नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ दूसरी अनौपचारिक शिखर बैठक के लिए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग 11 अक्टूबर को भारत आ रहे हैं. मगर चीनी राष्ट्रपति के इस अहम दौरे से पहले भारत में रह रही निर्वासित तिब्बत सरकार ने दलाई लामा के पुनर्जन्म को लेकर चीन के किसी भी दखल को अस्वीकार करने का ऐलान कर सियासत को गरमा दिया है. ज़ाहिर है जिनपिंग की यात्रा से पहले तिब्बती बिरादरी का यह बयान बीजिंग के उस फैसले को खुली चुनौती है जिसमें चीन सरकार ने अगले दलाई लामा के चयन की ज़िम्मेदारी अपने हाथ में ली थी.
हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में हुई निर्वासित तिब्बती संसद की तीसरी विशेष बैठक में बाकायदा प्रस्ताव पारित कर बीजिंग के दखल को अस्वीकार करने का ऐलान किया गया. एबीपी न्यूज़ से फोन पर हुई खास बातचीत में केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन के प्रधानमन्त्री डॉक्टर लोबसांग सांगे ने बताया कि 24 देशों से आए 345 प्रतिनिधियों ने एकमत से प्रस्ताव पारित कर तिब्बत की पुनर्जन्म व्यवस्था में चीन सरकार के दखल का विरोध किया. सांगे के मुताबिक धर्मशाला में चली तीन दिन की बैठक के बाद दो प्रस्ताव पारित किए गए. इसमें पहला प्रस्ताव तिब्बती लोगों के लिए विज़न 550 का है. इसके तहत 5 साल से लेकर 50 साल तक तिब्बती लोगों के राजनीतिक, धार्मिक और मानवाधिकार मामलों के लिए संघर्ष जारी रखने की कार्ययोजना को मंजूरी दी गई.
निर्वासित तिब्बती सरकसर की तीसरी विशेष बैठक में जहां दलाई लामा के बेहतर स्वास्थ्य और दीर्घायु होने की कामना की गई वहीं आग्रह किया गया कि तिब्बती लोगों अधिकारों के लिए चल रहे मिशन और पूर्व दलाई लामाओं की परंपरा को जारी रखते हुए पुनर्जन्म को जारी रखें. बैठक में चीन सरकार के रेज़ोल्यूशन संख्या 5 की एक सुर में निंदा करते हुए सभा ने पुनर्जन्म व्यवस्था में चीन के किसी भी दखल को स्वीकार न करने का भी फैसला लिया. डॉ सांगे के मुताबिक, दलाई लामा की परंपरा तिब्बत की धार्मिक परंपरा है और इसमें ईश्वर को न मानने वाली चीन के कम्युनिस्ट पार्टी का कोई दखल नहीं हो सकता. यदि वो पुनर्जन्म में भरोसा रखते हैं तो पहले माओ त्ज़ेतुंग का पुनर्जन्म बताएं.
महत्वपूर्ण है कि चीन सरकार ने 2007 में कानून बनाकर बौद्ध धार्मिक व्यवस्था के तहत दलाई लामा के चयन की ज़िम्मेदारी धर्म मामलों के विभाग को दी थी. बीते दिनों तिब्बत धार्मिक मामलों के अधिकारियों ने एबीपी न्यूज़ से बातचीत में बताया था को चीन के रिलीजियस अफेयर्स ब्यूरो द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के तहत ही नए दलाई लामा का चयन होगा. इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि सरकार के कौन से विभाग दलाई लामा की नियुक्ति का अनुमोदन या उसे अनुमति दे सकते हैं.
इससे पहले दलाई लामा यह कह चुके हैं कि उनका पुनर्जन्म किसी मुक्त देश में ही सम्भव है. तिब्बती धर्म गुरु के इस बयान पर बीजिंग ने ऐतराज़ जताया था. हालांकि सांगे कहते हैं दलाई लामा ही यह तय कर सकते हैं कि उनका पुनर्जन्म कहाँ हो. मगर तिब्बती लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए ज़रूरी है कि वो किसी मुक्त देश में पैदा हो और हमारा मार्गदर्शन करें. मौजूदा दलाई लामा इस परंपरा की 14वीं कड़ी हैं. उम्र के 84 वसंत देख चुके तिब्बती धर्म गुरु की बढ़ती आयु के बीच जहां चीन अब इस परंपरा की चाबी अपने हाथ में लेना चाहता है. वहीं दुनिया के अलग-अलग कोनों में फैले तिब्बतियों की चिंता रक मान्य नेतृत्व को लेकर भी है.
हालांकि चीनी राष्ट्रपति की यात्रा से ऐन पहले आए राजनीतिक प्रस्तावों की टाइमिंग को डॉ लोबसांग सांगे ने महज़ संयोग करार दिया. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा की इसमें एक कार्मिक संयोग से ज़्यादा कुछ भी नहीं क्योंकि तिब्बती बैठक के बारे में फैसला करीब एक साल पहले ही हो चुका है. गौरतलब है कि 1955 से लेकर अब तक बड़ी संख्या में लोग तिब्बत छोड़कर बाहर गए हैं इनमें से करीब 90 हज़ार से ज़्यादा तिब्बती भारत में रह रहे हैं.