओलिन की परंपरा पर इठलाता है उसका नाता भी महाबलीपुरम से है. कहा जाता है कि चीन को कुंगफू सीखने वाली और वहां बौद्ध धर्म का संदेश देने वाले बोधिवर्मन का सम्बन्ध भी इसी जगह से था. चीन की मौजूदा कम्यूनिस्ट सरकार के पहली प्रधानमंत्री झाऊ एन लाई भी महाबलीपुरम आए थे.
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