उत्तराखंड में चुनाव से महज एक साल पहले क्यों त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने दिया सीएम पद से इस्तीफा?
एक तरफ जहां त्रिवेन्द्र सिंह रावत के खिलाफ पार्टी के विधायक आए दिन शिकायत करने नई दिल्ली पहुंचे रहते थे तो वहीं दूसरी तरफ वे पार्टी आलाकमान से तालमेल बनाने में विफल रहे. इसके अलावा, पार्टी की तरफ से छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम और बीजेपी के सीनियर नेता समेत 2 पर्यवेक्षकों को पर्यवेक्षक बनाकर राज्य में भेजा गया था.
उत्तराखंड में मंगलवार की शाम त्रिवेन्द्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के साथ ही पिछले कई दिनों से जारी राजनीतिक घटनाक्रम का आखिरकार अंत हो गया. 2017 के विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत के बाद त्रिवेन्द्र सिंह रावत को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाया गया था. बीजेपी ने उस वक्त 69 सदस्यीय विधानसभा में से 57 सीटों पर जीत दर्ज की थी.
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि अब जबकि उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव अगले साल होने जा रहा है उस स्थिति में बीजेपी आलाकमान की तरफ से इतना बड़ा फैसला क्यों लिया गया? क्यों उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन किया गया?
त्रिवेन्द्र रावत की नहीं सुनते थे विधायक और मंत्री
दरअसल, त्रिवेन्द्र सिंह रावत का उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद से यह इस्तीफा अनायास ही नहीं है. सूत्रों के मुताबिक, पिछले चार साल से त्रिवेन्द्र सिंह रावत बतौर मुख्यमंत्री राज्य का नेतृत्व कर रहे हैं लेकिन उनके खिलाफ अपनी ही पार्टी विधायकों और कैबिनेट मंत्रियों ने मोर्चा खोल रखा था. त्रिवेन्द्र सिंह रावत की ना विधायक सुनते थे और ना ही मंत्री. इसके अलावा, आए दिन उनके खिलाफ नई दिल्ली पहुंचकर पार्टी विधायकों की तरफ से कार्यशैली को लेकर शिकायत की जा रही थी.
नौकरशाही चरम पर
उत्तराखंड में नौकरशाही चरम पर थी. सूत्रों के अनुसार, मंत्रियों और ब्यूरोक्रेसी पर त्रिवेन्द्र रावत की पकड़ ना के बराबर रह गई थी. त्रिवेन्द्र सिंह रावत के खिलाफ कार्यकर्ताओं और मंत्रियों में काफी रोष था. ऐस वक्त में जब केन्द्र में बीजेपी की सरकार है और राज्य में भी बीजेपी की सरकार है, उसके बावजूद त्रिवेन्द्र रावत राज्य का विकास नहीं करवा पाए. इसके अलावा कांग्रेस से जो नेता बीजेपी में शामिल हुए थे उन्होंने भी त्रिवेन्द्र रावत का खुलेआम विरोध करना शुरू कर दिया था.
आलाकमान से तालमेल की कमी
एक तरफ जहां त्रिवेन्द्र सिंह रावत के खिलाफ पार्टी के विधायक आए दिन शिकायत करने नई दिल्ली पहुंचे रहते थे तो वहीं दूसरी तरफ वे पार्टी आलाकमान से तालमेल बनाने में विफल रहे. इसके अलावा, पार्टी की तरफ से छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम और बीजेपी के सीनियर नेता समेत 2 पर्यवेक्षकों को पर्यवेक्षक बनाकर राज्य में भेजा गया था. पर्यवेक्षक की रिपोर्ट के आधार पर पार्टी की तरफ से एक एक्शन लिया गया.
सर्वे में त्रिवेन्द्र रावत को कमजोर लोकप्रियता
कुछ दिनों पहले एबीपी न्यूज की तरफ से देश के लोकप्रिय मुख्यमंत्रियों के ऊपर सर्वे किया था. इस सर्वे में जहां पीएम मोदी की लोकप्रियता बरकरार पाई गई तो वहीं दूसरी तरफ त्रिवेन्द्र सिंह रावत की लोकप्रियता बतौर मुख्यमंत्री काफी कम पाई गई. इसके अलावा पार्टी की आंतरिक लोकप्रियता में त्रिवेन्द्र रावत की लोकप्रियता में कमी देखी गई.
सत्ता विरोधी लहर
उत्तराखंड में बीजपी इस वक्त सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है. सूत्रों के मुताबिक, ऐसे में बीजेपी ने सोची समझी रणनीति के तहत राज्य में पार्टी नेतृत्व की कमान बदलने का फैसला किया है. उत्तराखंड में बीजेपी का मजबूत संगठन है. वही पार्टी की सबसे ब़ी ताकत रहा है. लेकिन, उस संगठन की लगातार त्रिवेन्द्र सिंह रावत की अगुवाई वाली सरकार में कहीं ना कहीं अनदेखी की जा रही थी. गौरतलब है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड के 69 सदस्यीय विधानसभआ में बीजेपी को 57 सीटें मिली थी. दूसरी तरफ कांग्रेस सिर्फ 11 सीट पर ही सिमट कर रह गई थी.
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