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राजस्थान से लेकर छत्तीसगढ़ तक क्यों गरम है 'बेरोजगारी भत्ते' का मुद्दा, चुनाव में कितना कारगर

छत्तीसगढ़ के युवाओं को 'बेरोजगारी भत्ता' अप्रैल 2023 से मिलना शुरू हो जाएगा. इस योजना के तहत राज्य सरकार 10 वीं से 12 वीं पास तक के युवाओं को भत्ता देने की तैयारी कर रही है.

साल 2023 में 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. जिसे लेकर सभी पार्टियां अभी से ही तैयारियों में जुट गई है और अपने-अपने वादों और योजनाओं से जनता का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश में लग गई है.

इसी क्रम जहां एक तरफ छत्तीसगढ़ में बघेल सरकार ने 26 जनवरी 2023 को शिक्षित बेरोजगारों को अगले वित्तीय वर्ष से 'बेरोजगारी भत्ता' देने का ऐलान किया है. वहीं दूसरी तरह राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने चुनाव से कुछ ही महीने पहले 'सोशल सिक्योरिटी' का मुद्दा उठाया है और कहा है कि इसे लेकर संसद में कानून बनाया जाना चाहिए. 

छत्तीसगढ़ में किए गए ऐलान के बाद यहां के युवाओं को अप्रैल 2023 से भत्ता मिलना शुरू हो जाएगा. इस योजना के तहत राज्य सरकार 10 वीं से 12 वीं पास तक के युवाओं को भत्ता देने की तैयारी कर रही है. छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी भत्ता की मांग पिछले 4 सालों से की जा रही थी और यहां इस क्राइटेरिया में लगभग 10 लाख से ज्यादा युवा आ रहे हैं.

ऐसे में चुनाव से पहले इसपर फाइनल मुहर लगाना युवाओं को साधने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कदम मास्टर स्ट्रोक साबित हो सकता है. 

चुनाव से पहले समय-समय पर किया जाता रहा है ऐलान 

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में साल 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में शिक्षित बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया था. अब इस वादे को सरकार के आखिरी साल में पूरा किया जा रहा है. वहीं साल 2003 में बीजेपी ने भी इस राज्य में 500 रुपए बेरोजगारी भत्ता देने का ऐलान किया था, लेकिन कभी नहीं दिया. 

विपक्ष की माने तो राज्य सरकार सिर्फ और सिर्फ चुनाव की नजदीक आ रही तारीख को देखते हुए ऐसे फैसले ले रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत में बेरोजगारी भत्ता चुनाव जीतने की गारंटी है? 

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब चुनाव से पहले जनता को लुभाने के लिए इस तरह के चुनावी वादे किए गए. इस राज्य से पहले यूपी से लेकर हिमाचल प्रदेश तक की सरकार जनता को लुभाने के लिए इस तरह के ऐलान कर चुकी है.

यहां मिल रहा बेरोजगारी भत्ता 

मध्यप्रदेश

मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार अपने राज्य के साक्षर बेरोजगारों को हर महीने 1500 रुपये भत्ते के रूप में देती है. इसे देने का एकमात्र लक्ष्य शिक्षित बेरोजगारों के बीच नए अवसरों के लिए हौसला बरकरार करना है. इस स्कीम का लाभ राज्य का कोई भी शिक्षित बेरोजगार ले सकता है.

इस राज्य में बेरोजगारी भत्ता का लाभ 12वीं तक की पढ़ाई किए हुए बेरोजगार जिसकी उम्र 21 से 35 साल तक है, तीन साल तक ले सकते हैं. जबकि शिक्षित बेरोजगारों को 1,500 और कम पढ़े-लिखों के 1,000 रु. मासिक दी जाती है. 

उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी भत्ता स्कीम के तहत शिक्षित बेरोजगारों को 1000 रुपये से लेकर 1500 रुपये आर्थिक मदद के तौर पर दी जाती है. इस योजना का लाभ उठाने के लिए न्यूनतम योग्यता 10वीं या उससे ज्यादा होनी चाहिए. इसके अलावा अप्लाई करने वाला आवेदक यूपी का स्थायी निवासी होना चाहिए. साथ ही परिवार की सालाना आय 3 लाख से कम और आवेदक की उम्र 21 से 35 साल तक होनी चाहिए. 

बिहार

बिहार में भी बेरोजगार युवाओं को राज्य सरकार हर महीने बेरोजगारी भत्ता दे रही है. इस योजना के तहत यहां 10वीं या 12वीं तक पढ़ाई किए युवा, जिसकी उम्र 20 से 25 साल है, उन्हें नौकरी लगने तक या अधिकतम दो साल तक 1000 रु. माह भत्ता दिया जाता है. 

राजस्थान

राजस्थान में बेरोजगारी भत्ता योजना की शुरुआत राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बेरोजगार युवाओं को लाभ प्रदान करने के लिए की थी. इस योजना के अंतर्गत राजस्थान के शिक्षित बेरोजगार युवाओं को 4000 रुपये और बेरोजगार युवतियों को 4500 रुपये का बेरोजगारी भत्ता प्रतिमाह आर्थिक सहायता के रूप में राज्य सरकार द्वारा प्रदान किया जाता है. 

हिमाचल प्रदेश

इस राज्य में 12वीं तक की पढ़ाई किए बेरोजगार युवा को हर महीने 1,000 रुपये का भत्ता दिया जाता है. इसके अलावा राज्य में दिव्यांग बेरोजगारों को 1,500 रुपये मिलते हैं. ये भत्ता रजिस्ट्रेशन के बाद दो साल के लिए दिए जाते हैं. भत्ता पाने के लिए आवेदक की उम्र 21 से 35 साल होनी चाहिए. साथ ही परिवार की सालाना आय 2 लाख से कम होनी चाहिए.

बेरोजगारी भत्ता बना जीत का मंत्र 

उत्तर प्रदेश के 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (एसपी) के चुनाव घोषणा पत्र में ‘बेरोजगारी भत्ता’ देने का वादा किया था. इस चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 224 सीटें जीतकर बहुमत में सरकार बनाई थी. 

छत्तीसगढ़ में कितने हैं पंजीकृत बेरोजगार 

छत्तीसगढ़ में रजिस्टर्ड बेरोजगारों की संख्या 19 लाख है. साल 1996 में जब इस राज्य में इस भत्ते की शुरुआत की गई थी तब यहां के बेरोजगार युवाओं को 200-300 रुपए दिए जाते थे. जिसे साल 2015 में बढ़ाकर 1000 कर दिया गया था. वहीं साल 2018 के विधानसभा चुनाव में राज्य सरकार ने अपने घोषणापत्र में राजीव मित्र योजना के तहत घर-घर रोजगार का वादा किया था. लेकिन वो वादा अब तक पूरा नहीं किया गया. 

कांग्रेस और बीजेपी आमने-सामने

कांग्रेस के इस घोषणा के बाद से लगातार बीजेपी राज्य सरकार पर निशाना साध रही है. ऐलान के अगले ही दिन बीजेपी ने कांग्रेस सरकार पर पिछले 4 साल के बेरोजगारी भत्ता देने की मांग कर दी. 

पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने बेरोजगारी भत्ता को लेकर पोस्ट करते हुए कहा, 'साल 2018 में राहुल गांधी ने बेरोजगारी भत्ते की घोषणा की थी. चुनावी साल में फिर से भूपेश बघेल यही घोषणा करके क्या सिद्ध करना चाहते हैं! 4 सालों में जिस कांग्रेस ने सिर्फ घोषणा की, उनसे क्रियान्वयन की कोई उम्मीद नहीं है.'

