राज की बातः बिहार की राजनीति में इन दिनों तूफान मचा हुआ है. लोकजनशक्ति पार्टी में ऐसी रार मची की आने वाले वक्त में बिहार की राजनीति में भी इसका साइडइफेक्ट साफ साफ देखा जा सकेगा. रामविलास पासवान के निधन के बाद उनके भाई पशुपति पारस ने खेल कर दिया, लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए और सासंदों को अपने साथ मिला लिया.
अब सवाल ये उठ रहा है कि चिराग पासवान का राजनैतिक भविष्य क्या होगा. सवाल ये है कि क्या रामविलास पासवान की बनाई विरासत को चिराग संभाल पाएंगे या पार्टी की ही तरह वो भी हाथ से फिसल जाएगी. तो इन सवालों के जवाब से जो राज की बात निकलकर आ रही है वो ये कि विरासत बचे या न बचे लेकिन चिराग पासवान उसे आसानी से जाने नहीं देगे. राज की बात ये है कि विरासत बचे या न बचे पर चिराग अपना व्यक्तिगत राजनैतिक वजूद बचा ले जाएंगे जिसका विकल्प उनके सामने आ गया है. हालांकि जो विकल्प चिराग के सामने है उसे थामने से पहले वो सियासत के मैसेज गेम को साधेंगे फिर अगला कदम बढ़ाया जाएगा.
दरअसल एलजेपी में फूट और पार्टी के पशुपति पारस के हाथों में जाने के बाद चिराग पासवान को तेजस्वी यादव ने अपनी पार्टी में सम्मान ऑफर किया है. तेजस्वी की दलील है कि उनके पिता लालू और रामविलास पासवान ने बिहार के लिए साथ काम किया है लिहाजा उनकी और चिराग की जोड़ी काम क्यों नहीं कर सकती.
हालांकि इस ऑफर पर अभी चिराग पासवान ने अपना स्टैंड साफ नहीं किया है लेकिन राज की बात ये है कि आरजेडी का दामन थामने के सिवा चिराग के पास अभी कोई विकल्प भी नहीं है. लिहाजा वो लालटेन भविष्य में थाम सकते हैं लेकिन उसके पहले बिहार में एक बड़े सियासी पृष्ठभूमि तक अपनी पहुच बनाने के बाद.
राज की बात ये है कि रामविलास पासवान के निधन के बाद जिस तरह से पशुपति पारस ने पार्टी की कमान अपने हाथों में ली. उसी चीज को बिहार की जनता तक पहुंचाने के लिए चिराग पासवान एक यात्रा बिहार में निकालने जा रहे हैं. इस यात्रा के जरिए जनता से जुड़ने की कोशिश भी होगी और पिता के निधन की सहानुभूति पाने की कोशिश. हालांकि विधानसभा चुनाव में ये सहानुभूति चिराग पासवान और उनकी पार्टी हासिल नहीं कर पाए थे. लेकिन झटकों के इस दौर में अब भी हाथ में न रही तो सहानुभूति पाने की एक उम्मीद तो जगी ही है.
वर्तमान सियासी परिस्थितियों में चिराग पासवान के सामने आरजेडी में जाने के सिवा कोई वकल्प तो नहीं है लेकिन इस बात का विकल्प तो बचता ही है कि यात्रा के जरिए पशुपति पारस की छवि को डैमेज किया जाए, सहानुभूति के जरिए अपनी सियासी जमीन को थोड़ा मजबूत किया जाए. क्योंकि चिराग के लिए केवल आरजेडी में चले जाना भर पर्याप्त नहीं है. पार्टी मे जाकर सम्मान भी बना रहे, मजबूती भी बनी रहे तब तो राजनैतिक भविष्य बचता दिखेगा. हालांकि इन परिस्थितियों के बाद भी इतना साफ है कि चिराग पासवान के सामने विकल्प बचे हुए हैं और उनका राजनैतिक भविष्य अभी शून्य नहीं हुआ है.
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