रविवार को देश के अंदर दो तरह की तस्वीरें सामने आई. एक तरफ पार्लियामेंट का भव्य उद्घाटन, रीति रिवाजों, वैदिक मंत्रों से हो रहा था. दूसरी तरफ भारत माता की जय और इंकलाब जिंदाबाद के नारे गूंज रहे थे. पूरी घटना लुटियंस दिल्ली में ही हो रही थी, एक तरफ जंतर-मंतर दूसरी तरफ पार्लियामेंट हाउस. देश के पहलवान हाथों में तिरंगा लेकर सड़कों से गुजर रहे थे. वहीं नई संसद में पीएम मोदी समेत तमाम बड़े नेता मौजूद थे. 


पहलवान बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ बीते करीब एक महीने से दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना दे रहे थे. कल रविवार को पुलिस ने दो पहलवानों बजरंग पुनिया और साक्षी मलिक समेत सभी प्रदर्शनकारी पहलवानों को उनके समर्थकों समेत रविवार को हिरासत में लिया, बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया. सवाल ये है कि इस पूरे मामले का राजनीतिक परिणाम क्या होगा? क्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान में बीजेपी को इस प्रदर्शन का नुकसान होगा, या फिर इस प्रदर्शन का वही हश्र होगा जो किसान आंदोलन का हुआ था. 


यूपी में जाटों की कुल आबादी 6 से 8% बताई जाती है. पश्चिमी यूपी में वो 17% से ज्यादा जाट वोटर हैं. 18 लोकसभा सीटों पर जाट वोट बैंक चुनावी नतीजों पर सीधा असर डालता है. इनमें सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, बिजनौर, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, मुरादाबाद, संभल, अमरोहा, बुलंदशहर, हाथरस, अलीगढ़, नगीना, फतेहपुर सीकरी, और फिरोजाबाद शामिल हैं.


दूसरी तरफ विधानसभा की कुल 120 सीटों पर जाट वोट बैंक असर रखता है. फिलहाल संसद में 24 सांसद जाट हैं. जिनमें सिर्फ 4 सांसद भारतेंदु सिंह, सत्यपाल सिंह, चौधरी बाबूलाल और संजीव बालियान यूपी से हैं. विधानसभा में कुल 14 जाट विधायक हैं. लोकसभा सीटों पर मथुरा में 40%, बागपत में 30%, सहारनपुर में 20% जाट आबादी है. पहलवानों के प्रदर्शन में जाट भी शामिल हो रहे हैं तो क्या लोकसभा चुनाव में इस प्रदर्शन का बीजेपी पर यूपी के इन जिलों से कोई असर पड़ेगा? 


वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क बताते हैं कि रविवार को पहलवानों के साथ जो बर्ताव हुआ उसका राजनीतिक नुकसान बीजेपी को होना चाहिए. वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि राजनीतिक हवा कब किस तरफ मुड़ जाए कुछ भी नहीं कहा जा सकता. बीजेपी के समर्थन में लोग ये कह रहे हैं कि आरोपी पर मुकदमा हो गया, सुप्रीम कोर्ट में भी मामला दर्ज हो गया तो इस तरह के बखेड़े की जरूरत नहीं है, लेकिन दूसरा पहलू ये भी है कि इस पूरे मामले का राजनीतिकरण होने लगा है. तमाम विपक्षी दलों के लोग सत्ता पक्ष के खिलाफ बोल रहे हैं. विपक्ष नए संसद के उद्धाघटन से लेकर, भ्रष्टाचार का मुद्दा, पहलवानों के मुद्दे को लेकर लगातार हावी हो रहा है. 


क्या किसान आंदोलन की तरह होगा पहलवानों का आंदोलन का नतीजा?


वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि अभी पहलवानों का मुद्दा सबसे ज्यादा प्रभावी मुद्दा है, लेकिन ये मुद्दा चुनाव के नजदीक आने तक कितना बड़ा मुद्दा रहेगा कुछ कहा नहीं जा सकता. उन्होंने कहा 'किसान आंदोलन को लेकर भी कहा जा रहा था कि इस आंदोलन का असर बीजेपी पर चुनाव में पड़ेगा. लेकिन यूपी चुनाव से ठीक पहले केंद्र सरकार ने कानून वापस ले लिया था. 


पिछली बार सपा और बसपा दोनों मिलकर चुनाव लड़ी थी. इसके बावजूद बीजेपी ने भारी बहुमत हासिल किया था. इस बार दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं, जो बीजेपी को और मजबूत बनाएगा. 


यूपी की दस सीटों पर पड़ सकता है पहलवान के प्रदर्शन का असर


यूपी की 18 लोकसभा सीटों पर जाट वोटरों का सीधा असर है.  टॉप 10 सीटें जाट सीटें मानी जाती हैं. इनमें बागपत में 30 प्रतिशत जाट वोटरों का दबदबा है. मेरठ में 26 प्रतिशत जाट वोटरों का दबदबा है. ये बीजेपी की परंपरागत सीट भी है. सहारनपुर में 20 प्रतिशत जाट वोटर हैं. मथुरा में 18 प्रतिशत जाट वोटर हैं. अलीगढ़, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मुरादाबाद, आगरा, कैराना सीटों को भी जाट वोटरों का दबदबा माना जाता है. अश्क ने बताया कि इन सभी सीटों पर जाट वोटरों का प्रत्यक्ष असर बीजेपी पर पड़ सकता है.


