Swami Swaroopanand Saraswati: हिंदुओं (Hindus) के सबसे बड़े धर्मगुरुओं में से एक स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Swami Swaroopanand Sarswati) ने रविवार को आखिरी सांस ली. उनका निधन मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के नरसिंहपुर (Narsinghpur) जिले में बने झोतेश्वर धाम में हो गया था. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती दो मठों द्वारका और ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य (Shankaracharya) थे. उन्हें परमहंसी गंगा आश्रम में भू-समाधि दी गई. तो ऐसे में अब सवाल ये है कि आखिर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का दाह संस्कार क्यों नहीं किया गया और उन्हें भू-समाधि ही क्यों दी गई? आइए जानते हैं इन सवालों के जवाब...


दरअसल, सनातन धर्म में अंतिम संस्कार करने की अलग-अलग प्रक्रियाएं हैं. इन प्रक्रियाओं में दाह संस्कार के अलावा भू-समाधि और जल-समाधि भी शामिल हैं. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को भू-समाधि दी गई. भू-समाधि को लेकर कई सवाल है. भू-समाधि किसे दी जाती है, कैसे दी जाती है और ये परंपरा कितनी पुरानी है.


सनातन धर्म में माना जाता है कि व्यक्ति का शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है. जिनसमें भू, अग्नि, जल, वायु और आकाश शामिल हैं. इंसान के मरने के बाद ये शरीर इन्ही पांच तत्वों में मिल जाता है. तभी बोला जाता है कि शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया. सनातन धर्म में मुख्य रूप से व्यक्ति के मरने के बाद उसका अंतिम संस्कार किया जाता है जिसमें उसे अग्नि के हवाले कर दिया जाता है. इसे अग्नि संस्कार भी कहते हैं.




किन लोगों को दी जाती है भू-समाधि?


अग्नि संस्कार के अलावा, भू, जल और वायु समाधि भी जाती है. अब ये किन लोगों को दी जाती है ये जानते हैं. दरअसल, भगवान शिव और उनके अवतारों को मानने वालों को शैव कहा जाता है. शैव पंथ को मानने वालों के 7 अखाड़े होते हैं. इन अखाड़ो में जूना, महानिर्वाणी, आह्वान, निरंजनी, आनंद, अटल और अग्नि अखाड़े शामिल हैं. इन अखाड़ों से जुड़े साधु संतों को भू-समाधि या जल-समाधि दी जाती है. तो वहीं, वैष्णव पंथ और उदासीन संप्रदाय के साधु संतों का अग्नि संस्कार ही होता है.




भू-समाधि क्यों दी जाती है?


अब हर अखाड़े की अपनी-अपनी परंपरा होती है. इसी हिसाब से साधु-संतों को भू-समाधि दी जाती है. हिंदू धर्म में 16 संस्कार होते हैं. जब कोई साधू बन जाता है और आम जीवन से सन्यास ले लेता है तो उसके सभी संस्कार पूरे हो जाते हैं. ऐसे में उसका अग्नि से संबंध खत्म हो जाता है. चूंकि वो मरने से पहले ही अपना पिंड दान कर चुके होते हैं. यही वजह है कि उन्हें भू-समाधि दी जाती है.




इसके अलावा एक मान्यता ये भी है कि साधु-संतों को भू-समाधि इसलिए भी दी जाती है ताकि उनकी पूजा करने वाले लोग उनके निधन के बाद भी उनके दर्शन कर पाएं.


कैसे दी जाती है भू-समाधि?


इस प्रक्रिया में सबसे पहले शरीर को स्नान कराया जाता है. उसके बाद उसी तरह के कपड़े पहनाए जाते हैं जिस तरह के गुरु धारण करते हैं. शरीर पर भस्म और माथे पर त्रिपुंड लगाया जाता है. समाधि देने से पहले पार्थिव शरीर की शोभा यात्रा निकाली जाती है, जिससे कि भक्त अपने गुरू के दर्शन कर पाएं. फिर शरीर को समाधि स्थल पर लाया जाता है. शरीर को आसन पर बैठा दिया जाता है. पार्थिव शरीर का चेहता उत्तर दिशा की ओर किया जाता है जिधर कैलाश पर्वत स्थित है. इसके बाद शरीर को ढक दिया जाता है और आखिर में समाधि के ऊपर गाय के गोबर से लेपन किया जाता है.


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