10 महीने बाद 2024 का लोकसभा चुनाव है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अभी से ही चुनाव के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं. दूसरी तरफ विपक्षी दल आगामी चुनावों में एक साथ मैदान में उतरने पर विचार कर रही है और शुक्रवार को इस सिलसिले में बैठक भी की गई. बीजेपी पहले से ही अपनी योजनाओं के साथ आगे बढ़ रही है. हाल ही में पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा ने अपने संपर्क कार्यक्रम के तहत उत्तर प्रदेश के देवबंद शहर में लगभग 150 मुसलमानों को 'मोदी मित्र' प्रमाण पत्र दिया.
आइये समझते हैं कि मोदी मित्र और मोदी मित्र प्रमाण पत्र क्या हैं, और मोदी सरकार ने इस विशेष आउटरीच कार्यक्रम के लिए मुसलमानों को क्यों चुना. क्या इस अभियान से बीजेपी मुस्लिमों को अपने साथ जोड़ पाएगी. ये भी समझेंगे कि बीजेपी और मुसलमानों के बीच दूरियां पाटने के लिए कब क्या कुछ हुआ है.
मोदी मित्र क्या हैं?
मोदी मित्र एक अभियान है जिसका मकसद ज्यादा से ज्यादा मुसलमानों को भारतीय जनता पार्टी से जोड़ना है. बीजेपी ने इसकी शुरुआत सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश के देवबंद से की है. मोदी मित्र अभियान का जिम्मा बीजेपी के ही अल्पसंख्यक मोर्चा को दी गई है.
देवबंद को इसलिए चुना गया क्योंकि इस्लामिक शिक्षा के लिहाज से वह बड़ा केंद्र है. अगर देवबंद से इस अभियान को ज्यादा से ज्यादा मुसलमानों तक पहुंचाया जाए तो पार्टी को फायदा होगा. मोदी मित्र को इसी साल 29 अप्रैल को लॉन्च किया गया था.
'मोदी मित्र' प्रमाण पत्र देने की हुई शुरुआत
बीजेपी ने मोदी मित्र अभियान के तहत ही 'मोदी मित्र' प्रमाण पत्र देने की शुरुआत की है. इन प्रमाणपत्रों को चुने गए व्यक्ति, पेशेवर या व्यवसायी को दिया जा रहा है, जो पीएम मोदी और उनकी नीतियों में रुचि रखते हैं, भले ही उनका राजनीतिक झुकाव अब तक कुछ भी हो.
मोदी मित्र अभियान को इसी साल 29 अप्रैल को शुरू किया गया था और अगले साल फरवरी तक जारी रहेगा. बीजेपी ने इसके लिए 65 मुस्लिम बहुल लोकसभा सीटों का चयन किया है, जहां उनकी आबादी 30 प्रतिशत से ज्यादा है.
- उत्तर प्रदेश से बिजनौर, अमरोहा, कैराना, नगीना, संभल, मुजफ्फरनगर, रामपुर जैसी 13 सीटों का चयन किया गया है.
- पश्चिम बंगाल में 13, जम्मू-कश्मीर में पांच सीटों का चयन किया गया है.
- बिहार में चार सीटों का चयन किया गया है.
- केरल और असम में छह-छह सीटों का चयन किया गया है.
- मध्य प्रदेश में तीन, हरियाणा में दो और तेलंगाना में दो सीटों का चयन किया गया है.
अंत में मोदी मित्र प्रमाणपत्रों के सभी प्राप्तकर्ताओं को देश की राजधानी दिल्ली में 'मोदी मित्र' कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया जाएगा और उन्हें पीएम मोदी खुद संबोधित करेंगे.
इस योजना की चर्चा पहले से ही की जा रही थी और चूंकि अल्पसंख्यक समुदायों के एक लाख से ज्यादा व्यक्ति होंगे, इसलिए संभावना है कि यह दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित किया जाएगा.
पूर्व उपाध्यक्ष राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग भारत सरकार व राष्ट्रवादी मुस्लिम पसमांदा महाज़ के अध्यक्ष आतिफ रशीद ने एबीपी न्यूज को फोन पर बातचीत में बताया कि मोदी मित्र में वैसे अल्पसंख्यकों को जोड़ा जा रहा है जो समाज में अपनी कुछ हैसियत रखते हैं. ये वैसे लोग हैं जो खुद को किसी भी पॉलिटिकल पार्टी से जोड़ कर नहीं रखते हैं. ये सिर्फ वो लोग हैं जो पीएम मोदी की नीतियों से प्रभावित हैं.
