नई दिल्लीः करतारपुर कॉरिडोर के शिलान्यास के मौके पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कुल 17 मिनट 10 सेकेंड का भाषण दिया. इसमें से सिर्फ शुरूआती 2 मिनट वो कॉरिडोर पर बोले और उसके बाद भारत पाकिस्तान के रिश्तों पर उनका भाषण केंद्रित रहा. हालांकि इमरान खान के भाषण का इस बार का अंदाज अब तक के पाकिस्तानी प्रधानमंत्रियों से जुदा था. बेहद सधे हुए शब्दों में इमरान खान ने माना कि दोनों देशों के रिश्तों में जो कड़वाहट है उसके लिए पाकिस्तान भी जिम्मेदार है.


इमरान खान ने कहा कि जिधर आज हिंदुस्तान और पाकिस्तान खड़े हैं, हम 70 साल से ऐसे हैं, दोनों तरफ गलतियां हुई हैं. हम आगे तब तक नहीं बढ़ेंगे जब तक माजी की जंजीर नहीं तोड़ेंगे. ब्लेम गेम चलता रहेगा. माजी सिर्फ सीखने के लिए है आगे बढ़ने के लिए माजी सिर्फ सबक सिखाता है.


हालांकि पाकिस्तान का कोई प्रधानमंत्री भारत के लिए सिर्फ अच्छे शब्दों का ही इस्तेमाल नहीं कर सकता. इस बात को इमरान खान ने फिर साबित किया जब उन्होंने इस पवित्र मौके पर भी बिना नाम लिए भारत की लीडरशिप यानी भारत के प्रधानमंत्री पर कमजोर होने का आरोप जड़ दिया. उन्होनें कहा कि मैंने दो किस्म के नेता बताए थे एक होता है जो चांस लेता है दूसरा डर-डर कर चलता है वोटबैंक देखता है, लीडरशिप ऐसी आए जिसमें ताकत हो, मुझे उम्मीद है आगे अच्छे रिलेशन होंगे. ऐसा न हो कि भारत-पाकिस्तान के बीच दोस्ती के लिए हमें सिद्धू का इंतजार करना पड़े.


इशारों में पीएम नरेंद्र मोदी पर इमरान खान ने साधा निशाना
इमरान खान ने आज पीएम नरेंद्र मोदी नाम तो नहीं लिया लेकिन इशारों में उन्हीं पर निशाना साधा. वो ताकीद करते दिखे कि पीएम मोदी बड़ा दिल दिखाएं. हालांकि इमरान खान भूल गए कि नरेंद्र मोदी ने 2014 में अपनी शपथ के लिए नवाज शरीफ को खास तौर पर भारत बुलाया और यहां दिल से गले भी लगाया था. लेकिन जब पाक के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ दोस्ती और अमन की बातें कर भारत से लौटे तो पाकिस्तान की तरफ से सीजफायर उल्लंघन में बढ़ोतरी ही हो गई. सीमा पर पाकिस्तान की फौजों की बंदूकें गरजने लगीं. सरकार कोई भी रही, भारत ने पाकिस्तान से हमेशा दोस्ती की बात की और बदले में हिन्दुस्तान को हमेशा धोखा मिला.


पाकिस्तान को आज याद दिलाना जरूरी है कि इमरान आज भारत से दोस्ती होने पर कारोबार बढ़ने की बात कह रहे हैं लेकिन भारत ने पाकिस्तान को 1996 में ही मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा दे दिया है. जबकि बड़ी बड़ी बातें करने वाले इमरान एक छोटा सा ऐलान भी नहीं कर पाए हैं.


इमरान ने छेड़ा कश्मीर का जिक्र
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के संबोधन में कश्मीर का जिक्र न हो ऐसा नहीं हो सकता. पाकिस्तानी फौज की मदद से सत्ता में आए इमरान ने भी कश्मीर का राग छेड़ा और कहा कि इरादे मजबूत हों तो ये मसला भी हल हो सकता है.


