Jharkhand Election: बीजेपी के पूर्व कद्दावर नेता यशवंत सिन्हा ने सोमवार (16 सितंबर) को 'अटल विचार मंच' के नाम से एक नया सियासी दल बनाने का ऐलान किया. यशवंत सिन्हा ने अपनी नई पार्टी का आगाज हजारीबाग के पुराने बीजेपी कार्यालय में ही किया है. जहां जयंत सिन्हा के सांसद रहने तक बीजेपी का कार्यालय चलता था.


यशवंत सिन्हा ने नई पार्टी बनाने के बाद ऐलान किया कि आगामी झारखंड विधानसभा चुनाव में सभी 81 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे. इस दौरान उन्होंने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी अब अटल बिहारी वाजपेयी के सिद्धांतों से दूर होती जा रही है. खैर, इस बीच अहम सवाल ये है कि आखिर यशवंत सिन्हा ने बगावत की राह क्यों चुनी?


मोदी सरकार से बढ़ती रही नाराजगी


2014 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के नाम पर मुहर लगाई. माना जाता है कि पार्टी ने 2014 से ही कई वरिष्ठ नेताओं को टिकट नहीं देने का फैसला किया. यशवंत सिन्हा को भी 2009 में हजारीबाग से जीतने के बावजूद उनके बेटे जयंत सिन्हा को पार्टी ने प्रत्याशी बना दिया. उनके बेटे जयंत सिन्हा 2014 और 2019 में हजारीबाग से ही बीजेपी सांसद रहे. 


हालांकि, इस दौरान मोदी सरकार के साथ उनके रिश्ते बिगड़ते रहे. 2018 में जब यशवंत सिन्हा ने बीजेपी का दामन छोड़ा था, तब उन्होंने पार्टी के हालातों का जिक्र करते हुए भारत में लोकतंत्र पर बड़ा खतरा बताया था. हालांकि, बीजेपी ने इस इस्तीफे पर कोई खास हैरानी नहीं जताई. बीजेपी की ओर से कहा गया कि वे (सिन्हा) कुछ सालों से विपक्षी नेता की तरह पेश आ रहे थे.


2024 में बेटे जयंत का भी कटा टिकट


लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी ने हजारीबाग से सांसद रहे जयंत सिन्हा का टिकट काटकर मनीष जायसवाल को प्रत्याशी बना दिया. बीजेपी की लिस्ट जारी होने से पहले ही जयंत सिन्हा ने भी राजनीति से संन्यास का ऐलान कर दिया था. सियासी गलियारों में इस बात की काफी चर्चा रही कि 2022 के राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी की ओर से घोषित उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के सामने यशवंत सिन्हा के ताल ठोंकने की वजह से जयंत का टिकट कट गया. 


2024 के चुनाव में यशवंत सिन्हा ने खुले तौर पर बीजेपी को हराने के लिए इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी के समर्थन में चुनाव प्रचार भी किया था. चुनाव के दौरान ही जयंत सिन्हा के बेटे आशिर सिन्हा को इंडिया गठबंधन की एक रैली में भी देखा गया. हालांकि, इसे लेकर कांग्रेस की ओर से कहा गया था कि रैली में यशवंत सिन्हा के प्रतिनिधि के तौर पर आशिर शामिल हुए थे. 


यशवंत की बगावत से बीजेपी को कितना नुकसान?


माना जा रहा है कि बीजेपी की ओर से बेटे का टिकट काटे जाने और पार्टी से अपनी नाराजगी के चलते ही उन्होंने नई पार्टी का ऐलान किया है. हालांकि, उनकी पार्टी आगामी झारखंड विधानसभा चुनाव में किसी दल से गठबंधन करेगी या नहीं, इस सवाल पर उन्होंने कहा कि इसका फैसले नतीजों के बाद किया जाएगा. 


सियासी जानकारों की मानें तो यशवंत सिन्हा की नई पार्टी झारखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कई सीटों पर नुकसान पहुंचा सकती है. इसमें हजारीबाग लोकसभा के अंतर्गत वाले चार विधानसभा सीटें महत्वपूर्ण हैं. हालांकि, हजारीबाग से बीजेपी सांसद मनीष जायसवाल की जीत के बाद से इस नुकसान के कम होने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है.


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