नई दिल्ली: पेट्रोल और डीज़ल की लगातार बढ़ती कीमतों से जनता परेशान है. केंद्र सरकार पर कीमत कम करने का लगातार दबाव बढ़ता जा रहा है. जानकारों का मानना है कि केंद्र सरकार अपने टैक्स में कटौती कर आम लोगों को बढ़ती कीमतों से राहत दे सकती है.


मशहूर अर्थशास्त्री किरीट पारिख वही शख्स हैं, जिनकी अगुवाई में बनाई गई एक कमेटी ने 2010 में पेट्रोल, डीज़ल और अन्य पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों पर सरकारी नियंत्रण ख़त्म करने की सिफ़ारिश की गई थी. रिपोर्ट पर अमल करते हुए दोनों ही पदार्थों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया गया. मतलब ये, कि पेट्रोल और डीज़ल की कीमत सरकार नहीं, बल्कि बाज़ार के मुताबिक़ तेल बेचने वाली कम्पनियां तय करेंगी. पारिख का मानना है कि तेल की कीमतों में जो आग लगी है, उसका कारण सरकार की ओर से लगाया गया बेतहाशा टैक्स है.


पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों में टैक्स का हिस्सा कितना?
इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक़ जिस दिन दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 89.29 रुपए थी, तब पेट्रोल का बेस प्राइस 31.82 रुपया प्रति लीटर था. उसके बाद उसमें 0.28 पैसा ट्रांसपोर्टेशन का जोड़ा गया. इसपर केंद्र की ओर से लगने वाला 32.90 रुपया एक्साइज टैक्स लगाया गया. जबकि राज्य सरकार का वैट 20.61 रुपया लगा. इसके अलावा पेट्रोल पंप डीलरों का कमीशन 3.68 रुपया बना.


इसमें राज्य सरकारों की ओर से लगने वाला टैक्स पेट्रोल के बेस प्राइज़ के हिसाब से घटता बढ़ता है, जबकि एक्साइज टैक्स एक तय दर से लगाई जाती है. किरीट पारिख का कहना है कि सरकार ने पेट्रोल पंपों को एक तरह से टैक्स वसूलने का एजेंट बना दिया है.


किरीट पारिख पेट्रोल और डीज़ल को जीएसटी में शामिल करने के हिमायती हैं. उनका कहना है कि इससे दाम में स्थिरता आएगी.


पश्चिम बंगाल चुनाव: क्रिकेटर मनोज तिवारी तृणमूल कांग्रेस में होंगे शामिल