पाकिस्तान कश्मीर में आतंकियों की फसल बो रहा है और सरहद पर खून बहा रहा है. और फिर इमरान कहते हैं कि इरादे हों तो कश्मीर का मुद्दा हल हो सकता है. इमरान खान को समझना होगा कि सिर्फ बातें करने से रिश्ते बेहतर नहीं होंगे. फ्रांस और जर्मनी की तरह भारत-पाकिस्तान आपसी गिले-शिकवे क्यों नहीं भुला सकते बात का जवाब पाकिस्तान और इमरान खान को ही देना है क्योंकि हिंसा का खेल पाकिस्तान खेल रहा है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले ही कहा था कि लड़ना है तो गरीबी से लड़ें, आज इमरान ने वही बात दोहराते हुए कहा कि भारत एक कदम बढ़ाएगा तो पाकिस्तान दो कदम आगे बढ़ेगा. लेकिन ये सिर्फ बयानबाजी लगती है और कुछ नहीं.


भारत की दोस्ती की पहल के बदले मिला पठानकोट और उरी हमला
इमरान खान ने आज कहा कि पीएम मोदी बड़ा दिल दिखाएं लेकिन वो 25 दिसंबर 2015 की तारीख भूल गए जब अफगानिस्तान से भारत लौटते हुए पीएम मोदी लाहौर चले गये और नवाज शरीफ को जन्मदिन की बधाई दी. पीएम नरेंद्र मोदी ने न प्रोटोकोल की चिंता की, न देश में विपक्ष के आरोपों की. लेकिन उसके बाद जो हुआ उसने देश को हिला दिया. पीएम मोदी 25 दिसंबर को लाहौर से लौटे और नए साल के दूसरे दिन पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमला हो गया, जिसमें भारत के 8 जवान शहीद हो गए. फिर उरी में सेना के कैंप पर हमला हुआ, जिसमें 18 जवान शहीद हो गए. इसके बाद भी पाकिस्तान ने कुछ नहीं किया.


मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद और जकीउर्रहमान लखवी भी खुलेआम घूम रहे हैं
इमरान खान ने तो मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद और जकीउर्रहमान लखवी को भी खुलेआम घूमने की छूट दे रखी है. अमेरिका इनाम का एलान करता है लेकिन पाकिस्तान पहले की तरह आतंकवादियों की पनाहगार बना हुआ हैं.


पाकिस्तान से बढ़ता रहा आतंकवाद
भारत ने पाकिस्तान से दोस्ती के लिए जनरल परवेज मुशर्रफ के तख्तापलट कर राष्ट्रपति बनने के बाद भी उन्हें वार्ता के लिए आगरा बुला लिया. लेकिन वो बातचीत बीच में ही छोड़कर चले गये. उल्टा भारत की संसद पर हमला हो गया, संबंध टूट गए. लेकिन फिर उन्हें संवारने का काम भारत ने ही किया जब 16 जुलाई 2003 को द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने का काम शुरू किया. फिर जनवरी 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी सार्क सम्मेलन में शामिल होने इस्लामाबाद पहुंचे. उसके बाद भी पाकिस्तान से आतंकवाद बढ़ता ही गया.


इमरान खान ने एक बात ठीक कही कि अतीत से सबक सीखना होगा. हालांकि उसी अतीत को देखने पर पता चलता है कि कई बार पाकिस्तान ने भारत के भरोसे का गला घोंटा. साफ है कि करतारपुर कॉरीडोर के शिलान्यास के मौके पर भी पाकिस्तान के पीएम भारत कश्मीर में चल रहे आतंकवाद को लेकर अपने देश की गलत नीतियों की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हैं. बल्कि देश की लीडरशिप पर सवाल उठाकर भारत को ही कठघरे में खड़े करने की कोशिश कर रहे हैं. शायद इसीलिए आज विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को एक बार फिर पाकिस्तान को याद दिलाना पड़ा कि आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते हैं.


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