मुंबई: नागरिकता संशोधन विधेयक का लोकसभा में समर्थन और राज्य सभा में सभा त्याग कर विरोध कर फंसी शिवसेना क्या राज्य में नागरिकता संशोधन कानून लागू करेगी? राज्य में इस कानून को लागू करने को लेकर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे असमंजस में नजर आ रहे हैं. इस कानून का विरोध कर रही कांग्रेस के साथ शिवसेना राज्य में सत्ता पर है. ऐसे में राज्य में कानून लागू करना शिवसेना के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि ऐसा करने से राज्य की ठाकरे सरकार पर आफत आ सकती है और अगर लागू नहीं किया तो उन पर हिंदुत्व की अपनी मूल विचारधारा से समझौता करने का आरोप लगेगा. ऐसे में क्या शिवसेना इस तरह की भूमिका के जरिए भविष्य के लिए अपने सारे विकल्प खुले रखना चाहती है. ये बड़ा सवाल बना हुआ है.


मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने राज्य में कानून लागू करने पर सस्पेंस बरकरार रखा है. उद्धव ठाकरे ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद ही वो राज्य में कानून लागू करने पर निर्णय लेंगे. वहीं शिवसेना के सासंद संजय राउत ने शिवसेना की इस कानून को लेकर भविष्य की भूमिका स्पष्ट की है. संजय राउत ने कहा उन्हें नहीं लगता कि राज्य में नागरिक संशोधन बिल लागू होगा. लोकसभा में शिवसेना ने नागरिकता संशोधन विधेयक पर बीजेपी का साथ देते हुए विधेयक के पक्ष में मतदान किया था पर राज्यसभा में विधेयक का समर्थन करने से पहले शर्त रख दी. शिवसेना ने कहा कि इस बिल को लेकर उनके कुछ सवाल है जिसका जवाब केंद्र सरकार को देना होगा. उद्धव ठाकरे ने सवाल पूछे कि जिन नागरिकों का नागरिकता दी जा रही है, वे किस राज्य में रहेंगे? पार्टी के मुख पत्र 'सामना' में भी बीजेपी पर हमला बोलते हुए आरोप लगाया गया कि नागरिकता संशोधन विधेयक के जरिए बीजेपी धर्म के नाम पर देश को बांट रही है.


शिवसेना के इस बदलते सुर को लेकर विरोधी हमला बोल रहे हैं. लोकसभा में पास हुए नागरिकता संशोधन विधेयक पर राहुल गांधी ने जैसे ही ट्वीट कर बयान जारी किया, वैसे ही शिवसेना की भूमिका बदल गई. शिवसेना के इस यू टर्न को कांग्रेस के सामने सरेंडर के तौर पर देखा जा रहा है. हालांकि, एनसीपी ने कहा कि दोनों पार्टियां अलग हैं और उनके लिए हमेशा सभी मुद्दों पर समान विचार रखना संभव नहीं है. पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि उन्हें शिवसेना पर तरस आ रहा है, जिसने सत्ता के लालच में विचारधारा से समझौता किया. इससे पहले गृहमंत्री अमित शाह ने भी संसद में शिवसेना नेता संजय राउत की तरफ इशारा करते हुए कहा था कि सत्ता के लिए लोग कैसे-कैसे काम कर सकते हैं, कभी सोचा ना था. शिवसेना की इस स्थिति की दो वजह हैं एक राज्य में बनी महाविकास गठबंधन की सरकार और अपनी मूल विचारधारा यानि हिंदुत्व.


शिवसेना अगर कानून लागू नहीं करती तो उनकी सरकार आराम से चलेगी और अगर करती है तो सरकार को कांग्रेस से खतरा हो सकता है. वहीं शिवसेना कानून लागू नहीं करने की घोषणा करती है तो उसपर अपनी मूल विचाराधारा से समझौता करना, हिंदुत्ववादी से धर्म निरपेक्ष बनने का आरोप लगाकर आलोचना होगी. वहीं कांग्रेस के नेताओं ने ट्वीट कर शिवसेना की भूमिका की आलोचना की. कांग्रेस की महाराष्ट्र के नेता रत्नाकर महाजन ने नागरिकता विधेयक पर मतदान के दौरान सभा त्याग करने को लेकर शिवसेना की खिंचाई की. उन्होंने फेसबुक पोस्ट में कहा, दुखद, दुर्भाग्यपूर्ण. क्या संजय राउत का विधेयक पर भाषण इस मुद्दे पर शिवसेना के भ्रम का संकेत है या सभी विकल्पों को खुला रखने का विचार है? स्पष्टीकरण के नाम पर कार्यवाही का बहिष्कार करने का उनका कदम बचाव लायक नहीं है और यह मानना बेवकूफी होगी कि उन्हे नहीं समझ आया कि बहिष्कार करने से सत्तारूढ़ पार्टी को मदद मिलेगी. इसीलिए सवाल उठ रहे हैं कि क्या शिवसेना ऐसा करके बीजेपी के रास्ते खुद के लिए खुला रखना चाहती है.


दरअसल शिवसेना इस कानून के जरिए बीजेपी पर धर्म के नाम पर बंटवारे की राजनीति की आरोप लगा रही है. यही आरोप कुछ महीने पहले तक शिवसेना पर लगते रहे. शिवसेना प्रमुख मरहूम बाल ठाकरे तो खुलकर हिंदू-मुस्लिम वोटबैंक की राजनीति करते थे. इसी राजनीति के आधार पर शिवसेना-बीजेपी मिलकर केंद्र और राज्य में सत्ता पर भी आई. उद्धव ठाकरे एक मंजे हुए राजनेता हैं वो जानते है कि राजनीति में कभी किसके लिए दरवाजे बंद नहीं करने चाहिए. जानकार ये मानते हैं कि उद्धव ठाकरे को भी से पता है कि केंद्र के इस कानून को राज्य में लागू करना ही होगा भले ही राज्य कितना भी विरोध कर ले. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट से अगर हरी झंडी मिलती है कि तो उद्धव इस कानून को राज्य में ये कहकर लागू करेंगे कि उन्होंने इस कानून का विरोध तो किया लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उन्हें ये कानून लागू करना पड़ रहा है. ऐसा करने से हिंदुत्व के नाम पर किया इस कानून विरोध भी दर्ज हो जाएगा और उनकी सरकार भी बनी रहेगी.


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