क्या सिर्फ मुसलमानों को जोड़ेगी बीजेपी
इस सवाल पर आतिफ रशीद ने बताया कि अभियान को भारतीय जनता पार्टी का अल्पसंख्यक मोर्चा चला रहा है. इस अभियान में सिर्फ मुसलमान नहीं हैं, इसमें मुसलमान, क्रिश्चियन, सिख ,पारसी समुदाय के लोग जोड़े जाएंगे. पूरे देश में मोदी मित्र अभियान की शुरुआत वैसी सीटों पर की जाएगी जहां पर मुस्लिम आबादी ज्यादा है और जहां पर पार्टी अब तक नहीं जीती है. इसको हर लोकसभा में लागू किया जाना है. हर लोकसभा से कम से कम 500 ऐसे लोग ढूंढें जाएंगे जो पीएम मोदी की योजनाओं से प्रभावित हैं.
कोई भी पार्टी जब देश में काम करती है तो वो हर क्षेत्र में अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश करती है. बीजेपी 2014 में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में आयी थी, 2019 में बहुमत का आंकड़ा भी पार कर गया. बीजेपी ने शुरू से 'सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास और सबका प्रयास' पर जोर दिया है. ऐसे में बीजेपी की ये कोशिश है कि ये पार्टी केवल हिंदुओं के वोट पर सरकार में न आए इसमें सभी समुदाय के लोगों का प्रयास शामिल हो. मोदी मित्र ऐसी ही एक कोशिश है.
मुस्लिमों का वोट किसी एजेंडे पर न लेकर सूझबूझ से दिलाने की कोशिश
आतिफ रशीद ने बताया कि हमारी कोशिश है कि मुस्लिमों को किसी एजेंडे में न उलझा कर काम के आधार मानते हुए वोट लिया जाए. बीजेपी की कोशिश है कि मुसलमान हर योजना का फायदा उठाए और वो अपने फायदे को देख कर अपना वोट दे. समय आ गया है कि मुसलमानों का धार्मिक चश्मा उतारना है और सियासी सूझबूझ के साथ वोट दिलवाना है.
मोदी मित्र से कितने अल्पसंख्यक बीजेपी से जुड़ेंगे
इस सवाल का जवाब देते हुए रशीद ने बताया कि हर लोकसभा से 5 हजार मोदी मित्र बनाने की कोशिश है. 2024 के चुनाव से पहले तक हम इस काम पर लगे रहेंगे. देश भर में इसकी शुरुआत हो चुकी है.
पसमांदाओं का सिर्फ वोट बैंक नहीं विकास और विश्वास भी जीतना है
रशीद ने बताया कि पसमांदा मुसलमानों, बोहरा समुदाय, मुस्लिम पेशेवरों और शिक्षित मुसलमानों तक पहुंच बनाना कोई चुनावी रणनीति नहीं है, बल्कि मोदी के 'सबका साथ, सबका विश्वास' कार्यक्रम का एक हिस्सा है.
अब सवाल ये उठता है कि क्या मुस्लिम बीजेपी के इस अभियान से बीजेपी के करीब आंएगे.
मुंबई में जॉब कर रहे मोहम्मद खालिद ने एबीपी न्यूज से बात करते हुए कहा कि वह साल 2024 में भी बीजेपी को सपोर्ट करेंगे. पिछले दो सालों से बीजेपी ने बेहतर काम किया है. खालिद ने कहा ' कुछ चीजें है जो बीजेपी को मुस्लिम विरोधी बताती हैं जैसे बाबरी मस्जिद. लेकिन बाबरी मस्जिद के समय क्या हुआ था वो एक अतीत का हिस्सा है. अगर हम मौजूदा समय की बात करें तो पीएम मोदी पूरे देश के लिए काम कर रहे हैं और जब देश हित की बात आती है कोई भी नेता ऐसा काम नहीं करेगा जिससे उसकी लीडरशिप पर कोई भी सवाल पैदा हो. अगर हम पिछले 10 सालों को देखें तो पाते हैं कि टेक्नॉलॉजी ने काफी तरक्की की है, हर क्षेत्र में डिजिटलाइजेशन हो रहा है. अभी भी कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां पर बीजेपी को सुधार की जरूरत है. जिस तरह से पीएम मोदी मुस्लिमों के लिए काम कर रहे हैं वो एक बेहतरीन शुरुआत है लेकिन हमें अभी भी बहुत उम्मीदें हैं.
मध्य प्रदेश के रहने वाले जुबेर कुरैशी ने कहा 'पीएम मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में सबका साथ सबका विकास का नारा दिया था, लेकिन इस नारे को पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है. देश में मुस्लिमों को टारगेट किया जा रहा है. बीजेपी ने मोदी मित्र की शुरुआत जरूर अच्छे मकसद से की हो लेकिन मुस्लिमों में गुस्सा भी है.
