नई दिल्ली: ऐसा लगता है कि राजस्थान में बीजेपी के अच्छे दिन नहीं चल रहे हैं. पार्टी अध्यक्ष को लेकर वसुंधरा राजे और केन्द्रीय कमान के बीच करीब दो महीनों से खिंच खिंच चल रही है और इस बीच बीजेपी के वरिष्ठ नेता और छह बार विधायक रह चुके घनश्याम तिवाड़ी ने पार्टी से खुद को अलग कर लिया है. उन्होंने वसुंधरा राजे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं. आपातकाल से तुलना की है और बेटे के नेतृत्व में नई पार्टी बनाने का एलान किया है. पार्टी का नाम होगा 'भारत वाहिनी पार्टी' जो सभी 200 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करेगी.


तिवाड़ी का दावा है कि बीजेपी के कुछ असतुंष्ट विधायक उनके संपर्क में हैं और वक्त आने पर (यानि विधानसभा चुनाव नजदीक आने पर ) उनके साथ जुड़ सकते हैं. अभी कहना मुश्किल है कि घनश्याम तिवाड़ी विधानसभा चुनावों मे अपने नए दल को कितनी सीटें दिला पाएंगे लेकिन इतना तय है कि संजीदगी से चुनाव लड़ा तो वह वसुंधरा राजे की पार्टी को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में जरुर होंगे. हालांकि एक वर्ग का यह भी कहना है कि राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही इस बार मुकाबला होना है और बाकी के दलों को वोटर तरजीह नहीं देगा.


कुछ जानकार यह भी कहते हैं कि वसुंधरा के खिलाफ वोट अगर तिवाड़ी के दल को मिला तो उससे नुकसान कांग्रेस का ही होगा और इस तरह तिवाड़ी एक तरह से बीजेपी की ही मदद करेंगे. अब यह देखना दिलचस्प रहेगा कि तिवाड़ी के दल को बीजेपी का वोटर वोट देता है या बीजेपी के सबसे चमकदार चेहरे वसुधंरा राजे से नाराज वोटर का .


घनश्याम तिवाड़ी जयपुर के पास सांगानेर से विधायक हैं. वह भैरोंसिंह शेखावत सरकार में मंत्री रह चुके हैं. पार्टी में एक वक्त ऐसा भी था जब एक ब्राह्मण नेता के रुप में उनकी तूती बोलती थी. राजस्थान में सवर्ण बीजेपी का परंपरागत वोटर रहा है और तिवाड़ी उनकी नुमाइंदगी करते रहे हैं. हालांकि वह उस समय भी विरोधी तेवर के लिए जाने जाते थे लेकिन भैरोंसिंह शेखावत कीराजनीति मेहरबानी उनके साथ हमेशा बनी रही लेकिन वसुधंरा राजे का शासन का तरीका अलग है.


वसुधंरा राजे 162 विधायकों के साथ सत्ता में आईं थीं और वह अपने हिसाब से फैसले लेने के लिए आजाद थीं. इससे पहले वसुधंरा राजे ने तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह को विपक्ष के नेता पद से इस्तीफा भेजने के लिए करीब दस महीनों तक तरसाया था. इस समय भी अमित शाह जहां गजेन्द्र सिंह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहते हैं वहीं वसुधंरा राजे किसी गैर राजपूत को यह पद देने के लिए अड़ी हुई हैं और दो महीनों से मामला टल रहा है. ऐसी नेता ने दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद घनश्याम तिवाड़ी को मंत्री नहीं बनाया तो वह नाराज हो गये , विद्रोह पर उतारु हो गये और अब पांचवे साल में अपना अलग दल बनाने को मजबूर हैं.


सवाल उठता है कि घनश्याम तिवाड़ी अलग होने के बाद अपनी मौजूदगी का अहसास करवा पाएंगे या उनकी भी हालत किरोड़ी लाल मीणा जैसी ही हो जाएगी जो वसुधंरा राजे को देख लेने की धमकी देते हुए पार्टी से अलग हुए थे. हालांकि उनकी पार्टी चार विधानसभा सीटें जीती, उनकी पत्नी गोलमा देवी को अशोक गहलोत ने अपनी सरकार में मंत्री भी बनाया लेकिन अंत में किरोड़ी लाल मीणा को फिर से बीजेपी में ही शामिल होना पड़ा और वसुधंरा राजे के नेतृत्व को एक तरह से स्वीकार करना पड़ा. यह डर घनश्याम तिवाड़ी को जरुर सता रहा होगा.