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गलवान की हिंसक झड़प के बाद क्या भारत बदलेगा फेसऑफ के दौरान फायरिंग न करने का एसओपी?

1996 में भारत और चीन के बीच हुए शांति समझौते में यह तय हुआ था कि दोनों सेनाएं एलएसी के दो किलोमीटर के दायरे में फायरिंग नहीं करेंगी.

नई दिल्ली: चीन के साथ सीमा के विवादित-इलाकों में हथियार ना ले जाने की एसओपी (स्टंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर) बदलने पर भारत विचार कर रहा है. दरअसल, भारत और चीन के बीच 1996 में एक समझौता हुआ था जिसके तहत एलएसी के विवादित इलाकों में सैनिक न तो फायरिंग कर सकते हैं और ना ही गोलाबारी. लेकिन गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद भारत अब बदली हुई रणनीति पर काम करने का मन बना रहा है.

दरअसल, 1996 में भारत और चीन के बीच मिलिट्री-फील्ड में कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेज़र्स के तहत शांति समझौता हुआ था जिसके तहत दोनों देश की सेनाएं एलएसी के दो किलोमीटर के दायरे में किसी भी तरह की कोई फायरिंग या गोलाबारी नहीं करेंगी. अगर सैनिक बंदूक लेकर विवादित इलाके में जाते भी हैं तो बैरल यानि नाल नीचे की तरफ रहेगी. यही वजह है कि सैनिक विवाद के समय हथियार लेकर नहीं जाते हैं.

लेकिन इस विवाद पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट कर कहा कि "सभी सैनिक बॉर्डर पर हथियार लेकर जाते हैं, खासतौर पर जब वे पोस्ट से बाहर निकलते हैं. 15 जून की घटना के दौरान भी ऐसा ही हुआ." लेकिन उन्होंने चीन के साथ हुए 1996 और 2005 के एग्रीमेंट का हवाला देते हुए कहा कि ये "पुरानी प्रैक्टिस है कि फेसऑफ के दौरान हथियारों (फायर-आर्म्स यानि बंदूक इत्यादि) का इस्तेमाल नहीं करते हैं."

सेना के सूत्र ने कहा कि फायरिंग न करके सैनिकों ने सोल्जरिंग का परिचय दिया है न कि प्रोटोकॉल से बंधे होने का. यानी जब सैनिकों को कहा गया है कि फेसऑफ के दौरान फायरिंग नहीं करनी है तो उन्होंने एक सच्चे सिपाही की तरह गोली नहीं चलाई.

भारत और चीन के बीच हुए हैं पांच बड़े समझौते बता दें कि 1993 से अब तक भारत और चीन के बीच सीमा से जुड़े पांच बड़े शांति समझौते हुए हैं. पहला 1993 में मेंटनेंस ऑफ पीस इंड ट्रैंक्युलेटी ऑन इंडो-चायना बॉर्डर एरिया समझौता, दूसरा 1996 में कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेज़र्स इन मिलिट्री-फील्ड और तीसरा था प्रोटोकॉल फॉर इम्पीलिमेंटेशन, जो 2005 में साइन हुआ था.

चौथा समझौता है वर्किंग मेकेनिज्म वॉर कंसलटेशन एंड कोर्डिनेशन ऑन इंडो-चायना बॉर्डर. ये करार 2012 में हुआ था.‌ इसके तहत ही दोनों देशों ने अपने अपने एक खास नुमाइंदे को सीमा से जुड़ी बातचीत के लिए चुन रखा है. इस वक्त भारत की तरफ से इस बातचीत में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल प्रतिनिधित्व करते हैं. चीन की तरफ से वहां के विदेश मंत्री (काउंसलर) वांग ची प्रतिनिधित्व करते हैं. पांचवा करार था बॉर्डर डिफेंस कॉपरेशन, जिस पर साल 2013 में हस्ताक्षर हुए थे.

सूत्रों के मुताबिक, 1996 के समझौते के तहत ही भारत और चीन के सैनिक सीमा के विवादित क्षेत्र में हथियार लेकर नहीं जाते हैं. कई बार सैनिक मैगजीन तक राइफल में नहीं डालते हैं या फिर मैगजीन अलग रखकर पैट्रोलिंग करते हैं. लेकिन गलवान घाटी में 15-16 जून की रात जिस तरह चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों पर हमला किया उससे इसे बदलने की जरूरत आ पड़ी है.

15 जून की शाम जब कर्नल बी संतोष बाबू अपने जवानों के साथ विवादित जगह से चीनी टेंट हटवाने के लिए पहुंचे थे तो चीनी सैनिकों ने उनपर लाठी-डंडों, कील और कटीली तार लगी रोड्स से हमला बोल दिया था. क्योंकि कर्नल संतोष बाबू और उनके सैनिक बिना किसी हथियार के चीनी टेंट पहुंच गए थे इसीलिए चीनी सैनिक शुरुआत में उनपर हावी हो गए थे. लेकिन बाद में जब उनकी पलटन (16 बिहार) को खबर लगी तो बाकी भारतीय सैनिक भी वहां पहुंचें और जमकर मारपीट हुई.

झगड़े के दौरान बड़ी तादाद में सैनिक गलवान नदी में गिर गए थे जिसके चलते दोनों तरफ के बड़ी तादाद में सैनिक हताहत हुए. कर्नल संतोष बाबू सहित भारत के कुल 20 सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए. हालांकि, चीन ने अपने मारे गए सैनिकों का आंकड़ा नहीं बताया है लेकिन माना जा रहा है कि चीनी सेना को भी बड़ा नुकसान हुआ है.

सेना ने खारिज की भारतीय सैनिकों के चीनियों के कब्जे में होने की खबरें इस बीच सेना ने उन मीडिया रिपोर्ट्स को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि गलवान घाटी में हुई हिंसा के बाद से भारत के कुछ सैनिक चीनी सेना के कब्जे में हैं. गलवान घाटी में चल रहे तनाव के बीच आज फिर दोनों देशों के मेजर-जनरल स्तर की मीटिंग हुई. भारत की तरफ से सेना की कारू (लेह स्थित) थ्री (3) डिव यानि डिवीजन के कमांडर, मेजर जनरल अभिजीत बापट ने बैठक में प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया.

भारत चीन सीमा विवाद की ट्रंप को है जानकारी, मध्यस्थता की कोई औपचारिक योजना नहीं है- व्हाइट हाउस 

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