केरल हो जाएगा केरलम? पंजाब-उत्तराखंड और ओडिशा का भी बदल चुका है नाम, जानिये इस प्रक्रिया में कितना होता है खर्च?
केरल का नाम बदलने का प्रस्ताव तो विधानसभा से पास हो चुका है लेकिन संवैधानिक तौर पर किसी भी राज्य का नाम बदलना इतना आसान भी नहीं है. इस खबर में जानते हैं कि कैसे किसी राज्य का नाम बदला जाता है?
पिछले 9 अगस्त को केरल विधानसभा में एक प्रस्ताव पास किया गया. इस प्रस्ताव में 'केरल' का नाम बदलकर 'केरलम' करने की बात कही गई है. विधानसभा में ये प्रस्ताव केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने पेश किया था. उनके अनुसार, 'मलयालम भाषी इस राज्य का नाम केरलम रखने की मांग स्वतंत्रता आंदोलन के वक्त से ही कर रहे हैं. लेकिन 1 नवंबर 1956 को जब भाषा के आधार पर राज्यों का गठन किया गया तब संविधान की पहली सूची में हमारे राज्य का नाम केरल रख दिया गया.'
सीएम विजयन ने कहा, 'हम केंद्र सरकार से अनुरोध करते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत केरल के नाम को संशोधित कर इसे केरलम किया जाए. उन्होंने केंद्र से ये भी अनुरोध किया कि संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लेखित सभी भाषाओं में 'केरल' का नाम 'केरलम' लिखा जाए.'
केरल का नाम बदलने का प्रस्ताव तो विधानसभा से पास हो चुका है लेकिन संवैधानिक तौर पर किसी भी राज्य का नाम बदलना इतना आसान भी नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि केरल का नाम केरलम कहां से आया और भारत में किसी राज्य का नाम बदलने की प्रक्रिया क्या है?
राज्य का नाम बदलने की प्रक्रिया
संविधान का अनुच्छेद-3 देश की संसद को किसी भी राज्य का नाम बदलने की ताकत देता है. केंद्र सरकार अगर खुद से किसी राज्य का नाम बदलना चाहे तो वह राष्ट्रपति की अनुशंसा पर राज्य के नाम में बदलाव का बिल संसद में ला सकती है.
लेकिन अगर कोई राज्य खुद अपना नाम बदलना चाहे तो अनुच्छेद 3 में इसकी प्रक्रिया भी बताई गई है. अनुच्छेद 3 के अनुसार अगर राज्य सरकार खुद अपने नाम को बदलना चाहे तो इस प्रक्रिया की शुरुआत विधानसभा या संसद से होती है. आसान भाषा में समझे तो केरल का ही उदाहरण ले लेते हैं. केरल के राज्य सरकार ने केरलम नाम रखने के लिए सबसे पहले विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया है.
विधानसभा से पारित होने के बाद यह प्रस्ताव राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा. राष्ट्रपति अगर इसे उचित मानें तो इस पर केंद्र सरकार को अनुशंसा देंगे. फिर बिल संसद में पारित हुआ तो दोबारा राष्ट्रपति के पास जाएगा और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ ही नाम बदलने की अधिसूचना जारी होगी.
केंद्र ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया तो क्या होगा
- केरल विधानसभा से पारित होने के बाद यह प्रस्ताव केंद्र के पास जाता है और केंद्र इसे खारिज भी कर सकती है. केंद्र पहले भी ऐसे प्रस्तावों को खारिज कर चुकी है.
- साल 2018 में विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया था जिसमें पश्चिम बंगाल को बंगाल बनाए जाने की मांग उठाई गई थी. लेकिन केंद्र ने इसे अस्वीकार कर दिया.
राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद बदले इन राज्यों के नाम
- साल 2007 में केंद्र सरकार ने उत्तरांचल का नाम उत्तराखंड करने के लिए एक बिल संसद में पारित किया. जिसे राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के हस्ताक्षर के बाद पारित कर दिया गया और उत्तरांचल का नाम बदलकर उत्तराखंड हो गया.
- वहीं साल 2010 में उस वक्त राष्ट्रपति रही प्रतिभा पाटिल ने उड़ीसा को ओडिशा नाम में बदले जाने के बिल को स्वीकृति दी थी. जिसके बाद उड़ीसा ओडिशा हो गया.
केरल का नाम क्यों बदलना चाह रही है राज्य सरकार
साल 1920 में नागपुर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) की एक बैठक प्रस्ताव पास किया गया कि अब कोई भी नया राज्य सिर्फ क्षेत्रीय ही नहीं बल्कि भाषाई आधार पर भी बनाया जाना चाहिए. इस बैठक के एक साल बाद यानी साल 1921 में कांग्रेस पार्टी ने त्रावणकोर, कोच्चि और मालाबार क्षेत्र के लिए अपनी इकाई का नाम बदलकर केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी रख दिया.
