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सरकार तलाक पर कानून बनाने को तैयार
नई दिल्ली: सरकार मुस्लिम तलाक पर कानून लाने को तैयार है. एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने आज सुप्रीम कोर्ट से कहा, "अगर कोर्ट पर्सनल लॉ में दिए तलाक को रद्द कर देता है तो लोगों को दिक्कत नहीं होने दी जाएगी. ऐसी स्थिति में सरकार कानून बनाएगी."
सुप्रीम कोर्ट में 3 तलाक पर चल रही सुनवाई का आज तीसरा दिन था. एटॉर्नी जनरल 5 जजों की संविधान पीठ के सामने केंद्र सरकार का पक्ष रखने के लिए पेश हुए. उनकी दलील थी कि पूरे मामले को संविधान के अनुच्छेद 14, 15 यानी बराबरी के अधिकार के आधार पर परखा जाए.
रोहतगी ने कहा कि सिर्फ एक साथ 3 तलाक ही नहीं, पर्सनल लॉ में मौजूद तलाक के बाकी दो प्रावधान, तलाक ए अहसन और तलाक ए हसन भी महिलाओं से भेदभाव करते हैं. इस पर 5 जजों की बेंच के सदस्य जस्टिस ललित ने पूछा, "अगर सबको ख़ारिज कर दिया गया तो मर्द तलाक के लिए क्या करेंगे." एटॉर्नी जनरल ने कहा, "सरकार तलाक के लिए कानून बनाएगी."
एटॉर्नी जनरल ने आगे कहा- "हम कैसे जिएं, इस पर नियम बनाए जा सकते है. शादी और तलाक धर्म से जुड़े मसले नहीं. कुरान की व्याख्या करना कोर्ट का काम नहीं." संविधान पीठ के अध्यक्ष चीफ जस्टिस जे एस खेहर CJI ने कहा- "आप जो कह रहे हैं वो अल्पसंख्यक अधिकारों को खत्म कर देगा. ये कोर्ट अल्पसंख्यक अधिकारों की भी गार्जियन है."
एटॉर्नी जनरल ने इसके बाद कहा- "पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे इस्लामिक देश 3 तलाक खत्म कर चुके हैं. हम धर्मनिरपेक्ष हैं, अभी तक इस पर बहस कर रहे हैं." उन्होंने अलग-अलग देशों में वैवाहिक कानूनों से जुड़ी लिस्ट भी कोर्ट को दी. कहा- कई मुस्लिम देशों में तलाक फैमिली कोर्ट के ज़रिए ही होता है.
आज एटॉर्नी जनरल ने नरासु अप्पा माली केस में बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले का विरोध किया. 1951 में दिए इस फैसले में हाई कोर्ट ने पर्सनल लॉ को संविधान के अनुच्छेद 13 के दायरे से बाहर रखा था. यानी पर्सनल लॉ की समीक्षा संविधान के दूसरे प्रावधानों के आधार पर नहीं हो सकती.
आज की सुनवाई के एक बेहद अहम बात रही सुप्रीम कोर्ट का ये कहना कि उसने हलाला और बहुविवाह का मसला बंद नहीं किया है. कोर्ट ने कहा कि निकाह हलाला और मुस्लिम मर्दों को एक से ज़्यादा शादी की इजाज़त पर आगे विचार होगा. फ़िलहाल समय की कमी के चलते सिर्फ 3 तलाक पर विचार हो रहा है.
कोर्ट ने ऐसा तब कहा जब एटॉर्नी जनरल ने ये याद दिलाया कि 2 जजों की बेंच ने 3 तलाक, हलाला और बहुविवाह पर संज्ञान लिया था. एटॉर्नी जनरल ने ये मांग की कि कोर्ट को सभी मसलों पर सुनवाई करनी चाहिए.
दिन की कार्रवाई खत्म होने से पहले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें शुरू कर दीं. आज उन्हें लगभग 15 मिनट ही अपनी बात रखने का मौका मिला. इस दौरान उन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का मसला उठाया. उन्होंने कहा- "संविधान सभी समुदायों की परंपराओं की रक्षा करता है. हिमाचल के कुछ इलाकों में औरतों के एक से ज़्यादा पति होते हैं."
सिब्बल कल भी अपनी दलीलें जारी रखेंगे. ये देखना अहम होगा कि वो कोर्ट के इस सवाल का जवाब क्या देते हैं कि एक साथ 3 तलाक बोलने की व्यवस्था इस्लाम का मौलिक और अनिवार्य हिस्सा है या नहीं. हालांकि, आज उन्होंने ये ज़रूर कहा कि सुन्नियों की हनफ़ी विचारधारा इस प्रावधान को मान्यता देती है. ये उनकी परंपरा का हिस्सा है.
महिलाओं से भेदभाव के मसले पर सिब्बल ने कहा, "पूरी दुनिया में समाज पितृसत्तात्मक है. ऐसा समाज महिलाओं से भेदभाव करता है. दिक्कत धर्म की नहीं है. दिक्कत समाज की है."
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राजेश शांडिल्यसंपादक, विश्व संवाद केन्द्र हरियाणा
Opinion