इंदौर के मोहम्मद राशिद ने बताया कि बीजेपी ने बहुत सारी योजनाओं की शुरुआत की है. इन योजनाओं का फायदा मुस्लिमों को भी मिला है. मुस्लिम वोटर ज्यादातर कांग्रेस की ही तरफ जाते हैं लेकिन पिछले चार पांच सालों से ट्रेंड बदल रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि मुसलमान वोटर अब काम को देख रहे हैं वो धर्म को आधार मान कर वोट नहीं दे रहे हैं और पीएम मोदी ने मुसलमानों के लिए भी काम किया है. मोदी मित्र एक अच्छी कोशिश हो सकती है.
मुस्लिमों से दूरी कम करने में बीजेपी की कोशिशें
बता दें कि मुसलमानों के बीच की दूरियां पाटने के लिए बीजेपी की ये कोई पहली कोशिश नहीं है. बीजेपी एक मुस्लिम विरोधी पार्टी मानी जाती रही है . लेकिन बीजेपी ने इस खाई को पाटने के लिए पहले भी कोशिश की हैं. विस्तार से समझते हैं.
साल 2004 में बीजेपी ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में अटल बिहारी वाजपेयी हिमायत समिति की शुरुआत की थी. समिति के तत्कालीन राष्ट्रीय संयोजक ख्वाजा इफ्तिखार अहमद का कहना था कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में कोई भी नेता वाजपेयी के कद का नहीं दिखता है और प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ही मुसलमानों का दिल जीतने में सफल रहे.
उस दौरान ये कहा गया कि धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करने वाले राजनीतिक दलों ने देश के विभाजन के बाद से अपने राजनीतिक लाभ के लिए मुसलमानों का शोषण किया है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वाजपेयी हिमायत कमेटी का उलेमाओं ने बहिष्कार भी किया था. देवबंदी, बरेलवी और अहले हदीस फिरके के उलेमाओं ने बीजेपी पर आरोप लगाया गया था कि वाजपेयी हिमायत कमेटी में शामिल चंद तथाकथित मुस्लिम बुद्धिजीवियों और उलेमाओं ने महज चंद सिक्कों की खातिर खुद को बेच डाला है , ये लोग बाबरी मस्जिद की शहादत और गुजरात दंगों को भी भूल चुके हैं.
बीजेपी को एक मुस्लिम विरोधी पार्टी के रूप में माना जाता था. 16 वीं लोकसभा चुनावों (2014) में संसद में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं था. इसके बाद बीजेपी पर मुस्लिम विरोधी होने के आरोप लगाए गए थे.
2014 में मुस्लिम वोट शेयर
- 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा मुस्लिम वोट मिले थे. 2014 के लोकसभा चुनावों के लोकनीति-सीएसडीएस सर्वेक्षण के अनुसार, बीजेपी ने अपने मुस्लिम वोट शेयर को दोगुना कर दिया, जबकि कांग्रेस का वोट शेयर स्थिर रहा.
- बीजेपी ने 9 प्रतिशत मुस्लिम वोट हासिल किए, जो 2009 के लोकसभा चुनावों की तुलना में दोगुनी से ज्यादा है.
- 2009 में बीजेपी को चार प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले थे. कांग्रेस को 2009 में 38 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले थे और 2014 में भी यह संख्या इतनी ही रही.
- 2019 में बीजेपी का मुस्लिम वोट शेयर नौ प्रतिशत था, जबकि कांग्रेस का वोट शेयर 33 प्रतिशत तक गिर गया.
- हाल ही में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में बीजेपी कम से कम आठ प्रतिशत मुस्लिम वोट हासिल करने में कामयाब रही.
- सीएसडीएस-लोकनीति ने अपने सर्वेक्षण में खुलासा किया कि 20 प्रतिशत मुस्लिम वोटों में से समाजवादी पार्टी ने लगभग 79 प्रतिशत वोट हासिल किए . आठ प्रतिशत वोट बीजेपी को मिले. ये 2017 के विधानसभा चुनावों के मुकाबले एक प्रतिशत ज्यादा है.
एक नजर बीजेपी की मुस्लिम हितैषी योजनाओं पर
उड़ान योजना- केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार इस योजना के तहत मुस्लिम छात्र छात्राओं को प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के लिए फ्री कोचिंग मुहैया कराती है. इस स्कीम के तहत घर में रहकर प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने वाले मुसलमान छात्र छात्राओं को 1500 रुपए दिए जाते हैं . बाहर रहकर पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं को 3000 रुपए भी दिए जाते हैं.
शादी शगुन योजना- देश में मुस्लिम लड़कियों में भी उच्च शिक्षा देने के मकसद से केंद्र की मोदी सरकार इस योजना के तहत ग्रेजुएशन करने वाली मुस्लिम लड़कियों को 51000 रुपये की राशि शादी शगुन के तौर पर देने का काम कर रही है.
