नई दिल्ली: क्या मोदी सरकार संसद के शीतकालीन सत्र को काफी छोटा करने जा रही है? क्या आमतौर पर करीब एक महीने तक चलने वाला ये सत्र केवल दो हफ्तों या उससे कम का ही होगा? क्या ये सत्र गुजरात चुनाव के बाद शुरू होगा? क्या गुजरात चुनाव के मद्देनजर मोदी सरकार संसद में विपक्षी हमले से बचना चाहती है? ये सवाल इन दिनों सियासी गलियारों में पूछे जा रहे हैं. इसकी वजह है अब तक संसद के शीतकालीन सत्र की तारीख का एलान न होना.


क्यों हो रही चर्चा?
दरअसल नवम्बर का महीना शुरू हो चुका है और साधारणतया हर साल अब तक संसद के शीतकालीन सत्र की तारीखों का एलान हो जाया करता है. उम्मीद ये की जा रही थी कि 1 या 2 नवम्बर को गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाली संसदीय मामलों की कैबिनेट कमिटी की बैठक होगी और उसमें तारीखों का एलान कर दिया जाएगा, लेकिन अब तक ये बैठक नहीं हो पाई है और जानकारी के मुताबिक इस हफ्ते कमिटी की बैठक की संभावना भी नहीं है. यही कमिटी संसद सत्र की तारीखों पर फैसला कर राष्ट्रपति के पास अनुशंसा भेजती है.


आम तौर पर संसद का शीतकालीन सत्र नवम्बर महीने के तीसरे हफ्ते शुरु होता है. लगभग एक महीने चलने के बाद दिसंबर के तीसरे हफ्ते में इसका समापन होता है.


क्यों नहीं हुआ ऐलान?
इसको लेकर अब अलग अलग कयास लगाए जा रहे हैं. सुगबुगाहट ये है कि गुजरात चुनाव के मद्देनजर मोदी सरकार के मंत्री चुनाव प्रचार में ज़्यादा व्यस्त रहेंगे. कयास ये भी हैं कि ख़ुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चुनाव प्रचार में लगतार व्यस्त रहेंगे जिसके चलते संसद में समय दे पाना मुश्किल होगा. उधर विपक्ष के नेताओं का दावा है कि मोदी सरकार गुजरात चुनाव से ऐन पहले विपक्ष का हमला नहीं झेलना चाहती और इसलिए सत्र से भाग रही है.


क्या कहता है संविधान?
संविधान में संसद सत्र के दिनों के बारे में कुछ नहीं कहा गया है. संवैधानिक बाध्यता बस इतनी ही है कि संसद के दो सत्रों के बीच में 6 महीने से ज़्यादा का अंतर नहीं होना चाहिए. अब तक की परिपाटी के मुताबिक साल में - बजट, मानसून और शीतकालीन - तीन सत्र होते आए हैं. आम तौर पर संसद सत्र शुरू होने के 21 दिन पहले सदस्यों को सूचित किया जाता है. पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने साल में कम से कम 180 दिनों का सत्र करने की वकालत की थी.


मोदी सरकार ने शुरु की नई परम्परा
वैसे मोदी सरकार पहले ही संसदीय परिपाटी और नियमों में पहले ही काफी बदलाव कर चुकी है. इनमें रेल और आम बजट को एक करना और आम बजट फरवरी की जगह जनवरी में पेश करना अहम है. लेकिन अगर शीतकालीन सत्र की अवधि छोटी की जाती है तो मोदी सरकार पर संसद से बचने का आरोप लगने तय हैं.