Raaj Ki Baat: पहले अकालियों का साथ छोड़ जाना. उसके बाद किसान आंदोलन का दिल्ली तक जम जाना. इसके बाद पंजाब में बीजेपी अपने सियासी रसातल की तरफ जा चुकी है. मगर सियासत में मौके गंवाने और लपकने के बीच का जो कौशल होता है, वह कभी-कभी हालात बदल देता है. कांग्रेस की कलह के बाद पंजाब मुख्यमंत्री पद से कैप्टन अमरिंदर के हटने के बाद एक बार बीजेपी के अरमानों की सुई पंजाब की सियासत से लेकर किसानों के धरने खत्म होने तक टिक-टिक करने लगी है. राज की बात पंजाब की सियासत में बीजेपी और कैप्टन की नई केमेस्ट्री और मैथमेटिक्स के साथ ही साथ किसान आंदोलन के भविष्य पर करते हैं बात.
वास्तव में पंजाब में बीजेपी की सारी संभावनायें अब कैप्टन के आजू-बाजू आकर ही थम गईं हैं. अपने उत्तारार्ध में अपमानित होकर कांग्रेस से घायल शेर की तरह निकले कैप्टन अमरिंदर की यह अंतिम पारी भी बीजेपी पर निर्भर हो गई है. किंग और किंगमेकर की संभावनाओं का सिरे का राज वास्तव में किसान आंदोलन पर ही जाकर रुक रहा है. राज की बात यही है कि कैप्टन को ताकतवर करे बगैर बीजेपी के दोनों में से कोई भी लक्ष्य नहीं सधेगा. न तो पंजाब में असरदार होने का और न ही साल भर से चले आ रहे किसान आंदोलन का निदान हो सकेगा. तो सवाल उठता है कि अब आगे विकल्प क्या हैं और रणनीति क्या रहेगी दोनों के ही लक्ष्यों को साधने की?
विकल्पों पर जाने से पहले कैप्टन अमरिंदर और बीजेपी के बीच अंदरखाने जो हुआ, उसे समझना जरूरी है. कैप्टन अमरिंदर सिंह की मुलाकात बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और मौजूदा गृह व सहकारिता मंत्री अमित शाह से हुई. राज की बात ये है कि इस बैठक में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने साफ किया कि बिना किसानों का मसला सुलटाए पंजाब में किंग नहीं, लेकिन किंगमेकर का लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता.
इसमें कोई राज नहीं कि केंद्र सरकार के लिए फिलहाल सबसे बड़ा सरदर्द बने किसान आंदोलन के असली सूत्रधार पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ही रहे हैं. तीन किसान विधेयकों की वापसी के खिलाफ एकजुट विपक्ष की आवाज को सड़कों पर तंबू गाड़कर स्थायी रूप देने में पंजाब की असली भूमिका रही है. पंजाब में ही किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा असर है, उनके प्रभाव का ही असर था जो हरियाणा से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक पहुंचा.
ये तो ठीक है कि कैप्टन अमरिंदर को किसान आंदोलन की जड़ और इसके पीछे लोग कौन हैं, सब पता है. उन पर कैप्टन का प्रभाव भी है. मगर इतने लंबे समय से चला आ रहा यह आंदोलन अब बिना किसी फार्मूले के समाधान के साथ खत्म होना मुश्किल है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने जिस तह से आंदोलन पर करारी टिप्पणी की है, उससे सरकार को बल मिला है. मगर सियासी रूप से कैप्टन को मजबूत करने के लिए बीजेपी को कुछ रास्ता भी निकालना ही होगा.
राज की बात ये है कि वो फार्मूला तय होने के बाद ही कैप्टन अमरिंदर की मुलाकात पीएम मोदी से होगी. राज की बात ये भी कि कैप्टन ने सरकार को सुझाव दिया है कि अगले पांच सालों तक इन तीनों कानूनों को लागू न करने का ऐलान सरकार करे. कैप्टन भी तब तक आंदोलनकारियों के बीच से जायजा लेंगे. सरकार अपना काम करे और सहमति बनाने का प्रयास करे, लेकिन गतिरोध तोड़ने लिए केंद्र को कुछ आगे बढ़ना होगा और इसका श्रेय कैप्टन अमरिंदर को जाएगा तब पंजाब का सियासी लक्ष्य भी सधेगा.
कैप्टन ने ये भी बीजेपी नेतृत्व को साफ कर दिया कि वह बीजेपी में शामिल नहीं होंगे. अलग संगठन बनाकर फिर पार्टी बनाएंगे. प्री पोल और पोस्ट पोल गठबंधन दोनों विकल्प खुले रखकर आगे बढ़ा जाएगा, तभी फायदा होगा. राज की बात है कि बीजेपी नेतृत्व भी इससे सहमत है. राज की एक बात और कि कम से कम आधा दर्जन सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवार भी कैप्टन दे सकते हैं. अगर चुनाव पहले गठबंधन नहीं होता है तो नवजोत सिंह सिद्धू समेत तमाम सीटों पर दोनों दलों में से एक ही दल लड़ेगा और सहयोग करेगा.
राज की बात ये है कि बीजेपी संगठन के तौर पर तो अपनी हालत से चिंतित है, लेकिन केंद्र सरकार राज्य की संवेदनशीलता और वहां के सियासी घटनाक्रमों से ज्यादा सतर्क है. इस सीमावर्ती राज्य में बीजेपी अपनी शह या कैप्टन अमरिंदर जैसे राष्ट्रवादी नेता का रहना जरूरी मानती है. इसीलिए, कैप्टन की सलाह को बीजेपी आलाकमान पूरी तवज्जो देगा और पंजाब की सियासी जंग को दिलचस्प होगी ही, लेकिन सबसे बड़ी समस्या किसान आंदोलन की दिशा में भी समाधान की कुछ आस बंध रही है.
Raaj Ki Baat: सतह पर दिखने लगी कांग्रेस की कलह, गांधी परिवार बनाम असंतुष्ट नेताओं की लड़ाई बढ़ी