Shiv Sena To Support Draupadi Murmu: शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने एनडीए की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) को समर्थन देकर सबको चौंका दिया है. सरकार गंवाने के बाद अब उद्धव सरकार के सामने सवाल पार्टी पर नियंत्रण बचाये रखने का है. माना जाता है कि मुर्मू को समर्थन देने का फैसला उन्होंने इसी वजह से लिया.


शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे इन दिनों रोज पार्टी के पदाधिकारियों की बैठकें ले रहे हैं. कभी विभाग प्रमुखों से मिलते हैं, कभी सांसदों से तो कभी विधायकों से. बीते सोमवार को पार्टी के सांसदों के साथ हुई बैठक के बाद मंगलवार को ठाकरे ने ऐलान किया कि उनकी पार्टी राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देगी. इस फैसले के पीछे उन्होंने अपने आदिवासी शिव सैनिकों की ओर से की गई मांग का हवाला दिया.


ठाकरे ने मुर्मू को समर्थन देने के पीछे जो भी कारण बताया हो लेकिन सियासी हलकों में माना जा रहा है कि इस फैसले के पीछे असली कारण कुछ और ही है. वो ये है कि ठाकरे नहीं चाहते कि सरकार छिन जाने के बाद पार्टी भी उनके हाथ से निकल जाए.


दरअसल मंगलवार को ठाकरे के निवास मातोश्री में हुई बैठक के दौरान पार्टी के प्रवक्ता और राज्य सभा सांसद संजय राउत और बाकी सांसदों के बीच तीखी नोंक झोंक हुई. सूत्रों के मुताबिक, ज्यादातर सांसद चाहते थे कि पार्टी एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करे जबकि राउत चाहते थे कि विपक्ष के साझा उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का समर्थन किया जाना चाहिए.


बैठक से बाहर निकल गए थे संजय राउत
बात इतनी ज्यादा बिगड़ गई कि राउत बैठक बीच में छोड़कर बाहर निकल आए, हालांकि बाद में उन्होंने सफाई दी कि सामना दफ्तर में कुछ जरूरी काम था इसलिए उन्हें बैठक से बाहर निकलना पड़ा. राउत की सलाह को नजरअंदाज करके ठाकरे को अपनी सांसदों की मर्जी के आगे झुकना पड़ा. ठाकरे इन सांसदों को अपना साथ छोड़ एकनाथ शिंदे के खेमे में जाने का कोई बहाना नहीं देना चाहते थे. शिंदे का खेमा भी एनडीए उम्मीदवार मुर्मू को समर्थन दे रहा है.


दरअसल पार्टी के 40 विधायकों की ओर से की गई बगावत के बाद ठाकरे का मुख्यमंत्री पद तो गया ही लेकिन उसके बाद भी उन्हें झटके दर झटके मिल रहे हैं. राज्य में जिन 6 महानगरपालिकाओं में शिवसेना की सत्ता थी उनमें से 4 के ज्यादातर पार्षदों ने शिंदे खेमे को अपना समर्थन दे दिया जिनमें ठाणे और नवी मुंबई जैसी बड़ी महानगरपालिकाएं शामिल हैं. 


मुंबई महानगरपालिका के स्थाई समिति के अध्यक्ष यशवंत जाधव और उनकी विधायक पत्नी यामिनी जाधव भी शिंदे खेमे में शामिल हो गए हैं. इसके अलावा लोकसभा में पार्टी के कुल 19 सांसदों में से करीब 10 सांसद के शिंदे खेमे में जाने की आशंका जताई जा रही है.


इन तमाम हलचल के बीच ठाकरे के लिए चिंता की बात ये भी है कि शिंदे खेमा शिवसेना के चुनाव चिह्न धनुष बाण पर भी अपना दावा ठोंक सकता है. ऐसे में बीएमसी चुनाव के पहले ठाकरे की प्राथमिकता पार्टी में और ज्यादा फूट होने से रोकना है और इसी वजह से मुर्मू को समर्थन देने का फैसला उद्धव ने किया.


वैसे राष्ट्रपति पद के चुनाव के मामले में शिवसेना का इतिहास रहा है कि वो गठबंधन की परवाह किए बिना स्वतंत्र फैसले लेती है. इससे पहले एनडीए में रहने के बावजूद शिवसेना ने राष्ट्रपति पद के लिए यूपीए उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल और प्रणब मुखर्जी को अपना समर्थन दिया था. 


कांग्रेस भड़की
इसबार भी शिवसेना उन यशवंत सिन्हा को समर्थन नहीं दे रही जिन्हें महाविकास अघाड़ी के दूसरे घटक दल यानी कि कांग्रेस और एनसीपी समर्थन दे रहे हैं. ऐसे में सवाल खड़ा हो गया है कि क्या उद्धव के फैसले से महाविकास अघाड़ी में फूट पड़ेगी. ठाकरे के फैसले के बाद कांग्रेस की ओर से बड़ी ही तीखी प्रतिक्रिया आई. महाराष्ट्र में कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मंत्री बालासाहब थोराट ने ट्वीट कर कहा, “राष्ट्रपति पद का चुनाव एक वैचारिक लड़ाई है. लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए संघर्ष शुरू है. महिला, पुरूष, आदिवासी, गैर-आदिवासी वाली ये लड़ाई नहीं है.''


उन्होंने कहा, ''शिवसेना एक अलग राजनीतिक पार्टी है इसलिये वो अपना अलग रुख अपना सकती है, लेकिन इस वैचारिक लड़ाई में जब अलोकतांत्रिक रास्ता अखित्यार करके सरकार गिराई गई, शिवसेना के अस्तित्व को चुनौती दी गई. ऐसे में शिवसेना की ओर से अपनाया गया रूख समझ से परे है. शिवसेना महाविकास अघाड़ी में है लेकिन उसने ये फैसला हमसे कोई चर्चा किए बिना लिया.”


इस मामले में एनसीपी संभलकर प्रतिक्रिया दे रही है. पार्टी के दिग्गज नेता जयंत पाटिल ने कहा कि शिवसेना एनडीए उम्मीदवार को समर्थन दे रही है इसका मतलब ये नहीं कि वो एनडीए को समर्थन दे रही है.


क्या बीजेपी या शिंदे गुट से करेंगे समझौता?
ये बात सच है कि मुर्मू को ठाकरे की ओर से दिए गए समर्थन के बाद सियासी हलकों में ये बात गर्म हो गयी है कि कहीं ये उनकी ओर से बीजेपी के साथ रिश्ते सुधारने का पहला कदम तो नहीं? पर हकीकत इससे अलग नजर आती है. उद्धव (Uddhav Thackeray) के करीबी सूत्र बताते हैं कि वे बीजेपी या शिंदे खेमे के साथ समझौता करने के मूड में फिलहाल तो बिल्कुल नहीं हैं. उन्होंने पार्टी नेताओं की बैठकों में कई बार ये दोहराया है कि अकेले लड़ाई लड़ने के लिए तैयार रहें.


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