नई दिल्ली: हाल के वर्षों में भारत में सड़क पर पैदल चलना ज्यादा खतरनाक हो चला है. लोग अपनी मंजिल पर पहुंचने से पहले ही जान गंवा रहे हैं. ये हम नहीं कह रहे बल्कि रिपोर्ट के आंकड़े गवाही दे रहे हैं. रिपोर्ट को परिवहन मंत्रालय ने जारी किया है. जिससे साबित होता है कि सड़क दुर्घटना में पैदल यात्रियों की मौत का आंकड़ा पिछले चार साल में 84 फीसदी बढ़ गया है. रिपोर्ट का ये आंकड़ा 2014 से 2018 के दरम्यान का है. जिसके मुताबिक  देशभर में रोजाना औसतन 34 से 62 मोतें हो रही हैं.


फुटपॉथ पर अतिक्रमण और अधिकारियों की संवेदनहीनता पर सवाल


बात करें आंकड़ों की तो 2014 में सड़क दुर्घटना में मरनेवाले पैदल यात्रियों की संख्या 12330 थी, तो वहीं 2018 में मौत का आंकड़ा बढ़कर 22656 हो गया. 2015 में सड़क दुर्घटना में मृतकों की संख्या बढ़कर 13894 हो गई. 2016 में मृतकों की तादाद 15746 थी, तो 2017 में  20457 पैदल यात्री मारे गये. और 2018 में देशभर में सड़क हादसे में जान गंवाने वालों की संख्या 22656 हो गई.


सड़क सुरक्षा से जुड़े विशेषज्ञों ने रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद चिंता जताई है. उनका कहना है कि बढ़ते हादसे कई सवाल को जन्म देते हैं. पहला सवाल तो यही है कि क्या सड़क पर चलनेवाले पैदल यात्रियों के अधिकारों की चिंता किसी को नहीं है?. दूसरे ये कि सड़क निर्माण करते वक्त अधिकारी ट्रैफिक प्लान पर ध्यान नहीं देते.


सड़क हादसे की रिपोर्ट में पश्चिम बंगाल टॉप पर


मंत्रालय की 2018 की रिपोर्ट में पश्चिम बंगाल टॉप पर है. जहां सबसे ज्यादा सड़क दुर्घटना में 2618 पैदल यात्रियों ने जान गंवाई है. दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र में 2515 यात्रियों की सड़क दुर्घटना में मौत हुई. तीसरे नंबर पर आंध्र प्रदेश में पैदल यात्रियों की मौत का आंकड़ा 1569 रहा.


सड़क सुरक्षा से जुड़े जानकारों का कहना है कि शहरों में फुटपाथ पर अतिक्रमण कर लिया गया है. जिसकी वजह से पैदल यात्री सड़क पर चलने के लिए मजबूर हैं. कोर्ट के निर्देश के बाद म्यूनिसिपल बॉडी या सड़क की देखभाल करने वाली ऐजेंसी की तरफ से कभी कभी ''अतिक्रमण हटाओ अभियान'' चलाया जाता है, लेकिन ये सब थोड़े दिनों के लिए होता है. ड्राइवरों के लिए भी कोई ऐसी जगह नहीं है जहां उन्हें पैदल यात्रियों के प्रति संवेदनशील बनाया जा सके.


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