Omicron Cases in India: भारत मे ओमिक्रोन के बढ़ते मामलों के बीच कोरोना वैक्सीन की बूस्टर डोज या तीसरी डोज देने को लेकर चर्चा तेज हो गई है . ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रोन के खतरे के खिलाफ वैक्सीन की बूस्टर डोज फायदा करेगी? जानकारों के मुताबिक बूस्टर या एडिशनल डोज पर फैसला साइंटिफिक आधार पर तय होता है. देश मे कोरोना टीकाकरण काफी तेजी से हो रहा है, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक देश 55 फीसदी वयस्क आबादी का पूर्ण वैक्सीनेशन हो चुका है, लेकिन इस बीच कोरोना के बूस्टर या एडिशनल डोज की बात हो रही है.
बूस्टर डोज को लेकर जानकारों की राय है कि वैक्सीन देना एक साइंटिफिक प्रक्रिया है. कितनी डोज और कितने अंतराल पर दी जानी है, ये सब कुछ साइंटिफिक डाटा के आधार पर तय होता है. इसमें रिस्क असेसमेंट, बेनिफिट और सेफ्टी जैसी चीजों को देखा जाता है और उसके बाद कोई फैसला होता है. भारत और पूरे विश्व मे कोरोना की वैक्सीन को जब इजाजत मिली थी, तब भी इन चीजों को देखा गया था. ऐसे में अगर वैक्सीन की बूस्टर डोज या एक और डोज को लेकर फैसला पूरा डाटा देखने के बाद ही हो सकेगा. बूस्टर डोज या तीसरी डोज को लेकर एम्स दिल्ली के डॉक्टर पुनीत मिश्रा ने कहा कि मुझे लगता है कि इस बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी है. जहां तक बात ओमिक्रोन की है तो अभी इसके चलते बहुत ज्यादा गंभीर बीमारी नहीं हो रही है. जो भी वैक्सीन है, वह इम्युनिटी दे रही है. वो इंफेक्शन को नहीं रोक रही है, लेकिन गंभीरता और मौत को रोक रही है. ओमिक्रोन बहुत ही माइल्ड है. ऐसे में क्यों वैक्सीन की एक्स्ट्रा डोज देना. अभी हमारे पास पर्याप्त सबूत नहीं है कि बूस्टर डोज से कितना फायदा होगा.
ये भी पढ़ें- PM Modi की अपील, दो गरीब बेटियों के स्किल डेवलपमेंट की उठाएं जिम्मेदारी, बनारस के विकास पर भी कही बड़ी बात
एम्स दिल्ली में कम्यूनिटी मेडिसिन के डॉक्टर संजय राय ने कहा कि हम पहले उद्देश्य देखते हैं कि कोई वैक्सीन या दवा क्यों देनी है. अभी जो बूस्टर डोज की बात चल रही है, यह पिछले चार-पांच महीने से चल रही है. इसकी बात इसलिए हो रही है कि कुछ देशों ने बूस्टर डोज देना शुरू कर दिया है. बूस्टर डोज इस तर्ज पर दी जा रही है कि यह इम्यूनिटी बढ़ाएगा और बीमारी को रोकेगा. अभी तक जो भी साक्ष्य हैं, हमारे पास वह यह दिखाते हैं कि वैक्सीन गंभीरता और डेथ को कम करता है. ये इंफेक्शन को रोकने में कारगर नहीं है. अगर कारगर होता तो पूरे दुनिया में ओमिक्रोन के केस नहीं आते. क्योंकि जिन लोगों में भी ये केस मिला है, उनमें ज्यादातर लोग वैक्सीनेटिड हैं.
डॉक्टर संजय कुमार कहते हैं कि अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा, डेल्टा प्लस और ओमिक्रोन इन सब में स्पाइक प्रोटीन में ही बदलाव हुआ है. ज्यादातर में स्पाइक प्रोटीन में ही बदलाव देखा गया है. ओमिक्रोन में भी देखा गया की सिर्फ स्पाइक प्रोटीन में सबसे ज्यादा बदलाव हुए हैं. वैक्सीन से भी जो एंटीबाडी शरीर में है वो वायरस को पहचान नहीं पाएगी. ऐसे में वैक्सीन की एक और डोज कोई फायदा नहीं करेगी.
कुछ देशों में वैक्सीन की बूस्टर डोज दी जा रही है. इस पर जानकारों का कहना है कि दुनिया के अलग अलग देश में अलग अलग वैक्सीन इस्तेमाल हो रही है और हर देश की अपनी एक एपिडेमियोलॉजी है. अपनी देश की आबादी, बीमारी और रिसर्च के आधार पर वहां फैसले होते है. दूसरे देश के आधार पर फैसले नहीं होते है. एम्स के डॉक्टर पुनीत मिश्रा ने कहा कि भारत मे कोरोना वैक्सीन की बूस्टर डोज पर नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्यूनाइजेशन में चर्चा हुई थी, लेकिन ठोस साइंटिफिक डेटा ना होने की वजह से फैसला नहीं हो पाया था. इसलिए जानकरों का मनाना है की जब तक इसका कोई साइंटिफिक डेटा या रिसर्च न हो इस पर फैसला नहीं हो पाएगा.