Karnataka Caste Census Report: जाति जनगणना पर एक कदम आगे बढ़ते हुए कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सोमवार (07 अक्टूबर) को घोषणा की कि रिपोर्ट को 18 अक्टूबर को कर्नाटक मंत्रिमंडल के समक्ष रखा जाएगा, ताकि इसके कार्यान्वयन पर निर्णय लिया जा सके. उन्होंने ये बात ओबीसी मंत्रियों और विधायकों की बैठक के बाद कही.


सीएम सिद्धारमैया ने कहा, “एच.डी. कुमारस्वामी के कार्यकाल में कांताराजू ने जाति जनगणना रिपोर्ट देने का समय तय किया था, लेकिन सीएम कुमारस्वामी ने जाति जनगणना रिपोर्ट पर विचार नहीं किया. मेरी सरकार ने ओबीसी संगठनों के अनुरोध पर विचार किया और हमने इसकी पहल की और ओबीसी आयोग के अध्यक्ष जयप्रकाश हेगड़े ने रिपोर्ट पेश की.”


सीएम सिद्धारमैया ने बताया कैसे लिया जाएगा निर्णय?


उन्होंने आगे कहा कि जाति जनगणना रिपोर्ट को लागू करने की मांग की जा रही है. मैंने खुद एक सप्ताह पहले कहा था. हम कैबिनेट बैठक में जाति जनगणना रिपोर्ट के कार्यान्वयन पर चर्चा करेंगे और निर्णय लेंगे. आज पिछड़े वर्ग के नेताओं ने भी इस पर जोर दिया है. मैं जाति जनगणना रिपोर्ट को कैबिनेट बैठक में रखूंगा. जाति जनगणना रिपोर्ट का विरोध हो रहा है. देखते हैं कैबिनेट बैठक में क्या निर्णय होता है? मैं कैबिनेट के निर्णय के अनुसार निर्णय लूंगा.


क्या सीएम ने देखी है रिपोर्ट?


उन्होंने ये भी कहा कि यह सिर्फ पिछड़े वर्गों का सर्वेक्षण नहीं है, बल्कि सात करोड़ लोगों का सर्वेक्षण है. देश में पहली बार हमारे राज्य में ऐसा सर्वेक्षण हुआ है. मैंने यह जाति जनगणना रिपोर्ट न तो देखी है और न ही पढ़ी है.


जातिगत जनगणना की रिपोर्ट का हो रहा विरोध


कर्नाटक के दो प्रमुख समुदायों वोक्कालिंगा और लिंगायत ने सर्वेक्षण पर आपत्ति जताते हुए इसे अवैज्ञानिक बताया है और मांग की है कि इसे खारिज किया जाए साथ ही नया सर्वेक्षण कराया जाए. कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपने तत्कालीन अध्यक्ष के. जयप्रकाश हेगड़े के नेतृत्व में 29 फरवरी को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को रिपोर्ट सौंपी.


जयप्रकाश हेगड़े की अध्यक्षता वाले आयोग ने कहा था कि यह रिपोर्ट 2014-15 में राज्य भर के जिलों के संबंधित उपायुक्तों के नेतृत्व में 1.33 लाख शिक्षकों सहित 1.6 लाख अधिकारियों के इकट्ठे आंकड़ों के आधार पर तैयार की गई थी, जब एच कंथाराजू अध्यक्ष थे. तत्कालीन सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार (2013-2018) ने 2015 में 170 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से राज्य में सर्वेक्षण शुरू किया था.


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