उस्ताद योजना- इस योजना के तहत मोदी सरकार मुस्लिम कारीगरों को और ज्यादा एक्सपर्ट बनाने के लिए उन्हें ट्रेनिंग देने का काम कर रही है. इसके तहत कारीगरों को मुसलमानों के पारंपरिक कला और हस्तकला को धार देने के लिए कौशल विकास योजना के तहत प्रशिक्षित करने का काम किया जा रहा है.
सीखो और कमाओ योजना- इस योजना का मकसद मुस्लिम युवाओं को रोजगार मुहैया कराना है. केन्द्र की मोदी सरकार ने इस स्कीम को शुरू किया है. इस योजना में प्रशिक्षित 75 प्रतिशत मुस्लिम युवाओं को रोजगार मुहैया कराने की अनिवार्यता भी रखी गई है.
ईदी योजना- केंद्र की मोदी सरकार के इस योजना के तहत 5 करोड़ मुस्लिम छात्र छात्राओं को 'प्रधानमंत्री छात्रवृत्ति' देने का फैसला लिया गया है. इस योजना के तहत योजना का लाभ उठाने वाले में 50 प्रतिशत मुस्लिम छात्राएं होंगी. दरअसल यह योजना मुसलमानों में शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाने के लिए शुरू की गई है.
क्या है पत्रकारों की राय
राजनीतिक विश्लेषक आर. राजगोपालन ने एबीपी न्यूज को फोन पर बताया कि अपनी योजनाओं के दम पर ही बीजेपी ने मुस्लिम समुदाय के बीच पहचान बनाई है. यूपी में योगी आदित्यनाथ हर बार जीत रहे हैं. पसमांदा मुस्लिम के लिए हैदराबाद बीजेपी सेशन में खास फोकस किया गया. मिस्त्र दौरे पर पीएम मोदी ने बोहरा मुस्लिम से भी मुलाकात की. ये बात अलग है कि एक तबका पीएम मोदी को मुस्लिम विरोधी मानता है लेकिन अब पीएम मोदी पूरे मुस्लिम समुदाय को अपने विश्वास में लेने की कोशिश कर रहे हैं.
राजगोपालन ने आगे बताया 'मुख्तार अब्बास नकवी जब मिनिस्टर थे तब से भारत से बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाओं को हज पर जाने की सुविधा दी जा रही है. इसके अलावा स्वच्छ भारत मिशन शौचालय योजना के तहत पीएम मोदी 30 प्रतिशत शौचालय का निर्माण मुस्लिमों के लिए कर रहे हैं. इस तरह की कई कल्याणकारी योजनाओं को देखते हुए मुस्लिमों का बीजेपी को समर्थन यूपी, बिहार जैसे राज्यों में बढ़ा है. बाकी राज्यों के मुसलमान भी बीजेपी से जुड़ने का प्रयास कर रहे हैं.
राजगोपालन ने कहा कि राम मंदिर के बाद ये कयास लगाए जा रहे थे कि बीजेपी को मुस्लिम वोट नहीं मिलेगा, लेकिन चुनावों के नजदीक आते ही बीजेपी ने इसे पूरी तरह से पंचर कर दिया है. अब मोदी मित्र एक मुस्लिमों को जोड़ने में अहम कड़ी साबित होगी.
वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क भी ये मानते हैं की बीजेपी की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं से मुस्लिम वोट शेयर बीजेपी की तरफ बढ़ा है. उससे भी अहम यह है कि उत्तर प्रदेश में पिछले पांच सालों के दौरान विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं से मुसलमानों को उतना ही फायदा हुआ है जितना हिंदुओं को. नरेंद्र मोदी की सरकार ने तलाक का दंश झेल रही मुस्लिम महिलाओं के लिए कानून बनाया.
अश्क ने आगे बताया कि पीएम मोदी ने मुसलमानों के लिए सऊदी अरब से आग्रह कर न सिर्फ हज का कोटा बढ़वाया बल्कि उस पर लगने वाली जीएसटी को 18 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया. इसके अलावा नरेंद्र मोदी की सरकार ने ही 6 लाख से ज्यादा वक्फ बोर्ड और वक्फ संपत्तियों के कागजातों का डिजिटलीकरण करवाने का काम किया है. 2024 के चुनावों के साथ बीजेपी अपने वोटिंग परसेंट में सुधार करना चाहती है और इसी वजह से उन्हें अल्पसंख्यक वोट की जरूरत है. यह देखा जाना बाकी है कि क्या बीजेपी की पहुंच वास्तव में फल देती है.