नई दिल्ली: क्या गुलाम नबी आजाद जम्मू कश्मीर में एक नई राजनीतिक पार्टी का आगाज करने वाले हैं? आज जम्मू में गांधी ग्लोबल फेमिली के समारोह में लगे पोस्टर से जिस तरह से सोनिया और राहुल गांधी की तस्वीर नदारद थी, उससे तो यही संकेत मिलता है कि आजाद ने कांग्रेस से दूरी बनाना शुरू कर दी है.
राज्यसभा से रिटायर होने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में जिस कदर आजाद की तारीफ की थी, उससे सियासी गलियारों में यह अनुमान लगाया जा रहा था कि वे BJP का दामन थाम सकते हैं. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और उनके नजदीकियों के दावे को मानें तो ऐसा होगा भी नहीं. अलबत्ता आजाद जम्मू कश्मीर में राजनीतिक समीकरण बदलने में अहम भूमिका निभाने वाले हैं. अब्दुल्ला व मुफ़्ती परिवार के बगैर कश्मीर घाटी में नई राजनीतिक बयार लाने में वह भाजपा के मददगार साबित हो जाएं, तो इसमें किसी को हैरानी नहीं होना चाहिए.
दरअसल, आजाद ने शनिवार को हुए कार्यक्रम में कांग्रेस के नाराज नेताओं को बुलाकर पार्टी को यह संदेश दे दिया है कि अब कांग्रेस को अलविदा कहने का वक़्त आ गया है. अभी तक सिर्फ कयास ही लगाये जा रहे थे, लेकिन कार्यक्रम के पोस्टरों से सोनिया-राहुल को गायब करने की हिम्मत दिखाकर आजाद ने यह पुख्ता कर दिया है कि वह अपनी नई पार्टी बनाने की राह पर आगे निकल चुके हैं. कोई हैरानी नहीं होनी चाहिये कि भाजपा भी माली तौर पर इसमें उनकी मदद ही करे. वह इसलिए कि नई पार्टी बन जाने के बाद घाटी से दो परिवारों के वंशवाद वाली सियासी मिल्कियत अगर खत्म होती है, तो वह भाजपा के लिये बेहतर स्थिति होगी.
निकट भविष्य में जम्मू-कश्मीर में होने वाले चुनावों में आजाद घाटी में अगर एक बड़ी ताकत बनकर उभरते हैं, तो इससे वे भाजपा के हाथ तो मजबूत करेंगे ही, साथ ही घाटी के मुसलमानों के बीच भाजपा की खलनायक वाली जो इमेज बना दी गई है, उसे खत्म करने में भी मददगार बनेंगे. अपने 41 बरस के सियासी सफर में आजाद को हर तरह का अनुभव हासिल हुआ है और उन्हें फारूक अब्दुल्ला या महबूबा मुफ्ती की तरह आक्रामक नहीं, बल्कि एक मृदुभाषी व हमदर्द नेता के रूप में देखा जाता है.
सूत्रों की जानकारी पर यकीन करें, तो आजाद को नई पार्टी बनाने का ख्वाब कोई अचानक नहीं आया. सियासत में सत्ता के शिखर पर बैठे नेता और विपक्ष के नेता के बीच होने वाली हर अनौपचारिक मुलाकात के कुछ मायने होते हैं. लिहाज़ा छह महीने पहले यानी बीते अगस्त में प्रधानमंत्री मोदी और आज़ाद के बीच हुई लंबी मुलाकात को नहीं भूलना चाहिए.