General Election 2024: राष्ट्रीय स्तर पर खुद को मजबूत करने में जुटी ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की टीएमसी और कांग्रेस के बीच दूरिया लगातार बढ़ती जा रही हैं. ममता बनर्जी के UPA के अस्तित्व को लेकर दिए गए बयान के बाद आज प्रशांत किशोर ने भी विपक्ष के नए चेहरे की बात की. ऐसे में सवाल उठने लगा है कि आखिर मौजूदा UPA का अस्तित्व क्या वाकई में खत्म हो रहा है. सिर्फ ममता ही नहीं बल्कि यूपीए में शामिल या अन्य विपक्षी दल भी यूपीए के अस्तित्व पर सवाल उठाने लगे हैं.
UPA की मौजूदा स्थिति पर उठे सवाल
ममता बनर्जी ने मुंबई में शरद पवार से मुलाकात के बाद UPA के अस्तित्व पर सवाल उठाए और 2024 में बीजेपी का मुकाबला करने के लिए राज्य स्तर की पार्टियों के बीच गठबंधन की बात कही. ममता के बयान के बाद सवाल यूपीए की मौजूदा स्थिति पर भी खड़ा होने लगा है. विपक्षी पार्टियों में से एक समाजवादी पार्टी से यूपीए के अस्तित्व को लेकर सवाल पूछा गया तो सपा के सांसद रामगोपाल यादव ने भी कुछ उसी सुर में बात की.
यूपीए का कोई अस्तित्व नहीं
रामगोपाल यादव ने कहा कि आप किस UPA की बात कर रहे हैं. यूपीए का कोई अस्तित्व नहीं है. रामगोपाल यादव अलावा विपक्षी पार्टियों के प्रदर्शन के दौरान लगातार कांग्रेस के साथ खड़ी नजर आ रही TRS के नेता भी कुछ इसी तरह से यूपीए के अस्तित्व पर सवाल खड़े करते हुए नजर आ रहे हैं.
यूपीए कहीं है ही नहीं
टीआरएस के सांसद केशव राव के मुताबिक यूपीए कहीं है ही नहीं. सभी विपक्षी दलों की कोशिश 2024 में बीजेपी को हराने की है. वहीं यूपीए का हिस्सा रहे अन्य दल अभी गठबंधन के अस्तित्व को लेकर ज्यादा खुलकर बोलने को तैयार नहीं हैं. हालांकि उनका यह जरूर कहना है कि कोशिश यही है कि समूचा विपक्ष एक साथ रहे और बीजेपी का मुकाबला करे. आरजेडी हो या लेफ्ट पार्टी, या एनसीपी सभी एक सुर में बीजेपी से मुकाबले की बात जरूर कर रहे हैं, लेकिन यूपीए के अस्तित्व को लेकर कुछ भी खुलकर नहीं बोल रहे हैं.
कांग्रेस को नहीं रास आई ममता की बात
वहीं ममता बनर्जी और प्रशांत किशोर की बात, कांग्रेस और उसके नेताओं को बिल्कुल रास नहीं आ रही. इसी वजह से तमाम कांग्रेस के नेताओं ने ममता बनर्जी और प्रशांत किशोर के बयानों को लेकर उनपर निशाना साधा. अब यूपीए में शामिल विपक्षी दल हों या फिर यूपीए से बाहर के दल, सभी एक नए मोर्चे को लेकर चर्चा जरूर करने लगे हैं. हालांकि इस नए संभावित मोर्चे का स्वरूप क्या होगा? कितने दल इसमें शामिल होंगे और कौन इसका चेहरा होगा. इसको लेकर अभी कुछ साफ नहीं है. फिलहाल ममता बनर्जी की प्राथमिकता यह है कि वह तमाम विपक्षी पार्टियों को अपने साथ एक मंच पर ला सकें. अगर ऐसा होता है तो सीधे तौर पर वह कांग्रेस और मौजूदा UPA के लिए एक बड़ा झटका होगा.
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