इसी वक्त उस क्षेत्र के मलयाली लोगों ने ऐक्य (यूनाइटेड) केरल मूवमेंट नाम से एक आंदोलन की शुरुआत की थी. उनकी मांग थी कि त्रावणकोर, कोच्चि और मालाबार में रहने वाले मलयाली लोगों के लिए अलग राज्य बनाया जाए.
साल 1947 में भारत आजाद हो गया और 1 जुलाई 1949 को त्रावणकोर और कोच्चि दो राज्य बनाए गए. हालांकि इस राज्य के फैसले से मलयाली खुश नहीं थे. मलयाली लोगों ने 3 दशक तक अलग राज्य की मांग करते हुए आंदोलन चलाया. आखिरकार साल 1956 में भाषाई आधार पर एक अलग राज्य बनाया गया, जिसका नाम था 'केरल'.
अब केरल विधानसभा में पास हुई प्रस्तावना के अनुसार हिंदी और दूसरी भाषाओं में केरल कहा जाता है लेकिन मलयाली भाषा में इसका नाम केरलम है. रज्य सरकार की मानें तो केरल का नाम केरलम किए जाने की मांग के पीछे राज्या उद्देश्य सिर्फ मलयाली लोगों के भाषा, संस्कृति और पहचान को बढ़ावा देना है.
किसी भी राज्य के नाम बदलने में कितना खर्च आता है
एक रिपोर्ट के अनुसार किसी भी बड़े शहर या राज्यों का नाम बदलने में 1000 करोड़ रुपये तक का खर्च आ सकता है और ये पैसे भारत सरकार के संचित निधि से खर्च होता है. अनुमान के मुताबिक, उड़ीसा का हाल ही में नाम बदलकर ओडिशा करने से सरकारी खजाने को 300 करोड़ रुपये का भारी नुकसान हुआ.
सबसे पहले तो किसी भी राज्य का नाम बदलते की अधिसूचना जारी किए जाने के साथ ही केंद्र और राज्य के सभी सरकारी कागजातों में राज्य का नाम बदला जाता है. इसके बाद गूगल मैप से लेकर राइन बोर्ड, रेलवे, एयरपोर्ट हर जगह राज्य का नया नाम बदलना पड़ता है.
आजादी के बाद इन राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों के नाम बदले
1. ईस्ट पंजाब बना पंजाब: साल 1966 में पंजाब का विभाजन कर हरियाणा, हिमाचल और पंजाब तीन राज्य बने.
2. यूनाइटेड प्रोविन्स बना उत्तर प्रदेश: इस बदलाव को 24 जनवरी, 1950 को लागू किया गया था और साल 2000 में उत्तर प्रदेश का विभाजन हुआ और उत्तरांचल राज्य बनाया गया.
3. उत्तरांचल बना उत्तराखंड: साल 2000 में यूपी से अगल होने के बाद उत्तरांचल बना और 2007 में नाम उत्तरांचल का नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया.
4. आंध्र स्टेट बना नया राज्य: मद्रास प्रेसीडेंसी के तेलुगू भाषी हिस्से को 1 अक्टूबर, 1953 को आंध्र स्टेट राज्य का दर्जा मिला. इसमें हैदराबाद भी इसमें शामिल था. 1 नवंबर, 1956 को आंध्र स्टेट का नाम बदला गया और उसे आंध्र प्रदेश किया गया.
5. त्रावणकोर-कोचीन बना केरल: 1 नवंबर, 1956 तो त्रावणकोर- कोचीन का नाम बदलकर केरल किया गया.
6. मध्य भारत बना मध्य प्रदेश: 1 नवंबर, 1959 को मध्य भारत का नाम बदलकर मध्य प्रदेश किया गया.
7. मद्रास स्टेट बना तमिलनाडु: 14 जनवरी, 1969 मद्रास स्टेट का नाम बदलकर तमिलनाडु रखा गया.
8. मैसूर स्टेट बना कर्नाटक: 1 नवंबर, 1973 को मैसूर स्टेट का नाम बदलकर कर्नाटक रख दिया गया.
9. उड़ीसा बना ओडिशा: नवंबर, 2011 को उड़ीसा का नाम बदलकर ओडिशा किया गया.
10. लक्कदीव,मिनिकॉय और अमनदीवी बने लक्षद्वीप: 1 नवंबर, 1973 को लक्कदीव,मिनिकॉय और अमनदीवी बदलकर लक्षद्वीप रखा गया.
11. पॉन्डिचेरी बना पुड्डुचेरी: पॉन्डिचेरी का नाम 1 अक्टूबर, 2006 को बदलकर पुडुचेरी रख दिया गया.