अपने एक और पोस्ट में उन्होंने कहा, ' कांग्रेस को चुनाव सामने देखकर बेरोजगारी भत्ता की याद आ गई. 52 महीनों तक युवाओं को 2500 रुपए भत्ता नहीं दिया गया. क्या कांग्रेस का घोषणा पत्र सिर्फ आखिरी छह महीनों के लिए था. राहुल गांधी के वादे के अनुरूप 4 साल का बकाया 12 हजार करोड़ तत्काल बेरोजगारों को दिया जाना चाहिए.'

4 साल के हिसाब से बेरोजगारी भत्ता का आंकड़ा

बीजेपी ने 4 साल के हिसाब से बेरोजगारी भत्ता का आंकड़ा भी जारी किया. बीजेपी के प्रदेश मीडिया प्रभारी अमित चिमनानी ने बताया कि पिछले चार साल का बेरोजगारी भत्ता 15 हजार करोड़ रुपए है. कांग्रेस सरकार ने 10 लाख से ज्यादा युवा को बेरोजगारी भत्ते के रूप में हर महीने 2500 रुपये देने की घोषणा की थी. 10 लाख युवाओं का हर महीने के 2500 रुपये के बेरोजगारी भत्ते के अनुसार 15 हजार करोड़ रुपए सरकार के पास लंबित है.

क्या कहा कांग्रेस ने?

बेरोजगारी भत्ते को कांग्रेस के संचार विभाग प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला का कहना है कि, 'मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार जब से छत्तीसगढ़ में बनी है. हर वर्ग के लिए न सिर्फ योजनाएं बनाई जा रही है, बल्कि योजनाओं को जमीनी स्तर पर प्रभावी क्रियान्वयन किया जा रहा है.'  

उन्होंने बीजेपी को आड़े हाथ लेते हुए उन्होंने कहा कि बीजेपी की बौखलाहट है कि कांग्रेस पार्टी का युवाओं के प्रति प्रतिबद्धता है, जिस प्रदेश में मात्र आधा फीसदी ही बेरोजगारी दर है. आधा फीसदी युवाओं के लिए सोचना भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की संवेदनशीलता है. 2003 में बीजेपी ने भी 500 रुपए बेरोजगारी भत्ता देने की घोषणा की थी, लेकिन कभी नहीं दिया. 

कैसे मिलता है बेरोजगारी भत्ता?

ऐसे शिक्षित युवा जो पढ़े लिखे तो हैं लेकिन उन्हें रोजगार नहीं मिल पा रहा है, को कई राज्यों के सरकार अलग अलग योजनाओं के तहत बेरोजगारी भत्ता देती है. इसका लाभ उठाने वाले युवाओं के परिवार की सालाना आय भी कम होनी चाहिए. इसके अलावा बेरोजगारी भत्ता पाने के लिए राज्य सरकार के रोजगार कार्यालय में रजिस्टर्ड होना भी जरूरी है. 

हर राज्य में इस योजना से मिलने वाला लाभ एक तय समय के लिए तय किया है. मसलन ये भत्ता मध्य प्रदेश में तीन साल तक मिलता है. हालांकि इस बीच उन्हें नौकरी मिलने पर भत्ता मिलना बंद हो जाता है.

क्या है अशोक गहलोत की मांग 

हाल ही में लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला की मौजूदगी में सीएम गहलोत ने अपने एक बयान में सोशल सिक्योरिटी का मुद्दा उठाया है. उनका कहना है कि  इसे लेकर संसद में कानून बनाया जाना चाहिए. गहलोत के इस बयान को आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है. 

बयान के अनुसार, उनकी मांग है कि आरटीई की तरह, फूड सिक्योरिटी एक्ट की तरह, नरेगा की तरह ऐसे कानून बने देश के अंदर जिसके तहत राइट टू सोशल सिक्योरिटी, हर व्यक्ति को सोशल सिक्योरिटी कंपल्सरी हो. दुनिया के मुल्कों में जो विकसित राष्ट्र हैं वो परिवारों को वीकली पैसा देते हैं. कोई परिवार जो जरूरतमंद हैं उसके भरण-पोषण की सरकार जिम्मेदारी ले लेती है." 

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