हवा का रुख बदलने में माहिर है बीजेपी


अश्क ने बताया ' चुनाव नजदीक आते ही सभी राज्यों के  वोटरों को विपक्ष अपनी तरफ करने की कोशिश में लग चुकी है. पहलवान के प्रदर्शन के बाद हरियाणा, पश्चिमी यूपी के जाट और राजस्थान के जाट वोटरों को विपक्ष सीधे तौर पर साधने की कोशिश कर रही है. जिस तरह से किसान पहलवानों के साथ आंदोलन में उतर आए हैं, वो एक वक्ती गुस्सा हो सकता है. दूसरा पहलू ये है कि किसानों के खाते में हर महीने 6 हजार रुपये केन्द्र सरकार डाल रही है. यानी बीजेपी ने आज से नहीं कई साल पहले से ही किसानों को साधने का प्रयास शुरू कर दिया है.'


राजस्थान में कुल 200 विधानसभा सीटों पर 30 से 40 विधानसभा सीटों पर जाट जाति का कैंडिडेट चुनाव जीतता है. अगर ये जाट कैंडिडेट पहलवानों और जाटों का मुद्दा उठाएंगे तो राजस्थान के विधानसभा चुनाव पर असर दिखेगा, लेकिन ये नहीं कहा जा सकता कि लोकसभा में ये मुद्दा हावी होगा. 


अश्क ने बताया कि जहां -जहां जाट जातियों का बोलबाला है वहां पर वोटिंग पैटर्न पर असर पड़ना चाहिए. लेकिन बीजेपी एक ऐसी पार्टी है जो 360 दिन चुनाव पर काम करती है.  ऐसे में रुख कब किस तरफ बदल जाए ये अभी कहा नहीं जा सकता . 


पूरे मामले पर बीजेपी की चुप्पी का क्या है मतलब


ओम प्रकाश अश्क ने बताया कि चुनावों को देखते हुए पूरे मामले को बीजेपी बहुत सावधानी बरत रही है. विपक्ष बार -बार ये सवाल जरूर उठा रहा है कि पीएम मोदी मामले पर क्यों नहीं बोलते, लेकिन ये मामला कोर्ट में सुना जा चुका है . ऐसे किसी भी मामले पर सरकार को बोलने का हक नहीं होता है. 


हरियाणा में 28 फीसदी जाट वोटर खेल बना और बिगाड़ सकते हैं


हरियाणा में भी जाट समुदाय का बोलबाला है. माना जाता है कि करीब 28 फीसद जाट समुदाय  किसी भी दल का खेल बना और बिगाड़ सकते हैं. हरियाणा में 10 जिलों की 30 से 35 विधानसभा सीटों पर जाट मतदाता पूरी तरह से निर्णायक माने जाते हैं. छह लोकसभा सीटों पर जाट वोटर्स हैं. हरियाणा के रोहतक, सोनीपत, झज्जर, चरखी दादरी, पानीपत, जींद, कैथल, सिरसा, फतेहाबाद, हिसार और भिवानी रको जाट बहुल माना जाता है. 


वरिष्ठ पत्रकार एसपी भाटिया कहते हैं कि इस पूरे मामले को लेकर पूरे किसान समुदाय में भारी गुस्सा है. भाटिया ने कहा " पिछले दिनों हरियाणा के मुख्यमंत्री ने जनसंवाद किया, जिसमें मुख्यमंत्री का जमकर विरोध देखने को मिला. किसान पहले ही सरकारी नौकरियों को लेकर मांग कर रहे हैं.  ऐसे में पहलवानों का मुद्दा राज्य में लोकसभा चुनाव में कुछ असर पड़ना चाहिए. 


राजस्थान 


राजस्थान में कुल कुल 200 विधानसभा सीटें हैं. इन सभी सीटों में से 30 से 40 विधानसभा सीटों पर जाट जाति का कैंडिडेट चुनाव जीतता है. . वरिष्ठ पत्रकार ओम सैनी ने बताया कि राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और नगौर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद हनुमान बेनीवाल कल रो रहे थे. अभी से कई नेताओं ने पहलवानों के मुद्दे को भुनाना शुरू कर दिया है.  


सैनी ने कहा ' राजस्थान में बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर , बीकानेर,  गंगानगर, चूरू, सीकर, नागौर , हनुमानगढ़ जयपुर सहित कई जिलों में जाट जाति ही पाई जाती है. अगर ये मुद्दा लोकसभा चुनाव तक गर्म रहता है तो इसका असर जाट वोटरों पर पड़ेगा. बीजेपी के जाट वोटर इन इलाकों में दूसरे पक्ष में वोट डाल सकते हैं. 


राजस्थान के शेखावटी में जाट समुदाय का बोलबाला है. यहां पर हर चुनाव में शेखावटी ही किसी भी पार्टी के भाग्य का फैसला करती है. इसी तरह जोधपुर और बीकानेर, बाड़मेर में जाटों का ही बोलबाला है. बांसवाड़ा और मेवाड़ को छोड़कर सभी डिविजन में (कुल 7 में से 5 ) जाटों का बोलबाला है. 


सैनी ने कहा कि बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष पहले सतीश पूनिया थे. हाल ही में बीजेपी ने सीपी जोशी को अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाया जो ब्राह्मण हैं. ऐसा करके बीजेपी ने सोशल इंजीनियरिंग का दांव खेलना अभी से शुरू कर दिया है.  देखना ये होगा कि बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग हवा का रुख किस तरफ मोड़ेगी.